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लॉकडाउन के साइड इफेक्ट : प्याज उत्पादक किसानों की हालत खराब, 10 रुपये प्रति किलो से कम दामों में बेचने को मजबूर हैं किसान

प्याज वो सब्जी है, जिसके बिक्री दामों को लेकर भारत में सबसे अधिक हाहाकार मचता है।

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लॉकडाउन के साइड इफेक्ट : प्याज उत्पादक किसानों की हालत खराब, 10 रुपये प्रति किलो से कम दामों में बेचने को मजबूर हैं किसान

लॉकडाउन के साइड इफेक्ट : प्याज उत्पादक किसानों की हालत खराब, 10 रुपये प्रति किलो से कम दामों में बेचने को मजबूर हैं किसान

सुलतानपुर. अपने असामान्य दामों को लेकर केंद्र की पूर्ववर्ती अटल बिहारी बाजपेयी सरकार को हिलाकर रख देने वाली और समय-समय पर कई सरकारों के सामने मुश्किल खड़ी करने वाली प्याज अपने बिक्री दामों को लेकर इस बार प्याज उत्पादक किसानों को चिंता में डाल दिया है। प्याज वो सब्जी है, जिसके बिक्री दामों को लेकर भारत में सबसे अधिक हाहाकार मचता है। लगभग हर साल 2-3 महीने ऐसे होते हैं जिनमें प्याज के भाव आसमान छूने लगते हैं। इससे आम जनता से लेकर सरकार तक परेशान रहती है लेकिन इस बार प्याज के बिक्री दामों से प्याज उत्पादक किसान चिंता में है।

कारण यह है कि 75 से 80 रुपये प्रति किलो की दर से प्याज की बेहन (जरई) खरीद कर खेतों में लगाकर उत्पादन करने वाले किसानों को उनकी उपज का दाम न मिलने से लागत निकालना मुश्किल हो रहा है। अगर प्याज के मौजूदा बिक्री रेट पर नजर डालें तो नासिक, रींवा और राजस्थान सहित अन्य जगहों से आने वाली प्याज 10 रुपये प्रति किलो बिक रही है और देशी प्याज 8 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से खुले बाजारों में बिक्री के उपलब्ध है। देखा जाय तो यही प्याज दिल्ली में 20 रु प्रति किलो के भाव से बिक रही है। कई सरकारों के सामने मुश्किल खड़ी करने वाली इसी प्याज ने किसानों का बुरा हाल कर दिया है। प्याज को लेकर देश के कुछ शहरों से आ रही खबरों के अनुसार लॉकडाउन लगने के बाद कुछ बाजारों में किसानों को लॉकडाउन में एक रुपये प्रति किलो के भाव पर बेचनी पड़ रही है।

किसानों को लागत निकालना हो रहा मुश्किल

बाजारों में प्याज किसानों की हालत दिन -प्रतिदिन खस्ताहाल होती जा रही है। प्याज उत्पादक किसानों के लिए लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा है। देखने वाली बात यह है कि प्याज की फसल उगाने से लेकर मंडी पहुंचाने तक किसानों को प्रति किलो 8 से 9 रुपये तक खर्च करना पड़ता है। जिस रेट पर इस समय प्याज मंडियों में खरीदा-बेचा जा रहा उससे किसानों के लिए लागत निकालना नामुमकिन है क्योंकि किसान सरकार की तरफ से भी नाउम्मीद जो चला है।