प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद उन्होंने देश की विदेश नीति तथा आर्थिक नीतियों में मूलभूत बदलाव किए। हालांकि उनके कार्यकाल की 1984 में हुए सिखों के नरसंहार, बोफोर्स तोप घोटाला, शाहबानो केस जैसी मामलों के लिए आलोचना की जाती है। श्रीलंका में शांति अभियान के लिए भारतीय सेना भेजने से नाराज लिट्टे ने आत्मघाती दस्ते का प्रयोग करते हुए 19 मई 1991 को उनकी हत्या कर दी थी।