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ताकि अपने न हो जाएं ‘पराए’

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ताकि अपने न हो जाएं ‘पराए’

प्रवासी राजस्थानियों के समक्ष भी पहचान का संकट

श्रीगंगानगर.

असम के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) मामले में काफी प्रवासी राजस्थानियों के समक्ष भी पहचान का संकट खड़ा हो गया है। ऐसे लोगों के परिजन अपनों को ‘पराया’ होने से बचाने की कोशिश में जुट गए हैं। इसके लिए राजस्थान में उनके ‘भारतीय’ होने के दस्तावेज ढूंढऩे शुरू किए गए हैं।


एनआरसी के लिए दावा या आपत्ति प्रस्तुत करने की अवधि 7 अगस्त से 28 सितम्बर निर्धारित की गई है। जिन प्रवासी राजस्थानियों का वहां 25 मार्च, 1971 से पहले निवास का प्रमाण नहीं है, उनका या उनके रक्त संबंधी का राजस्थान में रहने का प्रमाण जुटाना आवश्यक है। इसके लिए वर्ष 1971 की मतदाता सूची सर्वाधिक खंगाली जा रही है। कुछ परिजन वर्ष 1965 की मतदाता सूची की प्रमाणित प्रति प्राप्त करने का भी प्रयास कर रहे हैं। जिनका नाम मतदाता सूची में शामिल नहीं है या फिर किसी वजह से यह सूची उपलब्ध नहीं हो रही है, वे लोग अन्य किसी प्रमाण के लिए मगजमारी कर रहे हैं।


की जा रही है कोशिश

असम में रहने वाले कई राजस्थानी प्रवासियों ने मूल रूप से देशनोक के अमरचंद जैन से भी सम्पर्क किया है, वे वहां के काठिगोड़ा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के विधायक हैं। इसके अलावा प्रवासियों के श्रीगंगानगर सहित अनेक स्थानों पर रहने वाले परिजन आवश्यक दस्तावेज के लिए सरकारी कार्यालयों में घूमने लगे हैं। गुरुवार को यहां कलक्ट्रेट में भी ऐसा नजर आया। निर्वाचन शाखा भाग संख्या, क्रमांक संख्या आदि के ब्यौरे सहित मिलने वाली नकल की अर्जी के आधार पर प्रमाणित प्रति दे रही है।


एनआरसी मामला काफी संवेदनशील है। केंद्र सरकार के अलावा राजस्थान सरकार को भी इस मुद्दे में शामिल होना चाहिए क्यों कि राजस्थान के काफी लोग वहां निवास कर रहे हैं।
एडवोकेट नितिन वाट्स अध्यक्ष, टैक्स बार एसोसिएशन, श्रीगंगानगर


एनआरसी परेशानी हल करने के लिए है, बढ़ाने के लिए नहीं है। आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध करवाने के लिए राजस्थान सरकार को बोला जा रहा है। जो पात्र हैं, उनको सौ प्रतिशत मदद मिलेगी।
अमरचंद जैन
विधायक काठिगोड़ा (असम)


‘वाजिब रिकॉर्ड वालों को परेशान नहीं होना सुनिश्चित किया जाएगा। इसके लिए राज्य सरकार से बात की जाएगी। मतदाता सूची आदि उपलब्ध करवाने के लिए भी बोला जाएगा’
अर्जुनराम मेघवाल केंद्रीय राज्य मंत्री जल संसाधन एवं संसदीय मामलात