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उपेक्षा का शिकार ऐतिहासिक सोनगढ़ किला

करीब चार सौ वर्ष पूर्व निर्मित किला रखरखाव के अभाव में जर्जर

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उपेक्षा का शिकार ऐतिहासिक सोनगढ़ किला

सूरत. सरकारें पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से देश-प्रदेश में नई-नई विरासतें बना रही है वहीं, सदियों पुराने ऐतिहासिक किले मानों उनकी ही उपेक्षा का शिकार बन जीण-शीर्ण हो रहे है। सूरत से मात्र 85 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में सोनगढ़ का चार सौ वर्ष पुराना ऐतिहासिक किला उपेक्षा की बानगी बना हुआ है।
इन दिनों विश्व विरासत सप्ताह मनाया जा रहा है और 11 से 25 नवम्बर की अवधि में गुजरात के विभिन्न शहर-कस्बों की प्रमुख धरोहरों के बारे में प्रशासन की ओर से स्कूल-कॉलेज के छात्रों को जानकारी दी जा रही है। इन सबके बीच सूरत के नजदीक तापी जिले का ऐतिहासिक सोनगढ़ किला लगातार उपेक्षित रहने से जर्जर हो चला है। इसके बावजूद यहां भ्रमण के लिए सैलानी तकलीफें उठाकर पहुंचते है। सूरत से मय परिवार गए जयेश भरवाड़ ने इस संबंध में बताया कि सोनगढ़ किले का काफी पुराना इतिहास है लेकिन रख-रखाव के मामले में उतना ही बुरा हाल है। किले में महाकाली मंदिर, अम्बाजी मंदिर, रानी की वाव (बावड़ी), शीतल जल का कुंड समेत कई दर्शनीय स्थल है मगर देखभाव व मरम्मत के अभाव में दिन-ब-दिन इसकी हालत खराब होती जा रही है। वहीं, नवसारी से पहुंचे एक पर्यटक ने बताया कि प्रशासन चाहे तो सोनगढ़ किले का रखरखाव तरीके से कर इसे दक्षिण गुजरात के मानचित्र में पर्यटन के बेहतर स्थल के रूप में विकसित कर सकता है।


390 साल पुराना सोनगढ़ किला


मेवासी भीलों को हराकर पीलाजीराव गायकवाड़ ने 1719 में सोनगढ़ की पहाड़ी पर कब्जा जमाया था और बाद में महाराष्ट्र सीमा पर सुरक्षा चौकी के रूप में सोनगढ़ किले का निर्माण 1728-29 में करवाया। वहीं, स्थानीय लोग इसे शिवाजी महाराज के सिंहगढ़ के रूप में स्थापित किए जाने की भी बात बताते हैं, जिसकी सुरक्षा उनकी सेना में शामिल मेवासी भील करते थे। इन्हीं को हराकर गायकवाड़ ने सोनगढ़ किले को थाने के रूप में बसाया।


बरसात में बह गई सडक़


करीब पौने चार सौ फीट की ऊंचाई पर पहाड़ी पर बने सोनगढ़ किले तक पहुंचने के लिए सोनगढ़ नगरपालिका ने कई वर्ष पहले रास्ते का निर्माण करवाया था, जिससे पर्यटक दुपहिया वाहनों से किले की सीढिय़ों तक पहुंच सकते है। मगर बरसात से सडक़ बह गई और अब केवल कच्चा रास्ता शेष है, जिससे वाहनचालक ऊपर तक जाने के लिए वाहन के इस्तेमाल का खतरा नहीं उठाते। पहाड़ी पर करीब ढाई-तीन किमी के क्षेत्रफल में किला बना हुआ है।


मात्र एक बुर्ज सलामत


सीधी चढ़ाई वाली पहाड़ी पर निर्मित सोनगढ़ किले के मुख्यद्वार के पास केवल एक बुर्ज सलामत है जबकि शेष दर्जनों बुर्जे देखरेख के अभाव में खंडहर में तब्दील हो चुकी है। वहीं किला परिसर में निर्मित पुराने कमरों में पुलिस चौकी, फ्लड वायरलैस सेंटर, वन विभाग चौकी आदि है। किले के नीचे पश्चिम व दक्षिण दिशा में कई स्टोन क्वॉरी है, जहां ब्लास्टिंग से पत्थर खनन किए जाने से भी किले की सुरक्षा प्राचीरें दिन-ब-दिन कमजोर होती जा रही है।


दशहरे पर लगता है मेला


नवरात्र पर्व के दौरान सोनगढ़ व आसपास के आदिवासी माताजी की भक्ति करते हैं और पूर्णाहुति के मौके पर दशहरे के दिन सोनगढ़ किले में लगने वाले वर्षों पुराने मेले में आते है। यहां महाकाली मंदिर, अम्बा मंदिर में गरबा, पूजा-आराधना समेत अन्य आयोजन किए जाते हैं, जिसमें आसपास के सैकड़ों आदिवासी लोग जमा होते है। जानकार बताते है कि मेले के दौरान ही आदिवासी युवक-युवतियों के संबंध भी होते है जिनके विवाह दीपावली बाद आयोजित किए जाते है।


और भी है देखने लायक स्थल


व्यारा शहर से 18 किलोमीटर दूर सोनगढ़ कस्बे में सोनगढ़ किले के अलावा अन्य स्थल भी देखने लायक है। यहां भी सालभर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है।
परशुराम महादेव मंदिर 5 किमी
रोकडिय़ा हनुमान मंदिर 5 किमी
दोसावड़ा बांध व रानी महल ५ किमी
हाइड्रो पावर सेंटर 5 किमी
गोमुख 13 किमी
ऊकाई बांध 13 किमी
चिमर प्रपात 28 किमी

दुर्दशा के लिए वनविभाग जिम्मेदार


सोनगढ़ किला वनविभाग के जिम्मे है और सोनगढ़ नगरपालिका यहां उनकी अनुमति के बगैर कोई निर्माण नहीं करवा सकती। कुछ साल पहले सहमति से ऊपर तक जाने के लिए मार्ग बनाया था, वो भी पूरी तरह खराब हो चुका है। वहीं, किला जगह-जगह से जीर्ण-शीर्ण है।
सुनील शर्मा, पूर्व चेयरमैन, कारोबारी कमेटी, सोनगढ़ नगरपालिका