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पिता की भूतिका निभाने वाला भी पिता, 4,876 बेटियों के पिता हैं महेश पापा

बच्चों को जन्म देने वाला ही पिता नहीं होता, पिता की भूमिका निभाने वाला भी पिता होता है। अपने बच्चों के लिए तो सभी करते हैं, बिना पिता के बच्चों को जो अपनाता है, वो इस धरती पर प्रत्यक्ष देव स्वरूप माना जाता है।

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सूरत

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Pradeep Joshi

Jun 19, 2023

पिता की भूतिका निभाने वाला भी पिता, 4,876 बेटियों के पिता हैं महेश पापा

पिता की भूतिका निभाने वाला भी पिता, 4,876 बेटियों के पिता हैं महेश पापा

प्रदीप जोशी. सूरत . सूरत में ऐसे ही एक पिता हैं, जिनकी 4,876 बेटियां दत्तक ली हुई है। ये सभी ऐसी बेटियां हैं, जिनके सिर से पिता का साया उठ चुका था। डायमंड और प्रॉपर्टी उद्यमी महेश सवाणी देश में संभवत ऐसे पिता हैं, जिन्होंने 4,876 बेटियों की शादी धूमधाम से करवाई है। आम शादियों की तरह प्रत्येक बेटी पर कई लाख रुपए खर्च करते हैं।

खास बात यह है कि शादी करवाने के बाद वे किसी बेटी को भूलते नहीं हैं। बाकायदा एक पिता की तरह जीवन पर्यंत बेटियों की जरुरतों और उनके ससुराल के रस्मो-रिवाज पूरा करते हैं। आश्चर्य यह है कि उन्हें सभी बेटियों के नाम याद हैं और उनकी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए एक सिस्टम के तहत सभी बेटियों को एक प्रोफाइल नंबर दे रखा है। वह उस नंबर के अनुसार भी बेटियों के नाम बता देते हैं। राखी, दशहरा, दिवाली हो या बेटी के ससुराल की कोई रस्म या मेटरनिटी, महेश भाई और उनका परिवार बाकायदा रस्मो की सामग्री इत्यादि लेकर पहुंचते हैं। बेटियां उन्हें महेश पापा कहती है, कोई बेटी उनके सामने आती है तो हजारों बेटियों को पालने वाले ऐसे आदर्श पिता को देखकर बरबस रोने लगती हैं। करीब 5000 बेटियों के भविष्य को ध्यान में रखकर दु:खद घड़ी या विधवा हो जाने पर 10,000 प्रतिमाह सहायता राशि का भी प्रावधान रखा है।

राजस्थान पत्रिका को महेश भाई बताते हैं कि सबसे पहले सन 2008 में उनकी कंपनी के एक कर्मचारी की मृत्यु हो जाने पर उसकी दो बेटियों की शादी करवाई। तब महसूस हुआ कि पिता का साया खो देने वाली बेटियों की कितनी मजबूरी होती होगी। उसके बाद उन्होंने 22, फिर 151 और चार बार 300- 300 बेटियों का विवाह करवाया। इस तरह अपने पिता को खो देने वाली 4,876 बेटियों का ब्याह करवा चुके हैं। जिनमें मुस्लिम, क्रिश्चियन व कई समुदाय की बेटियां शामिल है। इसके अतिरिक्त 12 बेटियां एचआईवी पीड़ित भी हैं। महेश भाई बताते हैं कि उन्हें यह संस्कार सादगी से रहने वाले उनके पिता वल्लभभाई से मिले, जो आज भी पजामा, कुर्ता, चप्पल और और टोपी पहन कर जीते हैं।