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कोरोना में उम्मीदों पर ब्रेक लगी तब लड्डू गोपाल बने सहारा

Laddu Gopal became Sahara when there was a brake on hopes in Corona- लड्डू गोपाल की ड्रेस बनाने से मिला संबल, मथुरा-वृंदावन तक सप्लाई

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कोरोना में उम्मीदों पर ब्रेक लगी तब लड्डू गोपाल बने सहारा

कोरोना में उम्मीदों पर ब्रेक लगी तब लड्डू गोपाल बने सहारा

श्रीगंगानगर. जीवन में मुसीबत का डटकर मुकाबला करें तो भाग्य की रेखाएं भी बदल सकती है। पिछले सवा साल से कोरोना प्रकोप से इलाका भी अछूता नहीं रहा। इस कोरोनाकाल में किसी का हम सफर छूटा तो किसी का रोजगार। परिवार के समक्ष रोटी का संकट खड़ा हो गया। सहारा देने वालों ने भी मुंह मोड़ लिया।

इलाके में अधिकांश महिलाओं ने अपने हूनर के बलबूते पर जीवन को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। इनमें से चुनिंदा महिलाओं का कहना है कि लड्डू गोपाल ने संकट मोचक के माध्यम से सहारा दिया।

इलाके में लड्डू गोपाल की चलन अधिक होने लगा है। इन लड्डू गोपाल की डे्रस की अधिक खपत रहती है। इस कारण महिलाआें ने ड्रेस बनाने की प्रक्रिया शुरू की।

एक महिला दुकानदार से ऑर्डर लेकर आती तो दूसरी ने कटिंग की। अन्य महिलाओं ने इन ड्रेस की सिलाई की। देखते देखते अब तीन सौ से लेकर साढ़े तीन सौ रुपए प्रतिदिन की औसतन दिहाड़ी बनती है।

घर पर बैठे इस काम को सिखने में महज तीन से चार दिन लगते है। चक आठ जैड निवासी मंजू स्वामी का कहना है कि पिछले साल कोरोनाकाल में केन्द्र सरकार ने आत्मनिर्भर बनने का संदेश दिया था, अब यह सही मायने में सचमुच में होने लगा है।

इलाके में बनी लड्डू गोपाल की रंग बिरंगी और आकर्षक पोशाक की डिमांड लोकल स्तर पर नहीं बल्कि मथुरा और वृंदावन तक होने लगी है। यहां से विभिन्न पोशाक की आपूर्ति भी होने लगी है।

बीरबल चौक के पास इंडस्ट्रीयल एरिया में रहने वाली कुसुम शर्मा का कहना है कि पिछले साल कोरोनाकाल में शिक्षण संस्थाएं बंद हुई तो मकान के ऋण की किस्तें चुकाने का संकट खड़ा हो गया। इस दौरान मंजू स्वामी ने लड्डू गोपाल की डे्रस बनाने का ऑफर किया तो उसके समक्ष कई चुनौतियां थी। चंद घंटों में ड्रेस बनाने को सीखना और फिर बनाना।

लेकिन हिम्मत नहीं हारी और इस काम में जुट गई। लड्डू गोपाल की ड्रेस बनाने से सुकुन भी मिला और दिहाड़ी भी बनी। बस फिर क्या था यह कारवां बनता गया। यही स्थिति नीरां की थी।

उसका स्कूल छूटा तो बेरोजगार हो गई। एेसे में उसे भी लड्डू गोपाल ने रोजगार दे दिया। वह अब दिन में एक सौ से अधिक ड्रेस तैयार करती है। खाली बैठने से अच्छा है कि कोई काम ही किया जाएं।

भगवान लड्डू गोपाल ने सुन ली। अब वह अपने लड्डू गोपाल के लिए खास ड्रेस भी बना लेती है।
नेहरानगर निवासी सुखविन्द्र कौर के पति की कोरोना महामारी से मृत्यु हो गई। एेसे में परिवार के समक्ष रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया तो इस महिला ने खुद कमान संभाली।

पहले यह महिला प्राइवेट स्कूल में कार्यरत थी। अब लड्डू गोपाल की ड्रेस बनाकर परिवार पाल रही है। यही स्थिति आनंद विहार के पास नेहरानगर निवासी सरिता की है। इसके पति प्राइवेट स्कूल में बालवाहिनी के चालक थे लेकिन शिक्षण संस्थाएं बंद हुई तो काम से छुट्टी कर दी गई।

एेसे में रोजगार के रास्ते बंद होने पर सरिता ने लड्डू गोपाल की ड्रेस बनाने का काम सीखा और उसकी मेहनत रंग भी लाई। अब पूरा परिवार यह सिलाई कार्य करता है। एसएसबी रोड पर चक ३ ई छोटी शिवाजी कॉलोनी निवासी ममता भी प्राइवेट स्कूल में अध्यापिका थी लेकिन कोरोना ने रोजगार का यह मार्ग बंद करवा दिया। आर्थिक संकट छाया तो खुद ही सिलाई मशीन लेकर काम करने लगी।

ड्रेस बनाने में महारत हुई तो दूसरी महिलाओं के लिए यह प्ररेक बन गई। इसके आसपास की महिलाएं भी सिलाई का काम करने लगी है। इधर, पुरानी आबादी वार्ड आठ में तो वे कामकाजी महिलाएं एक मंच आई जिनका कोरोनाकाल में काम छूट गया।

इसमे कई महिलाएं तो ट्रेलरिंग का काम करती थी लेकिन बाजार से यह काम आना बंद हुआ तो लड्डू गोपाल की पोशाक बनाने में लग गई।