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2050 में दुनिया को चुकानी होगी कचरा प्रबंधन की दोगुनी लागत

2023 के आंकड़ों के अनुसार वैश्विक स्तर पर सालाना 2.3 अरब टन शहरी कचरा उत्पन्न हो रहा है। यदि आवश्यक कदम नहीं उठाए गए तो सदी के मध्य तक कचरा प्रबंधन की वार्षिक लागत दोगुनी होकर 640 अरब डॉलर होने की आशंका है।

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जयपुर

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Kiran Kaur

Mar 07, 2024

2050 में दुनिया को चुकानी होगी कचरा प्रबंधन की दोगुनी लागत

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नैरोबी। दुनियाभर में शहरी कचरे और इसके निपटान की समस्या बढ़ रही है। खुले में कचरे को जलाना आपदा है, लेकिन इसे रिसाइकिल करना भी चुनौती से कम नहीं। इन चुनौतियों के बीच संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का अनुमान है कि शहरी कचरे का उत्पादन 2050 से पहले 65 फीसदी बढ़कर 3.8 अरब टन हो जाएगा। 2023 के आंकड़ों के अनुसार वैश्विक स्तर पर सालाना 2.3 अरब टन शहरी कचरा उत्पन्न हो रहा है। यदि आवश्यक कदम नहीं उठाए गए तो सदी के मध्य तक कचरा प्रबंधन की वार्षिक लागत दोगुनी होकर 640 अरब डॉलर होने की आशंका है।

उचित निपटान न होने से लाखों लोगों की मौत:

ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ऐसे देशों में शामिल हैं, जहां प्रति व्यक्ति कचरे का उत्पादन अधिक हो रहा है। चिंताजनक बात है कि कुछ देशों में अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़ा डाटा नहीं है, जानकारी अधूरी या गलत है। उचित व्यवस्था करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि विश्व में 4-10 लाख लोग सालाना कुप्रबंधित कचरे के कारण मलेरिया, डायरिया, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों का शिकार होकर मर जाते हैं। वैश्विक स्तर पर कुल कचरे का 27 फीसदी एकत्रित नहीं किया जाता।

उच्च आय वाले देशों में कचरे की मार ज्यादा:

कम आय वाले देशों में अधिकांश आबादी ग्रामीण है। यह उन क्षेत्रों में रहती है, जहां अनाज का उत्पादन होता है इससे पैकेजिंग कम होती है और शहरी कचरे का निर्माण भी सीमित रहता है। जबकि इसके विपरीत उच्च आय वाले देशों में शहरीकृत आबादी तक ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों तक भोजन सुरक्षित रूप से पहुंचाने के लिए अधिक पैकेजिंग की आवश्यकता होती है। उच्च आय वाले उपभोक्ता सुविधाओं को प्राथमिकता देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप होम डिलीवरी और टेकआउट फूड से अधिक कचरा उत्पन्न होता है।

भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक बढ़ा रही समस्या :

अपशिष्ट संग्रहण सेवाओं तक पहुंच क्षेत्रों में भिन्न है। जैसे अमीर देशों में लगभग सभी इलाकों में कचरा एकत्र होता है। जबकि निम्न आय वाले देशों में केवल 40 प्रतिशत कचरे का ही संग्रहण होता है। सबसे कम संग्रह वाले क्षेत्रों में ओशिनिया, मध्य और दक्षिण एशिया, उप-सहारा अफ्रीका शामिल हैं। भारत में स्ट्रीट फूड सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है। यह ज्यादातर सिंगल यूज प्लास्टिक पर निर्भर है। इससे देश में कचरे और उसके प्रबंधन की समस्या में इजाफा हो रहा है। चीन कचरे को कम करने के लिए 'जीरो वेस्ट सिटी' कार्यक्रम चला रहा है। यह मॉडल हरित विकास के साथ-साथ अपशिष्ट की कमी और रिसाइक्लिंग को बढ़ावा देता है।

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