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कभी सोचा है, आखिर हम झूठ क्यों बोलते हैं?

हम जब भी परिस्थितियों और तथ्यों में कोई विसंगति देखते हैं तो हमें झूठ का आभास होता हैझूठ बोलने का एक कारण है कि हम विवादित बयानों के जरिए अन्य लोगों को बुरे इरादों वाला या उनके चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगाने का प्रयास करते हैं ताकि स्वयं के दोष छुपा सकें। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यह 'सेल्फ सर्विंग ह्यूमन टेंडेंसी है।

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जयपुर

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Mohmad Imran

Nov 18, 2019

कभी सोचा है, आखिर हम झूठ क्यों बोलते हैं?

कभी सोचा है, आखिर हम झूठ क्यों बोलते हैं?

अक्सर हम किसी त्रुटि या अशुद्धि को झूठ मान लेते हैं लेकिन यह जरूरी नहीं कि वास्तव में सामने वाले व्यक्ति का इरादा आपको धोखा देने का ही हो। झूठ का तात्पर्य गुमराह करने के इरादे से बोली गई ऐसी बात से है जो तथ्यों से परे है। खासकर झूठ उस स्थिति में बोला जाता है जब हमें दूसरों को किसी ऐसी चीज के बारे में यकीन दिलाना हो जो हम जानते हैं कि सच नहीं है। हम भूल गए हैं कि एक दौर में तथ्यात्मक निश्चितता केवल कुछ की-स्ट्रोक्स दूर होती थी। शायद हम यह भी भूल गए हैं कि सत्य हमेशा स्पष्ट नहीं होता है। तर्क करने वाले लोग तथ्यों के एक ही सेट को देख सकते हैं और अपनी असहमति जाहिर कर सकते हैं। लेकिन उस बात से वाकिफ व्यक्ति बातचीत को अलग नजरिए से देखता है। लेकिन हम जब भी परिस्थितियों और तथ्यों में कोई विसंगति देखते हैं तो हमें झूठ का आभास होता है।

ट्रंप रोज बोलते 22 झूठ
अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अक्सर अपाने भाषणों और बैठकों में फैक्ट्स को गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं। हालांकि पत्रकार उन्हें झूठज्ञ कहने में संकोच करते हैं क्योंकि वे उनके इरादों से पूरी तरह वाकिफ नहीं होते। लेकिन वाशिंगटन पोस्ट फैक्ट-चेकर्स ने राष्ट्रपति के असत्य बयानों का रेकॉर्ड खंगाला तो उन्हें पता चला कि वह वर्तमान में लगभग 22 झूठ प्रतिदिन की गति से झूठ बालते हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि उन्हें झूठे और भ्रामक शब्द पसंद हैं।

इसलिए आदत हो जाती झूठ बोलने के
झूठ हमें आकर्षित क्यों करता है इसका एक कारण तो यह है कि हम यह मान लेते हैं कि एक गलत या विवादित बयान एक पुरुषवादी झूठ है जो अन्य लोगों को बुरे इरादों वाला या चरित्र पर आरोप लगाने के लिए एक मानवीय आवेग है। वहीं परिस्थितियों के अनुसार हमारे स्वयं के बहानों को छुपाने का एक प्रयास भी है। यह 'सेल्फ सर्विंग ह्यूमन टेंडेंसी इतनी सामान्य है कि मनोवैज्ञानिकों ने इसे एक रोचक नाम दिया है- ' द फंडामेंटल अट्रिब्यूशन एरर' यानी मौलिक रूप से गलती थोपने की आदत। यह हमारे भीतर इतनी गहरी पैठ गई है कि हम हर किसी के साथ झूठ बोलने के अभ्यस्त हो गए हैं। ऐसा हम ईमेल, सोशल मीडिया, वाहन बीमा राशि के समय, बच्चों के साथ, दोस्तों और यहां तक की अपने जीवन साथी के साथ भी बेवजह लगातार झूठ बोलते रहते हैं। कुछ मनोवैज्ञानिक इसे सिलेक्टिव मेमोरी की संज्ञा भी देते हैं।