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मैंने अपने माता-पिता से आखिर क्या सीखा?

मैंने अपनी मां से सीखा कि अपेक्षाएं ज्यादा मत पालो और कभी भी बच्चों पर हाथ मत उठाओ। ऐसे ही विचार अपने ब्लॉग पर प्रस्तुत किए हैं अजित गुप्ता ने...

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What did I learn from my parentsWhat did I learn from my parents

What did I learn from my parents

प्रथम गुरु मां होती है। मैंने मां से क्या सीखा? मां के बाद पिता गुरु होते हैं। मैंने पिता से क्या सीखा? देखें आज आकलन करके। मेरे पिता दृढ़ निश्चयी थे, उन्हें मोह-ममता छूते नहीं थे। हर कीमत पर अपनी बात मनवाना उनकी आदत में शुमार था। घर में उनका एकछत्र राज था। मां उनके स्वभाव को सहजता से लेती थी। लेकिन घर में क्लेश ना हो इस बात से डरती भी थी।

घर में पिता के कारण कैसा भी तूफान आ जाए लेकिन हमने अपनी मां के आंखों में कभी आंसू नहीं देखे। ना वे हमारे सामने कभी रोईंऔर ना ही अपनी हमजोलियों के सामने। जैसी परिस्थिति थी उसे वैसा ही स्वीकार कर लिया। हमने अपनी मां से यही सीखा कि कैसी भी परिस्थिति हो आंसू बहाकर कमजोर मत बनो।

अपने नौ बच्चों के लालन-पालन में कभी भी मां ने अपेक्षाएं नहीं की। जो घर में उपलब्ध था उसी से सभी को पाला। मां ने हम पर कभी हाथ उठाया हो, याद नहीं पड़ता। हमने मां से यही सीखा कि अपेक्षाएं ज्यादा मत पालो और कभी भी बच्चों पर हाथ मत उठाओ।

पिताजी घर की बागडोर अपने हाथ में रखना चाहते थे इसलिए मां के हाथ में चार पैसे भी उन्हें मंजूर नहीं थे। हमने मां से यही सीखा कि पैसे का मोह मत करो। यदि पिता अपने हाथ में रखना चाहते हैं तो ठीक है, उन्हें दे दो बस शांति रखो।

खाने-पीने की घर में कभी कमी नहीं रही। लेकिन मां सादगी में ही जीती रहीं। उसकी आवश्यकताएं सीमित ही रहीं। दूध-दही, घी-बूरा, फल-मेवा जिस घर में भरे रहते हों, वहां कोई लालसा नहीं। वे कहती कि मुझे हरी मिर्च का एक टुकड़ा दे दो, मैं उससे ही रोटी खा लूंगी। हमने मां से यही हरी मिर्च के साथ रोटी खाना सीखा। कोई लालसा मन में नहीं उपजी।

पिता ने जीवन में कभी झूठ का सहारा नहीं लिया। वे कहते कि सत्य, सत्य है, चाहे वह कटु ही क्यों ना हो। बस सत्य ही बोलो। यह गुण हमने उनसे हूबहू सीखा। कटु सत्य से भी गुरेज नहीं रख पाए। ऐसे ही न जाने कितने गुण-अवगुण हमने हमारे प्रथम गुरु से सीखे। आज उनके कारण जीवन सरल बन गया है। बस माता-पिता दोनों को नमन।

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