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बच्चों की सेहत पर भारी पड़ रहा बढ़ता डिजिटल स्क्रीन टाइम

बच्चों के हाथ में आए मोबाइल ने उनके स्वास्थ्य ही नहीं पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित किय है

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सूरत

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Vineet Sharma

Sep 14, 2023

बच्चों की सेहत पर भारी पड़ रहा बढ़ता डिजिटल स्क्रीन टाइम

बच्चों की सेहत पर भारी पड़ रहा बढ़ता डिजिटल स्क्रीन टाइम

विनीत शर्मा

कोलकाता. कोरोना से भले पार पा ली हो, लेकिन कोरोना बच्चों के भविष्य से खूब खिलवाड़ करके गया है। स्कूल-कॉलेजों में ऑनलाइन पढ़ाई हो या फिर बच्चों को घर में रखने की मजबूरी, उनके हाथ में आए मोबाइल ने उनके स्वास्थ्य ही नहीं पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित किय है। ऑनलाइन शिक्षा के लिए भले डिजिटल टेक्नोलॉजी को रामबाण माना जा रहा हो। यूनेस्को की ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट इससे सहमत नहीं दिख रही। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि बच्चों की शिक्षा में टेक्नोलॉजी की अहम भूमिका नहीं है। डॉक्टर्स भी मानते हैं कि बच्चों के अत्यधिक स्क्रीन टाइम से उनकी पढ़ाई और मानसिक स्थिरता दोनों प्रभावित हो रही है।

कोरोना की विदाई के दो साल बाद भी बच्चों के हाथ से मोबाइल नहीं छूट पाया। कई रिपोर्ट्स में इस बात का जिक्र है कि अधिक स्क्रीन टाइम बच्चों में चिंता, तनाव और उदासीनता को बढ़ाता है। वहीं, मोबाइल पर बढ़ती निर्भरता गरीब तबके के उन बच्चों पर भी बड़ा मानसिक असर डाल रही है जिनके पास हाई-फाई मोबाइल खरीदने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। इससे शिक्षा की खाई और गहरी हो रही है।

कोविड के दौरान बच्चों की पढ़ाई का जो नुकसान हुआ वह सबके सामने है। ऑनलाइन क्लासेस के नाम पर गरीब बच्चे इसी वजह से पढ़ाई में पिछड़ गए कि स्मार्ट फोन उनकी पहुंच से बाहर थे। कोरोना से उबरने के बावजूद बच्चों का स्क्रीन टाइम कम नहीं हुआ है। यह किसी से छिपा नहीं है कि बच्चे जितना वक्त मोबाइल से पढ़ाई में खर्च कर रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा वक्त मोबाइल पर गेम खेलने या दूसरी चीजों पर खर्च हो रहा है। डिजिटल स्क्रीन टाइम से बच्चों पर होने वाले नुकसान की बात करें तो मोटापा, नींद पूरी नहीं होना, आंखों की कमजोरी के साथ ही बैठने के तरीके पर भी बुरा असर पड़ रहा है। इसके अलावा मानसिक विकास का रुक जाना, नकारात्मक विचार, मानसिक उद्वेलन और ड्रग्स के शिकार भी हो रहे हैं। पिछले दिनों मोबाइल पर गेम खेलने के दौरान आत्महत्या की प्रवृत्तियों की खबरें भी ख्ूाब सामने आई थीं। इसकी एक वजह यह भी है कि बच्चों का बाहर निकलना छूटता जा रहा है। गलियों में या खेल के मैदानों में बच्चों का जमघट नहीं जुटता। मोबाइल के जंजाल में उलझे बच्चे एकाकी होते जा रहे हैं।

इंडियन एकडेमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की मार्च 2022 में आई रिपोर्ट भी इसकी तस्दीक करती है। बाल रोग विशेषज्ञ भी यही सलाह दे रहे हैं कि दो साल से छोटे बच्चों को किसी भी तरह की स्क्रीन से पूरी तरह दूर रखना चाहिए। दो से 5 साल के बच्चों का स्क्रीन टाइम पूरे दिन में अधिकतम एक घंटे और एक बार में अधिकतम 20 से 30 मिनट ही होना चाहिए। 5 से दस साल तक के बच्चों के हाथ में दिनभर में दो घंटे से ज्यादा देर के लिए मोबाइल नहीं दिया जाना चाहिए।

ऐसा नहीं कि अभिभावक इन खतरों को नहीं समझ रहे। असल मुश्किल यह है कि कुछ अपनी व्यस्तताओं और कुछ दूसरी मजबूरियों की वजह से बच्चों पर नियंत्रण की डोर उनके हाथ से छूटती जा रही है। जरूरत इस बात की है कि बच्चों के भविष्य की खातिर उनके साथ संवाद बढ़ाना होगा। परिवार में बच्चों से संवाद की स्थितियां बनेंगी तो उनसे मोबाइल खुद ब खुद छूट जाएगा।