
पेड़ कटे, वाहन बढ़े, बिगड़ गया चक्र
विनीत शर्मा
सूरत. जलवायु परिवर्तन किस तरह पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है, सूरत में रहकर इसे आसानी से समझा जा सकता है। 80 के दशक में सूरत का मौसम अमूमन सुहावना रहता था। न गर्मी की तपिश, न सर्दी की कंपकंपाहट। भरपूर बारिश और बारहमासी खुशनुमा मौसम के कारण सूरत लोगों को सहज आकर्षित करता था। बीते दो दशक से सूरत ही नहीं, समूचा गुजरात मौसम की मार झेल रहा है।
हीटवेव इन दिनों बड़ी आपदाओं के रूप में सामने है। बीते कुछ वर्षों में गुजरात भी उन राज्यों में शामिल हो गया, जो हीटवेव से प्रभावित हैं। इसका दायरा बढ़ रहा है। यह नए-नए क्षेत्रों को चपेट में ले रही है। जानकार इसके लिए सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार मानते हैं। एनडीएमए की रिपोर्ट पर यकीन करें तो एक साल के भीतर हीटवेव से प्रभावित राज्यों की संख्या १३ से बढ़कर १७ हो गई। गुजरात उन राज्यों में एक है, जहां हीटवेव के मामलों में सबसे ज्यादा तेजी आई है। इंडियन नेटवर्क फॉर क्लाइमेट चेंज असेसमेंट की रिपोर्ट को इंडीकेटर मानें तो पारा और बढऩा तय है। जिस तरह मानवीय हस्तक्षेप बढ़ रहा है, जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम आने बाकी हैं।
नवसारी कृषि विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त डॉ. विजय कुमार बताते हैं कि सूरत में 70-80 का दशक परिवर्तन के संकेत धीरे-धीरे देने लगा था। शहर में औद्योगिकीकरण को लेकर जिस तरह चेतना विकसित हुई, पर्यावरणीय मानकों को पीछे धकेल दिया गया। यही वजह है कि बारिश जहां पहले चार महीने तक होती थी, उसका साइकिल बीते एक दशक में घटकर महज डेढ़ से दो माह रह गया है। पूरे मानसून के दौरान साठ दिन से ज्यादा बारिश नहीं होती। बीते वर्ष तो शहर में यह आंकड़ा 15 दिन भी नहीं पकड़ पाया था।
हीटवेव से मौत की पहली खबर इसी साल २५ मार्च को सुरेंद्रनगर से आई थी। यह घटना अखबारों की सुर्खी बनी थी कि लक्ष्मीपारा निवासी 75 वर्षीय नूरजहां बेन की शेख भडिय़ाद की पीर दरगाह (अहमदाबाद के पास) यात्रा के दौरान हीटवेव से मृत्यु हो गई। उसकी मौत का कारण गर्मी का दौरा बताया गया था। हालांकि सरकार ने आधिकारिक रूप से इसे हीटवेव का असर नहीं माना। गुजरात के मौसम विभाग के मुताबिक पारा 40 पार करने के बाद ही हीटवेव का असर माना जा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि अहमदाबाद मौसम विभाग के मुताबिक उस दिन राज्य के 13 कस्बों का तापमान 40 डिग्री से अधिक था। सुरेंद्रनगर का तापमान 41.3 डिग्री था। मौसम विभाग ने सौराष्ट्र और समुद्र तटीय क्षेत्रों में हीटवेव की चेतावनी भी जारी की थी।
एक्शन प्लान में गुजरात अव्वल
गुजरात अकेला राज्य है, जिसने हीटवेव पर देशभर में सबसे पहले एक्शन प्लान तैयार किया। प्रदेश में यह काम वर्ष 2013 में शुरू हो गया था। वर्ष 2017 में इसे और प्रभावी बनाया गया। गुजरात एक्शन प्लान को मॉडल के रूप में लेकर अन्य राज्यों ने भी इस दिशा में कवायद शुरू की। चिकित्सकों के मुताबिक हीटवेव की मेडिकल में कोई परिभाषा नहीं है। बीमारी के लक्षण से कहते हैं कि हीटवेव लग गई। बीमारियां अन्य कारणों से भी हो सकती हैं।
दूसरा चेरापूंजी था दक्षिण गुजरात
दक्षिण गुजरात को कुछ साल पहले तक देश का दूसरा चेरापूंजी माना जाता था। बादल एक बार शहर समेत दक्षिण गुजरात के आसमान पर डेरा डाल दें तो फिर पूरी तरह रीत कर डेरा उठाते थे। लोग बताते हैं कि एक बार बारिश शुरू हुई नहीं, एक सप्ताह तक लोगों के लिए घर से निकलना मुश्किल होता था। यही वजह है कि दक्षिण गुजरात के किसान सिंचाई के लिए नहरों पर कम निर्भर रहे।
अब नहीं लगती झड़ी
बीते एक दशक में मानसून का चक्र तेजी से बदला है। सावन हो या भादों, अब बारिश की झड़ी कम ही लगती है। पहले मानसून के दौरान लोग अपने साथ रेनकोट लेकर निकलते थे कि पता नहीं कब अचानक बादल छा जाएं और बारिश की झड़ी लग जाए। अब तो हाल यह है कि बारिश शुरू भी हो गई तो थोड़े समय बरस कर बादल गुजर जाते हैं। कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने बीते कुछ वर्षों से मानसून के दौरान अपने साथ रेनकोट रखना बंद कर दिया है।
जलवायु का एनर्जी बैलेंस गड़बड़ाया
वैज्ञानिकों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन वास्तव में एक एनर्जी बैलेंस था, वह बैलेंस अब धीरे-धीरे हट रहा है। पहले पृथ्वी में जितनी ऊर्जा आती थी, उतनी ही वापस जाती थी। इस कारण हमारा वैश्विक तापमान संतुलित रहता था। औद्योगिक क्रांति के बाद जैसे-जैसे कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में बढ़ा, एनर्जी बैलेंस दूसरी दिशा में चला गया। इस कारण वातावरण में एनर्जी बढ़ गई। वैश्विक तापमान में वृद्धि इसी का नतीजा है।
घटते पेड़ बड़ी वजह
हीटवेव की घटनाओं में तेजी और बारिश का चक्र गड़बड़ाने के पीछे पेड़ों की घटती संख्या भी बड़ी वजह है। शहर में कंक्रीट के जंगलों का जाल जिस तेजी से बिछा है, हरे पेड़ विकास की भेंट चढ़ गए। अकेले बीआरटीएस प्रोजेक्ट में ही हजारों पेड़ कट गए। २०वीं सदी के आखिरी दशक में जहां प्रति सौ लोगों पर 85 पेड़ थे, वर्ष 2011 में राज्य सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक प्रति सौ लोगों पर शहर में महज 7.5 पेड़ हैं। डेन्सिटी की बात करें तो वर्ष 2017 में प्रति हैक्टेयर 8.4 पेड़ बचे हैं, जबकि वर्ष 2013 में यह आंकड़ा प्रति हैक्टेयर 36.25 था। मोटर्ड वाहनों की बात करें तो वर्ष 1961 में ईंधन चालित वाहनों की संख्या दो सौ भी नहीं थी, जो वर्ष 2000 में करीब दो लाख तक पहुंच गई। सदी के दूसरे दशक में वाहनों की संख्या में खासा इजाफा हुआ और यह आंकड़ा 25 लाख पार कर गया है। वीएनएसजीयू के डॉ. एस.के. टांक के मुताबिक ईंधन चालित वाहनों की संख्या का लगातार बढऩा और पेड़ों का कटना पर्यावरण के संतुलन को बिगाडऩे की प्रमुख वजह है। कार्बन का उत्सर्जन लगातार बढ़ा है, जबकि उसे नष्ट करने के संसाधन हमने नष्ट कर दिए हैं। वनाच्छादित घनत्व में यह आंकड़ा भविष्य की भयावह तस्वीर सामने रख रहा है। कटते पेड़ों और खत्म होते जंगलों के कारण कार्बन को सोखने वाले प्रमुख कारक को खत्म कर दिया गया।
कहां जाते हैं पौधे?
मनपा प्रशासन कई साल से पर्यावरण दिवस पर पौधरोपण अभियान चलाता है। इस दौरान लाखों पौधे बांटे जाते हैं और रोपे जाते हैं। बीते साल भी मनपा ने दो लाख से अधिक पौधे रोपे थे। एक साल के भीतर दो हजार पौधे भी कहीं नहीं दिखते। बीते साल रोपे गए पौधों में जीवित पौधों का कोई आंकड़ा मनपा के पास नहीं है।
Published on:
05 Jun 2018 08:43 pm
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