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पत्रिका में प्रकाशित आज का अग्रलेख : कोई वोट गिनता है, कोई नोट

गर्मी का मौसम है, तपिश बढ़ रही है। तापमान भी 47-48 डिग्री सेल्सियस होता ही रहा है। राजस्थान के लिए तो कोई नई बात नहीं है। अभी तो ज्येष्ठ माह शुरू हुआ है।

जयपुरMay 25, 2024 / 11:55 am

Gulab Kothari

गुलाब कोठारी

गर्मी का मौसम है, तपिश बढ़ रही है। तापमान भी 47-48 डिग्री सेल्सियस होता ही रहा है। राजस्थान के लिए तो कोई नई बात नहीं है। अभी तो ज्येष्ठ माह शुरू हुआ है। चिल्ला अपना असर दिखाएगा। सरकारी अलर्ट भी जारी होते रहते हैं। वास्तव में तो ये मगरमच्छ के आंसू हैं। क्या कोई अधिकारी बता सकता है कि आज जिस तरह त्राहि-त्राहि मच रही है, लोग गर्मी से मर रहे हैं, उसका असली कारण क्या है? जो कारण फर्जी अंग-प्रत्यारोपण के पीछे हैं, जो कारण फर्जी डिग्रियां बांटने के पीछे हैं, जो कारण अवैध खनन के मूल में हैं, वही कारण इन मौतों के पीछे हैं। अधिकारियों की धन लोलुपता, जिसमें हर पांच साल में कई नए जनप्रतिनिधि भी जुड़ते जाते हैं।
आज सत्ता भ्रष्टाचार, अवैध कारोबार, लोभ और असंवेदन व्यवहार का पर्यायवाची बन गई है। आदमी, पशु-पक्षी व पेड़-पौधों का मरना इनके लिए कतई महत्वपूर्ण नहीं रह गया है। चूंकि सरकार चलाने में भी मुख्य भूमिका में अधिकारी होते हैं, अत: निर्णय और क्रियान्वयन इनके ही हाथ में रहते हैं। इनका लक्ष्य अपना स्वार्थ सिद्ध करना होता है। आदेश चाहे सरकार का हो, चाहे न्यायालय का, पालना तो इनकी मर्जी से होती रही है। किसी भी अवमानना में इनको कभी सजा नहीं होती। ज्यादातर जांच कमेटियाें में भी इनका ही वर्चस्व रहता है। कोई अधिकारी, दूसरे अधिकारी के विरुद्ध कठोर रिपोर्ट कम ही देता मिलेगा अथवा रिपोर्ट वर्षों तक ठण्डे बस्ते में धूल चाटेगी।
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रिकार्ड देख लें- किस साल में कौन से गांव का तालाब सूखा और किस साल में उस जमीन पर पट्टे कट गए- सड़कें बन गईं। कई बार तो रोक लगवाने के लिए न्यायालय के दरवाजे खटखटाने पड़े। क्या किसी अधिकारी को अपनी करतूतों पर शर्म आई? अजमेर के आनासागर और जयपुर के रामगढ़ तो आसुरी गतिविधियों के बड़े प्रमाण हैं। हाईकोर्ट के कितने आदेश धूल चाट रहे हैं-रामगढ़ को फिर से जीवित करने; अतिक्रमण हटाने के। जांच दल गठित हुए। क्या हुआ? लगभग 70-80 किलोमीटर के दायरे में सारे गांव-खेत-पशु-जलस्रोत उजड़ गए। इनकी बला से। इनको क्या मिला होगा-100-200 करोड़? पूरे राजस्थान में 1000-2000 करोड़? और गला कितनों का सूखा, उजाड़ कितना हुआ? आज भीषण गर्मी की त्राहि-त्राहि में क्या इन अधिकारियों की कोई भूमिका नहीं?
इसी का दूसरा पहलू है वर्षा जल निकास तंत्र। पिछली बरसात में जयपुर की कितनी बस्तियां मिट्टी में दब गई थीं। क्योंकि बसावट को लेकर कोई विभाग-अधिकारी-नेता गंभीर नहीं है। सब अवैध बसावट का मजा लेने में मस्त हैं। कोई वोट गिनता है, कोई नोट। चारों ओर रावण की लंका का दृश्य है। गांव-गांव में अवैध और अनियोजित बसावट से जल-निकास के मार्ग अवरुद्ध हो गए। इस कारण भी पुराने जल स्रोत पूरे भर नहीं पाते। अफसर भी यही चाहता है। जल स्रोतों के सूखने का सीधा प्रभाव क्षेत्र की हरियाली पर पड़ा है। खेती-तालाब के पेटे तक की-ध्वस्त हो गई। पशुओं के चारे का अकाल आ गया। 
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भौतिकवाद की स्पर्धा

अफसरों का इससे भी पेट नहीं भरता। रोज सड़कें चौड़ी करने के नाम पर, चार-छह लेन बनाने के नाम पर लाखों पेड़ काटकर खा जाते हैं। इनको नहीं मालूम कि भारत में पेड़ों की पूजा होती है। मनुष्य अपने कर्मों से ही पेड़-पशु आदि बनता है। आत्मा तो पेड़ों में, मनुष्यों में या यूं कहो, सभी 84 लाख योनियों में एक ही होता है। आधुनिक शिक्षा और भौतिकवाद की स्पर्धा ने अफसरों को भारतीय सांस्कृतिक परिवेश से दूर कर दिया। अंग्रेजियत इनकी हैसियत बन गई।
हमारा पर्यावरण भी बहुत कुछ जल आधारित है। शेष चार महाभूत भी हैं। किन्तु जंगलों की कटाई, जानवर पकड़ने के लिए जंगलों में आग, अवैध खनन। कौन करवा सकता है! हाल ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने केन्द्र सरकार को नोटिस देकर कम होती हरियाली, जंगलों की कटाई आदि के लिए चेतावनी दी है। देने वाले भी अधिकारी, लेने वाले भी अधिकारी। जब तक अधिकारी दिल से भारतीय-संवेदनशील -सर्वजनहिताय-वसुधैव कुटुम्बकम् को आत्मसात नहीं कर लेंगे, तब तक जलाभाव से मरना ही नए युग की परिभाषा होगी।

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