
आपका मानना है कि जब आप अपनी बेटियों को सशक्तीकरण की राह पर ले जाते हैं तो वे केवल सफलता की नई कहानियां ही नहीं रच रही होतीं बल्कि समावेशी भविष्य का निर्माण भी कर रही होती हैं।
अर्चना नागर ने खेती के लिए गांव का रुख किया
भोपाल. हरदा जिले की अर्चना नागर ने खेती के लिए गांव का रुख किया। खेती में वह कुछ नया करना चाहती थीं इसलिए उन्होंने साउथ अफ्रीका के फूल हिबिस्कस सबदरिफा के बारे में जानकारी हासिल की। इस फूल की अच्छी न्यूट्रीशियन वैल्यू है। लिहाजा उन्होंने इस फूल की उम्र के बारे में भी रिसर्च किया और उसके बाद इसके प्रोडक्ट बनाकर मार्केट में ऑफलाइन लांच किया। लेकिन लोगों ने कोई रिस्पांस नहीं किया और पूरा कारोबार ठप हो गया। लेकिन फिर अर्चना ने हिम्मत जुटाई और ऑनलाइन काम को शुरू किया। लेकिन तब भी शुरुआत में उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। फिर उन्होंने पूरा ऑनलाइन काम सीखा और अपने कंपनी में मां को पार्टनर बनाया। उसके बाद फिर से ब्रांड को रिलांच किया तब उनके प्रोडक्ट को अच्छा रिस्पांस मिला। और महज कुछ महीनों में लाखों का प्रोडक्ट भारत के विभिन्न राज्यों में बिक गया। अब अर्चना ने इस साल का टारगेट 1.30 का रखा है।
खुद को संवारने के साथ-साथ दूसरों के परिवार को भी संवारना
भोपाल. रोजगार के लिए महिलाओं और युवाओं का जारी संघर्ष और समाज को कुछ देने की सोच ने मुझे नौकरी छोडकऱ मैदान में काम करने के लिए विवश कर दिया। मैं 13 वर्ष से महिलाओं और स्कूल, कॉलेज के युवाओं के बीच जा रही हूं। उन्हें एक ही बात सिखाती हूं- स्वरोजगार स्थापित करो, इससे अच्छा कोई रोजगार हो ही नहीं सकता। यह खुद को संवारने के साथ-साथ दूसरों के परिवार को भी संवार देता है। मेरी इस सीख ने 300 महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ा और 50 हजार से अधिक महिलाओं, युवाओं को प्रेरित किया। यह कहना है भोपाल निवासी 43 वर्षीय डॉ. मोनिका जैन का।
डॉ. मोनिका जैन बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय मैनिट व अन्य निजी कॉलेजों में केमिस्ट्री विषय की प्राध्यापक रही हैं। वर्ष 2010 में उन्होंने सर्च एंड रिसर्च डेवलपमेंट सोसाइटी नामक संस्था का पंजीयन कराया और महिलाओं, युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने की शुरूआत की। तब वह नौकरी में थी और पढ़ाने के साथ-साथ समाज सेवा का काम भी करती थीं। वह कहती है, इस काम में उनके पति डॉ. राजीव जैन ने उन्हें साहस और साथ न दिया होता तो वह न तो नौकरी छोड़ती और न ही महिला, युवाओं को रोजगार के लिए खड़ा कर पाती।
निशा के साथ जुड़े 50 शिल्पकार
आकाश मिश्रा
जगदलपुर. बस्तर की युवा उद्यमी निशा बोथरा का काम बेहद खास है। निशा पेशे से आर्किटेक्ट हैं और उन्होंने नागपुर यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ अर्किटेक्ट की डिग्री ली है। बतौर आर्किटेक्ट देश के अलग-अलग राज्यों में काम करने के बाद निशा जब बस्तर लौटी तो उन्होंने अपने काम को नया रूप देने की सोची। वे करीब पांच साल पहले बस्तर के स्थानीय शिल्पियों से जुड़ीं जो बैलमेटल, बैम्बू आर्ट और टेराकोटा आर्ट पर काम करते हैं। निशा ने कलाकारों के बीच रहकर खुद यह काम भी सीखा। जब वे इसमें परिपक्व हो गईं तो उन्होंने ऑकर स्टूडियो नाम से अपना फर्म शुरू किया। इसकी फिलहाल जगदलपुर, दंतेवाड़ा और दुबई में ब्रांच हैं। निशा बस्तर की ऐसी युवा उद्यमी हैं जिन्होंने अपने और बस्तर के कारीगरों के काम को वैश्विक पहचान दी है।
दुबई में अपना स्टूडियो चलाने के साथ ही निशा बस्तर के अलग-अलग शिल्प को दुनिया के अलग-अलग देशों तक भी भेजती हैं। निशा के साथ बस्तर के अलग-अलग गांवों के करीब 50 शिल्पकार जुड़े हुए हैं। आमतौर पर सरकार पर निर्भर रहने वाले बस्तर के शिल्पकारों को निशा की पहल की वजह से अच्छा रोजगार मिला है। वे हर हर महीने हजारों-लाखों रुपए की आमदनी कर रहे हैं। निशा ने बस्तर के कारीगरों को मंच देने के लिए डिजाइनर क्लब एसोसिएशन भी बनाया है। ऐसा करनी वाली वे बस्तर की पहली महिला उद्यमी हैं।
Updated on:
05 Jan 2024 12:28 pm
Published on:
05 Jan 2024 12:20 pm
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