
गांव रंगमहल में बना कुषाणकालीन प्राचीन तालाब
Suratgarh News: जिस पानी की कीमत को आज पूरी दुनिया और हमारी सरकारें समझकर जल संरक्षण की दिशा में प्रयास कर रही है, यह बात हमारे पूर्वज हजारों साल पहले ही समझ गए थे कि जल है तो कल है। गांव रंगमहल से मिली दो हजार वर्ष पुरानी कुषाणकालीन सभ्यता में जल संरक्षण का नायाब उदाहरण देखने को मिलता है। सरस्वती नदी के मुहाने पर बसे कुषाणों ने उस समय ही अकाल और सूखे जैसे हालातों से निपटने के नदी से जोड़कर तालाब बनवा दिया था। जो कि कुषाणों की जल संरक्षण की दूरदर्शी सोच का प्रमाण है। कुषाणों के बाद आए गुप्तकाल के सम्राटों ने भी जल संरक्षण के मूल्यों को समझा और इस तालाब को अपनी उन्नत इंजीनियरिंग से और संवारा। हजारों साल बाद आज भी यह तालाब कुषाणों और गुप्तों की जल संरक्षण की सोच तथा बेहतरीन इंजीनियरिंग का जीवंत उदाहरण है। साथ ही यह भी प्रमाणित करता है कि प्राचीन समय में भी हमारे पूर्वजों की समझ और तकनीक आज के समय से कहीं आगे थी।
उल्लेखनीय है कि सूरतगढ़ से मात्र सात किलोमीटर दूर गांव रंगमहल में कुषाणकालीन और गुप्ताकालीन सभ्यताओं का संगम स्थल रहा है। वर्ष 1916 से 1919 के बीच डॉ. एलवी टेसीटोरी के नेतृत्व में इटली के एक विद्वान दल ने रंगमहल की थेहड़ की पहली बार खुदाई की थी। जिसमे मिट्टी के बर्तन, देवी-देवताओं की मूर्तियां, ताबेनुमा धातु के सिक्के आदि मिले। वहीं वर्ष 1952-54 में स्वीडिश अभियान दल ने हैनरीड के निर्देशन में यहां दूसरी बार खुदाई की गई। जिसमे कुषाण और गुप्तकालीन सभ्यता के अवशेष मिले, हालांकि सैन्धवकालीन अवशेष भी प्राप्त हुए लेकिन उनकी संख्या कम थी।
जानकारी के अनुसार गांव रंगमहल का तालाब कुषाण काल के राजाओं की ओर से बनवाया गया था। हालांकि रंगमहल प्राचीन सरस्वती नदी जहां वर्तमान में घग्घर नदी बहती है, उसके तट पर िस्थत है। नदी तट पर बसे होने के बावजूद कुषाणों ने अकाल और सूखे जैसी िस्थतियों से निपटने के लिए रंगमहल में तालाब का निर्माण करवाया और उत्तर दिशा में घग्घर नदी का बहाव होने कारण खुला रखा ताकि इसमें नदी का जल संरक्षित किया जा सके। तालाब तीन बाई सवा फीट चौड़ी ईंटों से निर्मित करवाया गया। कुषाणों के बाद आए गुप्त सम्राटों ने अपनी उन्नत इंजीनियरिंग का उपयोग करते हुए इस तालाब का जीर्णोद्वार करवाया। मान्यता है कि गुप्तकाल में जल को अधिक समय तक संरक्षित रखने के लिए तालाब का पैंदा ताम्र से करवाया। ग्रामीण बुजुर्ग बताते हैं कि खुदाई के दौरान शोधकर्ताओं ने तालाब के पैंदे तक जाने का प्रयत्न किया लेकिन सफलता नहीं मिली। तालाब में 52 सीढिय़ां तक खोजे जाने के प्रमाण मिलते हैं। तालाब की यह सीढि़यां और विशालकाय ईंटे सिंधु सभ्यता की कहानी बयां करती हैं।
सूरतगढ़ से महज 33 किमी दूर मिली हड़प्पाकालीन सभ्यता के प्रमाण आज कालीबंगा में भारतीय पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में संग्रहीत व सुरक्षित हैं। लेकिन रंगमहल में मिली कुषाण और गुप्तकालीन सभ्यता को सहेजने के लिए इस स्तर पर प्रयास नहीं हुए। वहीं इस प्राचीन तालाब को भी संरक्षित करने के लिए सरकारी प्रयासों का अभाव देखने को मिलता है। रंगमहल में उत्खनन से प्राप्त सिक्कों, मिट्टी के पात्र, दीपदान, खिलौनों को रंगमहल में ही संग्रहालय बनाकर रखने की बजाय दिल्ली, जयपुर व बीकानेर संग्रहालय में भिजवा दिया गया। लेकिन इस स्थल पर खुदाई कार्य शेष है और समय-समय पर यहां सभ्यता अवशेष मिलते रहते हैं। पुरातत्वविदों और इतिहासकारों का मानना है कि रंगमहल के लिए भी एक अलग संग्रहालय बनाना चाहिए ताकि सभ्यताओं का संरक्षण हो सके। वहीं तालाब को भी हैरिटेज घोषित कर इसको संरक्षित करना चाहिए।
Published on:
30 Apr 2025 01:23 pm
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