मान्यताओं के मुताबिक उद्गम से निकली नदी समुद्र से मिलने के लिए लंबा सफर तय करती है। समुद्र में समाने के बाद ही उसे मोक्ष मिलता है। सूरत की जीवनधारा बन चुकी तापी नदी बीते दो दशक से मोक्ष को तरस रही है। मध्यप्रदेश में बेतूल के मुलताई से निकली सूर्यपुत्री तापी करीब ७५० किमी लंबा सफर तय कर अपने पिता की नगरी सूरत (सूर्यपुर) पहुंचती है।
पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए सूरत के स्थानीय प्रशासन ने वर्ष १९९५ में करीब १५ किमी पहले सिंगणपोर में वीयर कम कोजवे बनाकर उसके प्रवाह को बाधित कर दिया। किताबों में भले अभी यही पढ़ाया जा रहा हो कि मुलताई से निकली नदी सूरत किनारे समुद्र में गिरती है, लेकिन हकीकत यह है कि तापी का अब समुद्र से मिलन नहीं होता।
महाभारत के आदिपर्व में उल्लेख
बैतूल जिले की मुलताई तहसील मुख्यालय के पास ताप्ती तालाब से निकलने वाली सूर्य पुत्री ताप्ती के जन्म का प्रसंग महाभारत के आदिपर्व में है। कहते हैं कि भगवान सूर्य ने स्वयं की गर्मी या ताप से अपनी रक्षा करने के लिए ताप्ती को धरती पर अवतरित किया था।
मानसून देता है मौका
मानसून के दौरान ही यह अवसर आता है, जब तापी पूरे वेग से बहती है और कोजवे पर उसे बांधे रख पाना संभव नहीं होता। उसी दौरान तापी बंधनमुक्त होकर समुद्र से मिलती है।
समुद्र आता है, लेकिन मिलता नहीं
तापी तो समुद्र तक नहीं जा पाती, लेकिन अमावस और पूर्णिमा पर जब भी भरती आती है, समुद्र की लहरें तापी की तरफ बढ़ती हैं। कोजवे पर बंधी तापी समुद्र की लहरों से नहीं मिल नहीं पाती। पानी उतरने के बाद तापी की सूखी रेत पर समुद्र के निशान बाकी रह जाते हैं।