जिला जज का अधिमान वेतन एवं अवकाश की अनुमति की लड़ाई लडऩे वाले दीनदयाल प्रजापत को मामलों का सबसे तेज निस्तारण करने के लिए चर्चित रहने पर केन्द्र सरकार ने दिल्ली बुलाकर सम्मानित किया था। इसके बावजूद वो अपने हक के अनुरूप वेतन व अन्य सुविधा नहीं मिलने पर हाईकोर्ट चले गए, वहीं मुख्यमंत्री के साथ ही खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले विभाग के प्रमुख शासन सचिव/निदेशक सहित अन्य जिम्मेदारों को कई पत्र लिख चुके हैं। इसके बाद भी संघर्ष नतीजे पर नहीं पहुंचा है।
यह रही शुरुआत अध्यक्ष दीनदयाल प्रजापत बताते हैं कि बाड़मेर में स्कूली पढ़ाई की, परिवार के हालात अच्छे नहीं थे तो दसवीं पास करने के बाद एडवोकेट के यहां मुंशीगिरी शुरू कर दी। हायर सैकण्डरी के बाद अहमदाबाद में ईवनिंग कॉलेज से एलएलबी की, फिर 2013 तक बाड़मेर में वकालत की। सितम्बर 2013 में कोर्ट के बाबू ने इस पद की वेकेन्सी के बारे में बताया। उनकी रुचि नहीं थी फिर भी उसके दबाव में आवेदन किया। इंटरव्यू के बाद जालोर में नियुक्त किया गया। पूरे पांच साल कार्य किया, सितम्बर 2018 में कार्यकाल पूरा हुआ।
दूसरी बार में बाधाएं खूब बकौल प्रजापत इसके बाद इसी पोस्ट के लिए फिर आवेद किया तो कहा गया इसका आगे प्रोविजन नहीं है। इस नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट गए वहां याचिका खारिज कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट गए, यहां मामला चल ही रहा था कि नए बन रहे उपभोक्ता एक्ट के तहत संसद को पत्र लिखा, बाद में यह स्पष्ट किया गया कि 65 साल आयु तक कितनी भी बार उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष बन सकते हैं। इस पर उन्हें बीकानेर जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग का अध्यक्ष बनाया, जहां मार्च 22 को नियुक्ति हुई, करीब 31 महीने कार्य करने के बाद वे नागौर आए।
सेलरी कम और वो भी नहीं मिली इतना ही नहीं बीकानेर में करीब ढाई साल तक सेलरी का एक रुपया नहीं मिला। दोबारा नियुक्ति आदेश में पे-स्केल थी ही नहीं । वो इसलिए कि दोबारा नियुक्ति पर राजस्थान सरकार ने कोई वेतन रूल ही नहीं बनाया था, जबकि दोबारा अध्यक्ष बनने पर केन्द्र सरकार के वेतन रूल लागू होने हैं। इसके बाद सेलरी के लिए लिखते रहे 15 जुलाई 2024 तक बिना वेतन काम किया। फिर दो-चार महीने वेतन मिला और वो भी मात्र साठ हजार रुपए महीना। जब जिला जज के समान वेतन व सुविधा की बात हाईकोर्ट में उठाई तो फरवरी 2024 में जवाब मिला कि वकील से इस पद पर आए हैं तो साठ हजार ही सही है। बात केन्द्रीय मंत्री से उपभोक्ता मामले के सचिव तक पहुंची तो बताया गया कि वो वेतन ही नहीं उठा रहे। जबकि असलियत यह थी कि मास्टर डेटा ही फीड नहीं किया।
मुद्दे की बात… प्रजापत का कहना है कि हाईकोर्ट में सिंगल बैंच ने फैसला दिया कि साठ हजार का रूल है, जबकि अभी मामला डबल बैंच में विचाराधीन है, लेकिन अन्य राज्यों में लागू है। असल में इस वेतन विसंगति के चलते यह लड़ाई चल रही है। अध्यक्ष से पुन: अध्यक्ष बनने के बावजूद वेतनमान अंकित नहीं है, जबकि केन्द्रीय उपभोक्ता वेतन अधिनियम -2020 के अनुसार जिला जज के समान वेतन/भत्ते व अवकाश मिलने चाहिएं, जो तर्कसंगत है।