
सूरत. सचिन-मगदल्ला रोड के किनारे के करीब एक दर्जन गांव एक दशक पहले शहर की सीमा में तो आ तो गए, लेकिन लंबा वक्त गुजरने के बाद भी बेहाल हैं। गांवों की पुरानी व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है और शहरी सुविधाओं का नेटवर्क पूरी तरह नहीं बिछ पाया है। विकास के मायने यहां शहर के अन्य विकसित क्षेत्रों से अलग हैं। लोगों को सड़क, गटर, पानी की सुविधाएं तक नहीं मिल पाई हैं। खजोद गांव की सैकड़ों एकड़ जमीन पर शहर का लाखों टन कचरा बिखरा पड़ा है। प्रदूषण और दुर्गंध की वजह से कोई गांव में रहना नहीं चाहता। वर्ष 2006 में शहर की सीमा में 27 ग्राम पंचायतों और आठ नगर पालिकाओं का समावेश हुआ था। इन गांवों में करीब 12 साल बाद भी कुछ खास हुआ हो, यह दिखाई नहीं देता। शहर की सुविधाओं में सर्वाधिक जरूरी चीजें अर्बन हेल्थ सेंटर और कनेक्टिविटी हैं, लेकिन इन गांवों को न तो हेल्थ सेंटर मिले, न सिटी बस या मास ट्रांसपोर्टेशन का लाभ मिला। सत्ता पक्ष का दावा है कि शहर में 90 फीसदी से अधिक क्षेत्रों में गटन नेटवर्क का काम पूरा हो चुका है। यह दावा फिलहाल इन गांवों में खोखला दिखाई देता है। गभेणी गांव के पुराने तालाब में गटर का गंदा पानी जाता है। तालाब से उठती दुर्गंध पूरे गांव में फैलती है। शाम होते ही मच्छरों की भरमार के कारण लोगों की परेशानी बढ़ जाती है। लोगों ने गांव के पुराने तालाब के सौंदर्यीकरण की मांग की, लेकिन इसकी बाउंड्री तक नहीं बनाई गई। इसके कारण धीरे-धीरे तालाब में कचरा डालने और अतिक्रमण का सिलसिला शुरू हो गया। तालाब का आकार छोटा होता जा रहा है। गांव में सड़क और गटर का नेटवर्क नहीं होने से लोग खुली नालियों में गंदा पानी बहाते हैं।
आरोग्य केन्द्र का अभाव
खजोद डिस्पोजल साइट और सचिन के आसपास के इंडस्ट्रियल क्षेत्र के कारण सचिन-मगदल्ला रोड के एक दर्जन गांवों में प्रदूषण की समस्या है। लोगों में एलर्जी और दूसरी कई बीमारियों की शिकायत है। इस क्षेत्र में जो भी आरोग्य केन्द्र हैं, दूर हैं। खजोद, सरसाण, भीमराड आदि कई गांवों के लोगों को इलाज के लिए अलथाण और भटार जैसे दूर-दराज के क्षेत्रों में आना पड़ता है।
रोजाना कचरे के डेढ़ सौ से अधिक वाहन
भीमराड गांव से थोड़ी दूर खजोद डिस्पोजल साइट है। इस साइट तक जाने के लिए भीमराड गांव के बाहर की मुख्य सड़क है। इससे होकर रोजाना डेढ़ सौ अधिक कचरे की बड़ी गाडिय़ां जाती हैं। लोगों का कहना है इन गाडिय़ों की वजह से उन्हें बच्चों को अकेले स्कूल भेजन में भय लगता है। कचरा गाडिय़ों से उठती दुर्गंध और गिरते कचरे के कारण मुख्य सड़क ही हालत भी खराब है।
यहां भी वर्षांे से झांसा
प्रशासन ने कई साल पहले भीमराड गांव के तालाब के पीपीपी मॉडल पर सौंदर्यीकरण की बात कही थी, जो आज तक जस का तस पड़ा है। यहां लोगों को मिट्टी भराव और पानी के दूषित होने की चिंता सता रही है। लोगों ने तालाब के पास महात्मा गांधी के नमक कानून तोड़ो आंदोलन की याद में प्रदर्शनी केन्द्र बनाने की मांग की है। भीमराड के करीब डेढ़ सौ मकानों के लोग बुनियादी सुविधाओं से एक दशक से वंचित हैं। गांव की फाजिल जमीन पर उन्होंने आवास बना रखे हैं। मनपा की स्थाई समिति ने वर्ष 2012-13 में इन्हें बुनियादी सुविधाएं देने का प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन इस पर अब तक काम नहीं हुआ।
बुडिया गांव में स्पोट्र्स कॉम्प्लेक्स की मांग
समुद्री किनारे के कई गांवों के खिलाडिय़ों ने राज्य स्तर पर बेहतर प्रदर्शन कर सूबे में नाम कमाया है, लेकिन अपनी प्रतिभा की बदौलत। एक दर्जन से अधिक गांवों के लिए मनपा प्रशासन एक खेल का मैदान उपलब्ध नहीं करा सका। रांदेर जोन में जब अंतरराष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट ग्राउंड की मंाग उठी तो कांग्रेस पार्षद भद्रेश परमार ने इसे अपने वार्ड में बनाने को कहा था। उन्होंने मनपा की सामान्य सभा में इन गांवों में बेकार पड़ी जमीन का हवाला देते हुए हुए सभी सुविधाएं शहरों तक सीमित नहीं रखने की मांग की थी। उन्होंने बुडिया गांव में खेल ग्राउंड बनाने की मंाग की थी, लेकिन बाद में यह पालनपोर-भेंसाण में बनाने का निर्णय हुआ।
पंचायत के भवनों का कब्जा नहीं
शहर की सीमा में आने से पहले पंचायत की ओर से हुए विकास कामों का कॉरपोर्रेशन अभी तक कब्जा नहीं ले पाई है। कई भवन अब जर्जर और बेकार पड़े हैं, जिनमें समाजकंटकों ने कब्जा जमा लिया है। लोगों का कहना है कि मनपा इन्हें अपने अधीन कर इनका उपयोग हेल्थ सेंटर, आंगनबाड़ी या दूसरी सुविधाओं के लिए करे।
तालाब का सौंदर्यीकरण हो
पुराने गाम तालाब के विकास की बातें कई साल से हो रही हैं। यह तालाब पशुओं के पानी पीने और नहलाने के काम में उपयोग हो रहा है। शहर में जगह-जगह लेक गार्डन बन रहे हैं, यहां इतनी देरी क्यों?
चेतन पटेल, भीमराड
बुनियादी सुविधाएं मिलें
गामतल के समीप फाजिल जमीन पर बने करीब डेढ़ सौ मकानों के लिए बुनियादी सुविधाएं नहीं मिली हैं। गटर, पानी और दूसरी सुविधाओं के लिए मनपा ने प्रस्ताव पारित किया। कई साल बाद भी लोग इनके लिए तरस रहे हैं।
बंकिम पटेल, भीमराड
गुजरते हैं दर्जनों ट्रक
भीमराड गांव को जोड़ती सड़क भारी वाहनों की आवाजाही की वजह से खतरनाक है। हमेशा दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है। कचरे से भरी गाडिय़ों को दूसरी सड़क से खजोद डिस्पोजल प्लांट की ओर भेजा जाना चाहिए।
जयेश पटेल, भीमराड
दुर्गंध देता है तालाब
तालाब में गंदगी और गटर का पानी जाता है। तालाब के सौंदर्यीकरण की बात तो दूर, यहां अतिक्रमण शुरू हो चुका है। प्रशासन इसे घेर कर पानी शुद्ध करने का उपाय करे।
योगेश खलासी, गभेणी
युवाओं के लिए प्रवृत्तियां जरूरी
गांव के युवाओं के लिए सकारात्मक प्रवृत्तियों का घोर अभाव है, यही वजह है कि अच्छे और प्रतिभा सम्पन्न युवकों में भटकाव शुरू होता है। यहां समुद्री किनारे के कई युवाओं की खेल प्रतिभा उल्लेखनीय है, लेकिन आसपास कई किलोमीटर तक कोई खेल का मैदान नहीं है।
हितेश पटेल, गभेणी
प्रदूषण अधिक
आसपास की इंडस्ट्रीज के कारण गांव में प्रदूषण की मात्रा अधिक है। लोग स्वच्छ और साफ माहौल में जीना चाहते हैं। प्रशासन ने न तो कोई उद्यान के लिए सोचा है, न ही कोई हरित पट्टी तैयार की है। गांव का तालाब भी प्रदूषित हो चुका है।
मोहम्मद शोएब ए.एच. शेख, गभेणी
खुली नालियों से गंदगी
गांव में डे्रेनेज नेटवर्क पूरी तरह से नहीं आया है। इसके कारण कई जगह खुली नालियां हैं। गंदगी से उफनती इन नालियों के कारण बीमारियों की आशंका रहती है।
कुलदीपभाई साहु, प्रमुख शिवशक्तिनगर, गभेणी
स्ट्रोम का नेटवर्क बाकी
गांव का पानी खाड़ी के जरिए समुद्र में जाता है, प्रशासन ने यहां स्ट्रोम की चिंता नहीं की। मुख्य समस्या प्रदूषण की है। खजोद में कचरा जलाने की समस्या जस की तस है। कचरे के वैज्ञानिक डिस्पोजल में संदेह है। आसपास का पूरा वातावरण प्रदूषित और जानलेवा है।
प्रकाश कांट्रेक्टर, परिवर्तन ट्रस्ट
दो साल से ड्रेनेज नेटवर्क की मांग
शहर की सीमा में आए गांवों के लिए डे्रेनेज नेटवर्क की मंाग दो साल से कर रहा हूं। प्रशासन ने पंपिंग स्टेशन बनने पर समस्या के समाधान का भरोसा दिया है, जमीन मिलेगी तो पंपिंग स्टेशन बनने की बात कही गई है। पंचायत की जगह-मकानों का मनपा अभी तक कब्जा नहीं ले पाई है, इन जगहों पर अतिक्रमण हो रहा है। न्यूसेंस भी ज्यादा है।
भद्रेश परमार, कांग्रेस पार्षद, वार्ड-29
जमीन के कब्जे की दिक्कत
पुराने गांवों में जमीन के कब्जे की वजह से ड्रेनेज नेटवर्क या पंपिंग स्टेशन का काम नहीं हुआ है। वर्ष 2006 के बाद शहर में समाहित हुए गांवों का विकास हमारी प्राथमिकता है, काफी काम भी हो चुके हैं। हो सकता है कुछ गलियों में काम नहीं हुआ हो तो वहां जगह के कब्जे का सवाल रहा होगा।
सुधा नाहटा, चेयरमैन, ड्रेनेज कमेटी, मनपा

Published on:
02 Feb 2018 09:59 pm
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