श्रीगंगानगर. नियम कायदों पर सख्ती और नियमित मॉनिटरिंग नहीं होने के कारण इलाके में बिना अनुमति कॉमर्शियल भवन निर्माण का खेल चल रहा है। जिन लोगों ने ऐसे भवन का निर्माण कर लिया है, उनको नोटिस जारी किए लेकिन अब तक कोई एक्शन नहीं हो पाया है। पिछले दो साल से नगर परिषद और नगर विकास न्यास प्रशासन ने बिना अनुमति कॉमर्शियल भवन निर्माण करने वालों को सीज करने की प्रक्रिया से भी हाथ खींच लिया है। इस कारण नगर परिषद और यूआईटी क्षेत्र में अब तक एक भी भवन पर पेनल्टी तक नहीं लगाई है। इतना ही नहीं कॉमर्शियल भवनों में पार्किंग स्थल का निर्माण के लिए किसी भी शोरूम संचालक ने पालना नहीं की है। इस कारण बाजार से लेकर मोहल्लों के चौक चौराहों के आसपास सड़क मार्ग पर वाहनों के जाम लगना आम बात हो गई है।
अधिकारियों की माने तो अधिकांश लोग अनुमति सिर्फ आवासीय भवन बनाने की ले रहे हैं। इसमें विशेष रूप से गोलबाजार, सदर बाजार, जवाहर मार्केट, पुरानी धानमंडी, तहबाजारी, स्टेशन रोड, गौशाला मार्ग, रवीन्द्र पथ, स्वामी दयानंद मार्ग, जी ब्लॉक एरिया, एल ब्लॉक एरिया, अग्रसेननगर चौक, चहल चौक एरिया, दुर्गा मंदिर मार्केट एरिया, पुरानी आबादी की टावर रोड, उदाराम चौक एरिया, शक्ति मार्ग पर निर्माण कार्य चल रहा है।अधिकांश अनुमति ऊंचती दी जा रही है। परिषद और न्यास प्रशासन से अनुमति लेने के लिए वे ही भवन मालिक आ रहे हैं जिनको बैंकों से कर्जा लेकर निर्माण करवाना है।
किसी भवन का निर्माण न्यूनतम तीन से छह माह तक की समय अवधि लग रही है। लेकिन कॉमर्शिलय की बजाय आवासीय निर्माण की अनुमति के दौरान महज एक से दो महीने की समय अवधि के लिए मलबा फीस वसूल जाती है। हकीकत में छह माह तक भवन निर्माण स्थल के आगे मलबा और भवन निर्माण सामग्री पसरा रहता है। इसके साथ भवन निर्माण सामग्री रखने के लिए सड़क किनारे अस्थायी अतिक्रमण भी बनाया जा रहा है। इससे राहगीरों को अधिक परेशानी आ रही है। कई जगह तो सड़कों पर आवाजाही का रास्ता ही बंद हो गया है तो कई भवन मालिक अपनी एप्रोच के बलबूते पर मलबे के ढेर तीन से चार माह तक उठाव नहीं करवाते। शोरूम निर्माण में पार्किंग का भी ख्याल नहीं रखा जा रहा है। इससे वाहन सडक पर खड़े होने से रास्ता जाम हो रहा है। इस संबंध में यातायात पुलिस, नगर परिषद और यूआईटी ने भी चुप्पी साध रखी है।
उधर, नगर परिषद में नेता प्रतिपक्ष बबीता गौड़ ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के जयपुर स्थित महानिदेशक को नगर परिषद की तत्कालीन आयुक्त के अलावा सभापति, विधिक पैरोकोर, नगर नियोजक सहायक, सहायक अभियंता, बीकानेर जोन के तत्कालीन वरिष्ठ नगर नियोजक के खिलाफ शिकायत की थी। इसमें नगर परिषद क्षेत्र में आठ भवनों को नियम कायदों की अनदेखी कर भू उपयोग परिवर्तन का आरोप लगाया था लेकिन अब तक इस पर एक्शन नहीं हो पाया है।
इधर, नगर परिषद की कनिष्ठ अभियंता शिवांगी और नगर नियोजक सहायक फरसाराम बिश्नोई की टीम ने गत दो दिन में बाजार एरिया में भवन निर्माण की जांच की। इस जांच के दौरान एक भी भवन निर्माण में नगर परिषद से अनुमति नहीं ली गई थी। जेईएन शिवांगी ने बताया कि इन भवन मालिकों को भवन निर्माण की अनुमति और भवन के मालिकाना हक के संबंधित दस्तावेज सोमवार को नगर परिषद में जमा कराने के लिए तलब किया है। पूरे दस्तावेजों की जांच के बाद नोटिस जारी किए जाएंगे। जरूरत पड़ी तो भवन निर्माण को रोककर सीज किया जा सकेगा।
आवासीय और व्यावसायिक भवनों की अनुमति के लिए नगर परिषद और यूआईटी ने अलग अलग शुल्क तय किए हुए हैं। आवासीय भवन निर्माण में मलबा फीस पांच से सात सौ रुपए है जबकि व्यावसायिक भवन के लिए यह मलबा फीस करीब पांच हजार रुपए तय की हुई है। व्यावसायिक भवन की अनुमति में भू उपयोग परिवर्तन शुल्क, पार्किंग, वाटर हार्वेस्टिम सिस्टम निर्माण जरूरी है। भू-उपयोग परिवर्तन का शुल्क करीब डेढ़ लाख से नौ लाख रुपए तक वसूली की जाती हैं। सैटबैक आदि के नियम कायदों की पालना करते हुए भवन निर्माण की अनुमति दी जाती है।
इस बीच, नगर विकास न्यास और नगर परिषद प्रशासन के पास यह तक आंकड़ा नहीं है कि उनके क्षेत्र में कितने भवन निर्माण संचालित हो रहे है। जनप्रतिनिधियों और आला अफसरों के सिफारिशी फोन आने पर इन दोनों संस्थाओं के अभियंताओं की टीम भी भवन निर्माण स्थल पर जांच करने के लिए नहीं जाती। यहां तक कि नगर परिषद के पास सफाई निरीक्षक की ओर से दी जाने वाली भवन निर्माण की सूचना की भी अनदेखी हो रही है। फीडबैक मिलने के बावजूद एक्शन की बजाय चुप्पी साधी जा रही है।