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संत के आशीर्वाद ने चमका दी थी बिड़ला परिवार की किस्मत, पढि़ए कैसे…

राजस्थान में शेखावाटी अंचल के औघड़ वरदानी संत पंडित गणेश नारायण उर्फ बावलिया बाबा माने जाते हैं चमत्कारीबिड़ला उद्योग समूह का भारत सहित विश्व भर में है नामबावलिया बाबा को दाल का बड़ा, चने की सब्जी और हलवा प्रिय था

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सूरत

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Sunil Mishra

Jan 19, 2020

संत के आशीर्वाद ने चमका दी थी बिड़ला परिवार की किस्मत, पढि़ए कैसे...

babaliya baba

वापी. शेखावाटी के औघड़ वरदानी संत पंडित गणेश नारायण उर्फ बावलिया बाबा को शेखावाटी के लोग प्यार से बावलिया बाबाके नाम से पुकारते हैं। इनका जन्म झुंझुनूं जिले के बुगाला गांव में हुआ था। वे ज्योतिष एवं कर्मकांड के प्रकाण्ड विद्वान एवं मां दुर्गा के परम उपासक थे। कहा जाता है कि बावलिया बाबा के आशीर्वाद से ही भारत का प्रसिद्ध बिड़ला उद्योग समूह उद्योग धंधे में विश्वभर में कीर्तिमान स्थापित कर सका है।

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माताजी का साक्षात्कार होने वाला था, तभी लोगों ने दरवाजा खोल दिया
भक्त बताते हैं कि एक बार वे नौ दिनों तक पास के शिवालय के कमरे में उपासना में लीन थे और माताजी का साक्षात्कार होने वाला था, तभी लोगों ने दरवाजा खोल दिया। इसके बाद उनके जीवन की धारा बदल गई। वे अघोरियों की तरह श्मशान में रहने लगे। शरीर पर नीला कपड़ा लपेट कर रहते थे। अपने पास एक हंडी रखते और उसमें ही खाना भी खाते। मां दुर्गा के आशीर्वाद से वे वचनसिद्ध हो गए थे। उनका हर आशीर्वाद लोगों का जीवन बदलने लगा। उनका यह चमत्कार देख कई लोग उनके परमभक्त हो गए थे। वहीं कई लोग उनसे डरने भी लगे थे, क्योंकि वे अनिष्ट घटना का भी पूर्व संकेत कर देते थे। सच्चे साधक होने के बावजूद भी उनके रहन सहन व वेशभूषा देखकर सामान्य लोग उन्हें पागल मानते थे। बाद मे वे चिड़ावा कस्बे में आकर रहने लगे। उनके प्रमुख शिष्यों में खेतड़ी के महाराज अजीत सिंह भी थे, जिन्होंने स्वामी विवेकानंद को अपने खर्च से धर्मसंसद में भाग लेने अमेरिका में भेजा था। बावलिया बाबा के आशीर्वाद से ही बिड़ला परिवार उद्योग व्यापार में कीर्तिमान स्थापित कर सका। संवत 1969 में पौष माह की नवमी को उन्होंने नश्वर देह त्याग दिया। उनके संस्कार स्थल पर भव्य मंदिर बना है। पास ही उनकी स्मृति में बिड़ला परिवार द्वारा निर्मित ऊंचा स्तूप है जिस पर ब्रह्मा विष्णु व महेश की मूर्तियां लगी हैं। देशभर में जहां-जहां शेखावाटी क्षेत्र के लोग निवास करते हैं वहां उनकी पुण्यतिथि पर भजन कीर्तन और भंडारे का आयोजन होता है। मुंबई एवं कोलकाता जैसे कई महानगरों में उनके नाम अनेक धर्मार्थ संस्थान सेवा कार्य कर रहे हैं। उन्हें दाल का बड़ा, चने की सब्जी और हलवा प्रिय था। इस लिए उनके भंडारे में इसी प्रसाद का वितरण श्रद्धालुओं को किया जाता है। उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धालु भव्य कार्यक्रम करते हैं।