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छोटे वीवर्स के उद्योग की टूट गई कमर

लोगों का रोजगार प्रिोसेसर्स की हालत भी ढीली

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छोटे वीवर्स के उद्योग की टूट गई कमर

सूरत
जीएसटी की मार से कपड़ा उद्योग का अहम हिस्सा वीविंग भी अछूता नहीं बचा। इसने छोटे वीवर्स की कमर तोड़ दी। सूरत में 12 मशीन से लेकर 1200 मशीन चलाने वाले वीवर्स हैं। जीएसटी से पहले छोटे-बड़े सभी वीवर्स को पर्याप्त काम मिलता था, लेकिन अब सबकी मुसीबत बढ़ गई है। व्यापार घट गया तो हिसाब की उलझन बढ़ गई। बड़ी समस्या इनपुट टैक्स क्रेडिट ने बढ़ा दी। व्यापारियों का लगभग एक हजार करोड़ का रिफंड देने में सरकार आना-कानी कर रही है। इससे भी वीवर्स निराश हैं। उनका कहना हैं कि यार्न पर 12 प्रतिशत ड्यूटी और जॉब वर्क पर पांच प्रतिशत ड्यूटी से उनका तीन-चार प्रतिशत टैक्स क्रेडिट बच जाता है, जो सरकार को रिफंड करना चाहिए। लेकिन सरकार इससे मानने को तैयार नहीं। व्यापारियों ने केन्द्र सरकार से कई बार गुहार लगाई लेकिन सुनवाई नहीं हुई। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटे वीवर्स लूम्स मशीनों को भंगार में बेच रहे हैं। सादा लूम्स 22000 रुपए, एलघोड़ी 24000, छूटी घोड़ी 25000 रुपए तथा टीएफओ 100 प्रति स्पिन्डल के दाम से बिक रही है। लगभग एक लाख से ज्यादा मशीनें भंगार में बिक चुकी हैं और तीन लाख लोगों का रोजगार छिन गया है। एक साल पहले प्रतिदिन चार करोड़ मीटर कपड़े का उत्पादन होता था, जो अब दो लाख पर आ गया है।


प्रोसेसर्स की मानें तो जीएसटी से जॉबवर्क घटता जा रहा है। प्रोसेसर्स भी इनपुट टैक्स क्रेडिट रिफंड मांग कर रहे हैं। साउथ गुजरात टैक्सटाइल प्रोसेसर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने बताया कि दक्षिण गुजरात में लगभग 400 से अधिक डाइंग प्रोसेसिंग यूनिट हैं। उनका 500 करोड़ रुपए का इनपुट टैक्स क्रेडिट सरकार की तिजोरी में पड़ा है। इस बारे में उन्होंने राजस्व सचिव हसमुख अडिय़ा, कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी से लेकर सबके दरवाजे खटखटाए, लेकिन कहीं बात नहीं बनी। सिर्फ आश्वासन मिला, रिफंड कब से मिलेगा स्पष्ट नहीं। एक ओर कलर-केमिकल सहित तमाम रॉ-मेटेरियल्स की कीमत लगातार बढ़ रही है, लेकिन जीएसटी के कारण उद्यमियोंं के पास काम नहीं होने से वे कम कीमत पर भी जॉबवर्क ले रहे हैं। फिनिश्ड फैब्रिक्स में मदी के कारण उनको भी सप्ताह में दो दिन अवकाश की नौबत है। कई प्रोसेसर्स ने तो मशीनें बेचकर जमीन किराए पर दे दींछन गया है। एक साल पहले प्रतिदिन चार करोड़ मीटर कपड़े का उत्पादन होता था, जो अब दो लाख पर आ गया है।