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संगीत की फैन दुनिया में आखिर कहां हैं संगीत सम्राट तानसेन?

संगीत की दुनिया में टैलेंट शोज की होड़ है, पर महान गायक तानसेन को याद करने वाले इतने कम क्यों...

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music emperor Tansen

music emperor Tansen

नई दिल्ली | हमारे देश में संगीत से संबंधित टैलेट शोज की होड़ मची हुई है। मगर संगीत के संसार में सबसे बड़े नाम तानसेन की याद में कोई भी बड़ा कार्यक्रम न तो छोटे पर्दे पर और न ही कहीं ओर दिखाई देता है। आइए आज आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताते हैं, जहां पर संगीत की दुनिया की इस महान विभूति की याद में संगीत का महासम्मेलन किया जाता है

यहां मनाया जाता है तानसेन समारोह

तानसेन समारोह या तानसेन संगीत समारोह का आयोजन हर वर्ष दिसंबर महीने में मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के 'बेहत’ गांव में किया जाता है। यह चार दिवसीय संगीत समारोह है जिसमें दुनिया भर के कलाकार और संगीत प्रेमी इकट्ठा होते हैं और संगीत उस्ताद तानसेन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। तानसेन समारोह देश में आयोजित सबसे पुराने संगीत समारोहों में से एक है।

तानसेन समारोह का इतिहास

प्रारंभ में तानसेन समारोह मूलत: एक स्थानीय समारोह था, लेकिन 1952 और 1962 के बीच भारत सरकार में प्रसारण मंत्री रहे बीवी केस्कर की पहल पर इसका आयोजन को विस्तृत रूप से किया जाने लगा। 1950 से ये समारोह हर वर्ष किया जा रहा है। हर वर्ष 'तानसेन सम्मान' भी दिया जाता है।

कौन हैं तानसेन

तानसेन एक महान शास्त्रीय गायक थे। उनके जन्म के बादे में विद्वानों में मतभेद हैं। तानसेन ने संगीत की शिक्षा पहले स्वामी हरिदास से ली और बाद में हजरत मुहम्मद गॉस ने उन्हें संगीत सिखाया। तानसेन को सम्राट अकबर के नवरत्नों में भी गिना जाता है। तानसेन के आरंभिक काल में ग्वालियर पर कलाप्रिय राजा मानसिंह तोमर का शासन था। उनके प्रोत्साहन से ग्वालियर संगीत कला का विख्यात केंद्र था।

तानसेन की प्रमुख रचनाएं

तानसेन स्वर-ताल में गीतों की रचना करते थे। उन्होंने कई राग-रागिनियों की रचना की थी। 'मियां का मल्हार’, 'दरबारी कान्हड़ा’, 'गूजरी टोड़ी' या 'मियां की टोड़ी' तानसेन की ही देन हैं। वे कवि भी थे। उन्होंने 'संगीतसार’, 'रागमाला' और 'श्रीगणेश स्तोत्र' ग्रंथों की रचना की।

कैसे दिखते थे तानसेन

तानसेन के पुराने चित्रों से उनके रूप-रंग की जानकारी मिलती है। तानसेन का रंग सांवला था। मूंछें पतली थीं। वह सफेद पगड़ी बांधते थे। सफेद चोला पहनते थे। कमर में फेंटा बांधते थे। ध्रुपद गाने में तानसेन की कोई बराबरी नहीं कर सकता था। तानसेन का देहावसान अस्सी साल की उम्र में हुआ। उनकी इच्छा धी कि उन्हें उनके गुरु मुहम्मद गौस खां की समाधि के पास दफनाया जाए। वहां आज उनकी समाधि पर हर साल तानसेन संगीत समारोह आयोजित होता है।

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