
स्टॉल पर बिलौना करती महिला।
शहर में एक बात सामान्य रूप से सुनने को मिलती है, बिलोना हमै कठै रिया...। अब कोई बिलोना करता भी कोई नहीं है। विलुप्त से हो गए बिलोने के दही व छाछ को लाटाड़ा गांव की रहने वाली भावना प्रजापत ने नए रूप में पेश किया। पिछले करीब दस साल से काम कर रही महज दसवीं पास भावना अब जेठानी रतन व भतीजी पूजा के साथ मिलकर बिलाेने की लस्सी व छाछ से साल के दो से ढाई लाख रुपए तक कमा लेती है। उनको लस्सी व छाछ के लिए ऑर्डर मुम्बई, अहमदाबाद, वडोदरा, उदयपुर, अंकलेश्वर सहित देश के कई क्षेत्रों से मिल रहे है। ऑर्डर अधिक होने पर वे अन्य 20-25 महिलाओं को भी अब रोजगार देने लगी है।
भावना बताती है कि बिलोना की लस्सी व छाछ तैयार कर बेचने का आइडिया उन्हें अपने जेठ सखाराम से मिला। घर में धीणा (गाय-भैंस वंश) था। उससे घर में बिलोना करते थे। उसे ही उन्होंने विवाह उत्सव, प्रदर्शनी, मेले में परम्परागत मारवाड़ी वस्त्र पहनकर वैसे ही रूप में ऊतारा, जैसा घर पर होता है। उनका यह नवाचार काम कर गया और बिजनेस चल पड़ा। इसके अलावा वे हाथ से बनी डायरियां भी बनाती है।
जिले के पोमावा गांव की चंदा गुलाब, पालक, नीम आदि की पत्तियों, हल्दी, गेंदा के फूल व सीताफल सहित अन्य प्राकृतिक चीजों का उपयोग कर परिवार की आर्थिक शक्ति बन गई। चंदा इन चीजों से हर्बल गुलाल तैयार करती है। उसने बताया कि यह कार्य शुरू करने के बाद वह खर्च निकालकर दो लाख रुपए तक साल के कमा लेती है। पहले वह अकेले घर पर गुलाल तैयार कर पति के किराणे की दुकान के साथ आस-पास क्षेत्र में बेचती थी। अब उनके पास अन्य महिलाएं भी कार्य कर रही है और गुलाल प्रदेश के कई हिस्सों में भेज रही है।
Published on:
09 Mar 2025 07:08 pm
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