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किसी को नहीं पता कहां हैं डस्टबिन!

-नगरपरिषद से आवंटित हुए नौ हजार डस्टबिन, पात्र परिवार अब तक तरसे

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किसी को नहीं पता कहां हैं डस्टबिन!

श्रीगंगानगर.

स्वच्छ भारत मिशन के तहत नगर परिषद प्रशासन ने शहर के प्रत्येक घर और दुकान में कचरा संग्रहण करने के लिए डस्टबिन की खरीद कर वितरित कर दिए लेकिन अब तक यह डस्टबिन संंबंधित पात्र परिवारों तक पहुंचे नहीं। नगर परिषद के उपसभापति अजय दावड़ा के वार्ड से लेकर पुरानी आबादी के वार्डों में रहने वाले लोगों तक यह डस्टबिन अब तक नहीं पहुंच पाया है।


इंदिरा कॉलोनी, जवाहरनगर और पुरानी आबादी के कई मोहल्ले में डस्टबिन की बजाय वहां पर्चियां मिली लेकिन छह महीने बीतने के बावजूद डस्टबिन देने के लिए कोई आया नहीं। इस खरीद में हुई गोलमाल के संबंध में नगर परिषद आयुक्त से लेकर स्टोर प्रभारी तक चुप्पी साध गए।


जितने पार्षदों ने डिमांड की उसके अनुरुप नहीं दिया बल्कि जैसा अधिकारियों ने बोला वैसे वैसे वार्डवार डस्टबिन को बांटा गया। कई वार्डो में एक भी डस्टबिन पहुंचे ही नहीं तो कईयों में पहुंचे कि वहां पार्षदों ने धर्मसंकट का हवाला देते हुए वार्डवासियों की बजाय अपने घरों में स्टोर कर लिए। इतना ही नहीं बाजार में जिस डस्टबिन की कीमत महज 56 रुपए आंकी जा रही है उसे नगर परिषद प्रशासन ने 122 रुपए प्रति डस्टबिन की दर से खरीद किया गया।

इस खरीद में जिन जिन अधिकारियों को अधिकृत किया गया था, उनसे जवाब मांगने की बजाय आयुक्त ने पार्षदों पर ही ठिकरा फोड़ दिया कि पार्षद ही अपनी राजनीति चमकाने के लिए ऐसा हल्ला करते है। इस बीच अधिवक्ता कुलदीप गार्गी ने इस पूरी खरीद के संबंध में दस्तावेज जुटाकर डीएलबी में शिकायत की है। उनका कहना है कि यदि डीएलबी ने जांच नहीं की तो वे परिषद के संबंधित अधिकारियेां के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराएंगे।


इन 14 वार्डों में एक भी आवंटन नहीं
परिषद के रिकॉर्ड के अनुसार वार्ड 5, 6,10,11,14, 18, 19, 27, 31,32, 36, 47, 48, 49 में एक भी डस्टबिन का आंवटन नहीं किया गया है।


वेल्डिंग करने वाले दुकानदार बन गए बोलीदाता
नगर परिषद प्रशासन ने नौ हजार डस्टबिन की खरीद के लिए बकायादा टैंडर जारी किए गए। इसमें एक फर्म का संचालक तो वेल्डिंग की दुकान करता है, इस फर्म संचालक ने तीन अन्य फर्मो को बुलाया और यह खरीद का अनुबंध कराया। पूल हुए इस ठेके में फर्म पीएस उद्योग को खरीद के लिए अधिकृत माना गया।

परिषद के रिकॉर्ड के अनुसार आदेश ट्रेडर्स और शक्ति ट्रेडर्स ने 130-130 रुपए, हिमानी इंटरप्राइजेज ने 126 रुपए और पीएस उद्योग ने 122 रुपए की दर से यह डस्टबिन उपलब्ध कराने की पेशकश की थी, ऐसे में न्यूनतम दर पर पीएस उद्योग को डस्टबिन आपूर्र्ति करने का अधिकार मिल गया। इस फर्म को नगर परिषद ने 11 लाख 90 हजार 390 रुपए का भुगतान किया गया था।


जब एलडीसी ने दुबारा कर दिया था टेंडर
नगर परिषद की डस्टबिन खरीद फाइल में एक लिपिक की भूमिका संदिध नजर आई है। रिकॉर्ड के अनुसार एक लिपिक ने जेम पोर्टल पर आदेश को प्राप्त कर दुबारा टैण्डर जारी कर दिया। इस संबंध में जब परिषद अधिकारियों को जानकारी मिली तो इसे लिपिकीय भूल बताकर संबंधित दूसरे टैण्डर को निरस्त कराने की प्रक्रिया अपनाई। यहां तक कि संबंधित जेम पोर्टल का पासवर्ड भी बदला गया। इसकी सूचना भी राज्य के स्वच्छ भारत मिशन प्रभारी अधिकारी को दी गई थी। इस संबंध में नगर परिषद प्रशासन ने जांच या जवाब मांगना उचित नहीं समझा।


यहां बांटे गए
परिषद के रिकॉर्ड के अनुसार वार्ड एक में 150, दो में 150, तीन में 150, चार में सिर्फ 15, सात में 150, आठ में 350, नौ में 200, बारह में 400, तेरह में 300, पन्द्रह में 350, सौलह में 100, सत्रह में 150, बीस में 250, इक्कीस में 200, बाइस में 300, तेईस में 250, चौबीस में 250, पच्चीस में 200, छब्बीस में 200, अठाइस में 250, उन्नतीस में 275, तीस में 250, तैंतीस में 400, चौंंतीस में 200, पैंतीस में 250, सैंतीस में 200, अड़तीस में 200, उनतालीस में 200, चालीस में 100, इकतालीस में 200, बियालीस में 250, तियालीस में 175, चौंवालीस में 350, पैंतालीस में 250, छियालीस में 500, अड़तालीस में 280, पचास में 200 कुल 9000 डस्टबिन बांटे गए है।


बजट के हिसाब से बांटे
यह सही है कि हरे और नीले रंगे के दो डस्टबिन प्रत्येक घर और दुकान को आवंटित करने के लिए स्वच्छ भारत मिशन में आदेश मिले थे लेकिन जितना बजट था उतने खरीद कर आवंटित कर दिए। वार्डवार किन किन लोगों को आवंटित किए है, यह जानकारी संबंधित पार्षद दे सकते है। खरीद के संबंध में किसी तरह का गोलमाल नहीं हुआ है, सब नियमों के अनुरूप और तय की गई दरों के हिसाब से डस्टबिन खरीदे गए हैं। इसके बावजूद कोई अनियमितताएं सामने आई तो जांच करवा लेंगे।
सुनीता चौधरी, आयुक्त नगर परिषद