आइवीएफ की प्रक्रिया में भ्रूण को किसी उत्तरी सफेद गैंडे में स्थानांतरित नहीं किया गया था। यह प्रकिया दक्षिणी सफेद गैंडों के साथ अपनाई गई। भ्रूण को बेल्जियम के एक चिड़ियाघर से दक्षिणी सफेद मादा के अंडे का उपयोग करके बनाया गया और ऑस्ट्रिया के एक नर के शुक्राणु के साथ निषेचित किया गया। फिर इसे पिछले साल सितंबर में केन्या में दक्षिणी सफेद सरोगेट मां में स्थानांतरित कर दिया गया, जो गर्भवती हो गई। इससे पहले गैंडों में आइवीएफ तकनीक का उपयोग पहले कभी नहीं हुआ था।
मौत से लगा झटका, गर्भावस्था ने दी उम्मीद: कुछ दिन बाद सरोगेट मां की क्लोस्ट्रीडिया ( मिट्टी में पाया जाने वाला बैक्टीरिया जो जानवरों के लिए घातक हो सकता है) से संक्रमित होने के बाद मृत्यु हो गई। सरोगेट मां की मौत से विशेषज्ञों की टीम को झटका लगा। फिर पोस्टमार्टम से पता चला कि 6.5 सेमी का नर भ्रूण अच्छी तरह से विकसित हो रहा था और उसके जीवित पैदा होने की संभावनाएं प्रबल थीं। अंत में प्रेग्नेंसी इस बात का प्रमाण थी कि तकनीक काम कर गई। वैज्ञानिकों का अगला कदम उत्तरी सफेद गैंडे के भ्रूण का उपयोग करके तकनीक को आजमाना है।
सींगों की मांग के कारण खत्म हुई जंगली आबादी : 2018 में आखिरी नर उत्तरी सफेद गैंडे, सूडान की मृत्यु होने के बाद प्रजाति लुप्त होने की कगार पर थी। फिलहाल दो मादा उत्तरी सफेद गैंडे नाजिन और उसकी बेटी फातू बचे हैं। ये दोनों ही केन्या में एक संरक्षण केंद्र में 24 घंटे कड़ी सुरक्षा में रहती हैं। लेकिन अब नई वैज्ञानिक प्रगति का मतलब है कि ये मां और बेटी अपनी प्रजाति की आखिरी जीव नहीं होंगी। उत्तरी सफेद गैंडे कभी पूरे मध्य अफ्रीका में पाए जाते थे, लेकिन गैंडे के सींग की मांग के कारण अवैध शिकार ने जंगली आबादी को खत्म कर दिया।
कई प्रयासों के बाद मिली सफलता