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जिम्मेदारों की अनदेखी भुगत रहे मरीज, जिले का सबसे बड़ा अस्पताल लेकिन ट्रॉलीमैन नहीं !

रोजाना डेढ हजार से ज्यादा मरीज लेकिन तीन दर्जन ट्रॉलीमैन भगवान नहीं करे आपका मरीज गंभीर हो और मरीज को लेकर जिले के सबसे बड़े कल्याण अस्पताल में लेकर जाना पड़े तो ट्रॉली या स्ट्रेचर को खींचने के लिए तैयार रहें। वजह कल्याण अस्पताल में इनडोर और आउटडोर की संख्या के लिहाज से ट्रॉलीमैन नहीं […]

रोजाना डेढ हजार से ज्यादा मरीज लेकिन तीन दर्जन ट्रॉलीमैन

भगवान नहीं करे आपका मरीज गंभीर हो और मरीज को लेकर जिले के सबसे बड़े कल्याण अस्पताल में लेकर जाना पड़े तो ट्रॉली या स्ट्रेचर को खींचने के लिए तैयार रहें। वजह कल्याण अस्पताल में इनडोर और आउटडोर की संख्या के लिहाज से ट्रॉलीमैन नहीं होना है। जिसका खामियाजा मरीज के साथ आने वाले परिजनों को भुगतना पड़ रहा है। अस्पताल में ट्रॉलीमैन की भारी कमी से मरीजों और उनके परिजनों को रोजाना जद्दोजहद करनी पड़ रही है। यही कारण है कि अस्पताल की ओपीडी और ट्रोमा यूनिट में आने वाले गंभीर रूप से घायल या बेहोश मरीजों को ट्रॉली या स्ट्रेचर पर लाने के लिए अक्सर परिजन खुद ट्रॉलीखींचते नजर आते हैं। कई बार बुजुर्ग या महिला परिजनों को भी ट्रॉलीधकेलनी पड़ती है। सबसे ज्यादा परेशानी अस्पताल के आर्थो, सर्जरी और ट्रोमा यूनिट में आने वाले मरीजों को भुगतनी पड़ती है। जहां से चिकित्सक की सलाह के बाद मरीज को एक्सरे व सोनोग्राफी के लिए या मरीज को वार्ड में भर्ती करवाने के लिए लेकर जाना पड़ता है। कमोबेश यही हालात नेहरू पार्क स्थित जनाना अस्पताल के है।

ढूंढते रह जाओगे

कल्याण अस्पताल में रोजाना औसतन डेढ से दो हजार के बीच मरीज आते हैं। जिनमें से आर्थोपेडिक व सर्जरी में आने वाले करीब 20 प्रतिशत से ज्यादा मरीज चलने फिरने में असमर्थ होते हैं। परिजनों के अनुसार एक ओर सरकार चिकित्सा को प्राथमिकता बताकर करोड़ों की मशीनें और सुविधाएं जुटा रही है, वहीं मरीजों को व्हील चेयर व ट्रॉली तक लिए चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। कई बार वार्ड में स्टॉफ मरीज को परिजनों को ट्रॉली तक देने से मना कर देता है। अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि अस्पताल के प्रत्येक वार्ड में दो-दो व ट्रोमा यूनिट में एक दर्जन से ज्यादा ट्रॉली व व्हील चेयर है। हकीकत यह है कि किसी ट्रॉली का पहिया खराब है तो किसी ट्रॉली की स्ट्रेचर। यही हाल व्हील चेयर के हैं। परेशानी तब बढ़ जाती है जब अस्पताल में मल्टी टॉस्क वर्कर अवकाश पर होते है।

दो ​शिफ्ट में परेशानी

ओपीडी समय में तो मरीज को लेकर परिजन चले जाते हैं लेकिन ओपीडी समय के बाद सभी मरीज ट्रोमा यूनिट में आते हैं।

ट्रोमा यूनिट में इवनिंग और नाइट ​शिफ्ट में केवल तीन-तीन ट्रॉली मैन लगाए जाते हैं। परेशानी तब बढ़ जाती है किसी हादसे का शिकार अज्ञात मरीज पहुंचता है उस दौरान दो ट्रॉलीमैन तो घायल मरीज को जांच करवाने से लेकर वार्ड में भर्ती करवाने जाते है। कई बार इस प्रक्रिया में आधे से एक घंटे तक समय लग जाता है। उस दौरान आने वाले मरीज या परिजन के पास सिवाए इंतजार के कुछ नहीं होता है। जबकि प्रबंधन के अनुसार ट्रोमा यूनिट में तेरह ट्रॉली है और चौदह ट्रॉली मैन लगाए हुए हैं।

इनका कहना है

अस्पताल की ओपीडी, प्रत्येक वार्ड व ट्रोमा यूनिट में ट्रॉली मैन नहीं मिलने की शिकायत की जांच करवाई जाएगी। गंभीर मरीज को एमटीडब्ल्यू की बजाए परिजनों का लेकर जाना गलत है। प्रत्येक ओपीडी में आने वाले मरीजों के लिए ट्रॉली का इंतजाम करना वार्ड के स्टॉफ की जिम्मेदारी है। प्रबंधन ने मरीजों के लिए अस्पताल के सभी वार्ड, ओपीडी और ट्रोमा में दो-दो ट्रॉली व व्हील चेयर दे रखी है।

डॉ. केके अग्रवाल, अधीक्षक कल्याण अस्पताल