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कोरोना वायरस: कभी चीन से युद्ध के दौरान इस शक्ति पीठ से टैंक लेकर रणभूमि को निकली थीं देवी मां

- अष्टमी आज : देवी मां महागौरी का दिन - उस समय भी देश में आर्थिक संकट छाने के साथ ही देश विषम परिस्थितियों की ओर बढ़ रहा था

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covid-19 status on navratra Asthami : story of goddess on tank at war

पूरे देश में जहां आज कोरोना की दहशत है, वहीं इस वायरस के चीन से आने की बातें भी साफ तौर पर सामने आ रही है। इस वायरस ने जहां आज पूरे देश में परेशानी खड़ी कर रखी है, वहीं पूरी दुनिया की इसके चलते आर्थिक स्थिति भी गड़बड़ा रही है।

चूंकि आज कल नवरात्र के दिन चल रहे हैं, ऐसे में आज हम आपको एक ऐसी घटना के बारे में बता रहे हैं, जो चीन व भारत से सीधे तौर पर जुड़ी हुई है। वहीं आज से करीब 58 साल पहले भारत और चीन के बीच युद्ध के दौरान ऐसे समय में पीतांबरा पीठ दतिया के अधिष्ठाता श्रीस्वामीजी महाराज ने शत्रु सेना से देश की रक्षा के लिए पीठ पर गुप्त अनुष्ठान किया था जिसमें देवी धूमावती का आह्वान किया गया था।

टैंक पर सवार होकर हाथ में हंटर लिए देवी...
बताया जाता है कि अनुष्ठान के 21 वें दिन देवी धूमावती अपने विशाल, अति भयंकर संहारक रूप में प्रकट हुईं और पीठ से सीधे युद्ध क्षेत्र की ओर कूच किया। टैंक पर सवार होकर हाथ में हंटर लिए देवी ने युद्ध क्षेत्र में अति भयंकर गर्जना के साथ जैसे ही शत्रु सेना का संहार शुरू किया उसमें भगदड़ मच गई। जो चीनी सैनिक जितनी तेजी से भारतीय सीमा में घुसे थे वे उतनी ही तेजी से वापस भागने लगे। शक्ति के इस चमत्कार के बाद आश्चर्यजनक रूप से चीन ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी थी।

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ऐसे में आज के दौर में चीन से आए इस वायरस को लेकर भी जानकार इन्हीं देवी मां की शरण में जाने को सबसे सुरक्षित बता रहे हैं।

ऐसे समझें पूरी कथा...
दरअसल दतिया की मां पीतांबरा पीठ पूरे देश में मशहूर है। मान्यता है यहां मां के दरबार में किए गए हवन यज्ञ कभी असफल नहीं होते हैं, माथा टेकने पर बिगड़े हुए काम भी बनते हैं। बड़ा उदाहरण है 1962 में यहां हुआ हवन यज्ञ।

बताया जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने चीन से युद्ध के दौरान मंदिर के महंतों से हवन कराया था। इसके बाद चीन ने अपनी सेना को वापस बुला लिया था। इसके प्रमाण मां पीताम्बरा मंदिर में भी देखने को मिलते हैं। भारत और चीन में युद्ध छिड़ा हुआ था, उस समय देश में आर्थिक संकट छा गया था और देश विषम परिस्थितियों की ओर बढ़ रहा था।

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तभी पंडित नेहरू को उनके सलाहकारों ने बताया कि मां के मंदिर में पूजा अर्चना और हवन यज्ञ कराने से हम पर आ रही विपदा का निराकरण हो सकता है। हवन के अंतिम दिन पूर्णआहूति दी गई और उसी समय यह समाचार मिला कि चीन ने अपनी सेना वापस बुला ली है और युद्ध पर विराम लग गया है। इस घटना के बाद से पीताम्बरा मंदिर में श्रद्धालुओं की गहरी आस्था जुड़ गई।

एक दिन में 3 बार रूप बदलती हैं मां...
पीतांबरा पीठ मंदिर की एक और मान्यता है, यहां विराजित मां बगुलामुखी एक ही दिन में अपने तीन रूप बदलती हैं। बदला हुआ रूप प्रात: दोपहर और शाम के समय देखा जा सकता है। यह वहां के लोगों के लिए सामान्य है, लेकिन बाहर के लिए नहीं।

ऐसे समझें पीतांबरा पीठ में किया गया था अनुष्ठान
यह बात करीब 58 साल पहले 1962 की है जब भारत पर चीन की सेना ने आक्रमण किया था और उसकी सेना तेजी से भारतीय क्षेत्रों में प्रवेश करती जा रही थी। ऐसे समय में पीतांबरा पीठ दतिया के अधिष्ठाता श्रीस्वामीजी महाराज ने शत्रु सेना से देश की रक्षा के लिए पीठ पर गुप्त अनुष्ठान किया था, जिसमें देवी धूमावती का आह्वान किया गया था।

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21वें दिन प्रकट हुईं थी देवी मां...
अनुष्ठान के 21वें दिन देवी धूमावती अपने विशाल,अति भयंकर संहारक रूप में प्रकट हुईं और पीठ से सीधे युद्ध क्षेत्र की ओर कूच किया। टैंक पर सवार होकर हाथ में हंटर लिए देवी ने युद्ध क्षेत्र में अति भयंकर गर्जना के साथ जैसे ही शत्रु सेना का संहार शुरू किया उसमें भगदड़ मच गई। जो चीनी सैनिक जितनी तेजी से भारतीय सीमा में घुसे थे वे उतनी ही तेजी से वापस भागने लगे। शक्ति के इस चमत्कार के बाद आश्चर्यजनक रूप से चीन ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी थी।

85 ब्राह्मण शामिल हुए थे अनुष्ठान में
अनुष्ठान के लिए 100 विशेष कर्मकांडी ब्राह्मणों की आवश्यकता थी पर 85 ही मिल सके थे। शत्रु नाश के लिए किए गए संकल्प में चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई का नाम रखा गया था। 85 ब्राह्मण दिन में सम्पुट सहित सप्तशती का पाठ करते थे और 11 ब्राह्मण रात में 9 से सुबह 4 बजे तक देवी धूमावती का जप करते थे।

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देवी धूमावती
अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद पीतांबरा पीठ दतिया में देवी धूमावती का मंदिर बनाया गया । उनका स्वरूप अत्यंत क्रूर और डरावना है कहा जाता है कि एक बार उन्हें भूख लगी तो वे अपने पति को खा गईं जो धूूम्र के रूप में उनके मुख से निकले। देवी के दर्शन सुहागन स्त्रियों के लिए निषेध हैं।

साधकों, श्रद्धालुओं को दर्शन भी अत्यंत कम समय के लिए सुबह और शाम 8 बजे से 8.15 बजे तक ही होते हैं। शनिवार को माई के विशेष दर्शन होते हैं। इस दिन सुबह 7.30 से 9 बजे तक और शाम 5.30 से 8.30 तक पट खोले जाते हैं। कौवा पर सवार मां को तामसी भोजन प्रिय है उन्हें समोसा, कचौरी,नमकीन आदि का भोग लगाया जाता है। हर शनिवार को यहां हजारों की संख्या में दूर-दूर से दर्शनार्थी आते हैं।

अभी भी मौजूद है यज्ञशाला
जिस यज्ञशाला में राष्ट्र रक्षा अनुष्ठान के दौरान देवी धूमावती के लिए आहुतियां दी गईं थीं वह अभी भी श्रीपीतांबरा पीठ दतिया में मौजूद है और वहां लगाए गए बोर्ड में इस अनुष्ठान के बारे में बताया गया है।

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नरक चौदस को हुआ था धूमावती देवी का प्राकट्य
देवी धूमावती का प्राकट्य नरक चतुर्दशी के दिन माना जाता है। इनका दूसरा नाम ज्येष्ठा भी है क्योंकि ये देवी लक्ष्मी की बड़ी बहन के रूप में निरूपित की गई हैं। देश में इनके मंदिर बहुत कम संख्या में हैं और साधक भी बिरले ही मिलते हैं। इनकी उपासना अत्यंत कठिन मानी गई है। इनका आह्वान अत्यंत विपत्ति और संकट के समय किया जाता है।

राजसत्ता के लिए मशहूर मां का मंदिर
मां बगुलामुखी राजसत्ता के लिए भी महशूर मानी जाती हैं। यहां पर राजनेता के साथ-साथ कई राजनीतिक दिग्गज भी अपनी दस्तक दे चुके हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अलावा यहां पंडित जवाहरलाल नेहरू, राहुल गांधी के अलावा अमित शाह, राजनाथ सिंह, वसुंधरा राजे सिंधिया, दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, शिवराज सिंह चौहान सहित अभिनेता संजय दत्त सहित अनेक लोग यहां पर आकर पूजा अर्चना कर चुके हैं।