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Dhumavati Jayanti 2021 : मां धूमावती का इकलौता मन्दिर और यहां केवल शनिवार के दिन ही अपने भक्तों को दर्शन देती हैं देवी मां

धूमावती जयंती 2021, आज 18 जून 2021 को...

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Dhumavati Jayanti 2021

Dhumavati Jayanti

Dhumavati Jayanti 2021: सनातन धर्म में शिव के दस प्रमुख रुद्र अवतारों में सातवां अवतार द्यूमवान नाम से विख्यात है। इस अवतार की शक्ति को देवी धूमावती devi dhumavati माना गया हैं। ऐसे में मध्यप्रदेश के दतिया में मौजूद मां धूमावती देवी के मंदिर को ही देश-दुनिया में भगवती धूमावती का एकमात्र मंदिर माना जाता है।

दरअसल राजसत्ता की देवी मां पीताबरा की शक्तिपीठ (पीताम्बरा पीठ, दतिया) के प्रांगण में ही 'मां धूमावती देवी' का मंदिर है। पीताम्बरा पीठ को देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठ के रूप में माना जाता है।

यहां मंदिर परिसर में बगलामुखी देवी, मां धूमावती देवी devi dhumavati temple के अलावा भगवान शिव को समर्पित वनखंडेश्वर मंदिर सहित अन्य बहुत से मंदिर भी बने हुए हैं। वहीं यहां बना वनखंडेश्वर मन्दिर महाभारत कालीन मंदिरों में अपना विशेष स्थान रखता है।

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ऐसे में देवी मां धूमावती के अवतरण तिथि यानि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को धूमावती जयंती dhumavati jayanti मनाई जाती है। जो इस बार यानि 2021 में (अष्टमी तिथि Dhumavati Jayanti date 2021) शुक्रवार, 18 जून 2021 को पड़ रही है।

पूजा का मुहूर्त : dhumavati jayanti 2021 Puja muhurat
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि, शुक्रवार जून 18, 2021
अष्टमी तिथि : 20:39 PM तक फिर नवमी
अभिजीत मुहूर्त : 11:32 AM से 12:27 PM तक।
अमृत काल : 02:36 PM से 04:10 PM तक।
विजय मुहूर्त : 02:16 PM से 03:11 PM तक।

मां धूमावती का स्वरूप...
दरअसल मां धूमावती devi dhumavati को माता पार्वती का अत्यंत उग्र रूप माना जाता है, देवी का स्वरूप के संबंध में मान्यता है कि धूमावती देवी का स्वरुप बड़ा मलिन और भयंकर प्रतीत होता है।

इनका स्वरूप विधवा का है और वाहन कौवा है, इसके अलावा यह श्वेत वस्त्र धारण किए हुए खुले केश रुप में होती हैं। वहीं इनका स्वरूप अत्यंत उग्र होने के बावजूद भी संतान के लिए कल्याणकारी होता है।

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मां धूमावती का प्राकट्य...
मां धूमावती के प्रकट होने से जुड़ी कुछ कथाएं Mythological Story Of Goddess Dhumavati मिलती हैं। इन कथाओं में से एक के अनुसार सती ने जब भगवान शिव के हो रहे अपमान से आहत होकर पिता के यज्ञ में स्वेच्छा से स्वयं को जलाकर भस्म कर लिया।

ऐसे में उनके जलते शरीर से जो धुआं निकला, उससे ही धूमावती का जन्म हुआ। इसी कारण वह हमेशा उदास रहती हैं। माना जाता है कि धूमावती धुएं के रूप में सती का भौतिक स्वरूप है।

वहीं एक अन्य कथा के अनुसार सती शिव के साथ एक बार हिमालय में विचरण कर रही थी। तभी उन्हें ज़ोरों की भूख लगी। उन्होंने शिव से कहा-'मुझे भूख लगी है' मेरे लिए भोजन का प्रबंध करें' शिव ने कहा-'अभी कोई प्रबंध नहीं हो सकता' तब सती ने कहा-'ठीक है, मैं तुम्हें ही खा जाती हूं और वे शिव को ही निगल गईं। शिव स्वयं देवाधिदेव महादेव होने के साथ ही इस जगत के सर्जक और परिपालक होने के बावजूद देवी की लीला में भी शामिल हो गए।

इसके बाद भगवान शिव ने जब उनसे अनुरोध किया कि 'मुझे बाहर निकालो', तो उन्होंने उगल कर उन्हें बाहर निकाल दिया... निकालने के बाद शिव ने उन्हें शाप दिया कि ‘आज और अभी से तुम विधवा रूप में रहोगी, तभी से वे विधवा स्वरूप में हैं।

वहीं कुछ जानकारों का मानना है कि पुराणों में अभिशप्त, परित्यक्त, भूख लगना और पति को निगल जाना ये सब सांकेतिक आधार पर इंसान की इच्छाओं का प्रतीक हैं, जो कभी ख़त्म नहीं होती और इसलिए वह हमेशा असंतुष्ट रहता है। मां धूमावती उन कामनाओं को खा जाने यानि नष्ट करने की ओर इशारा करती हैं।

पीताम्बरा पीठ में है माता का मंदिर...
कहा जाता है कि इस दतिया में मौजूद विश्वप्रसिद्ध मां पीताम्बरा पीठ के स्थान पर कभी श्मशान हुआ करता था, लेकिन आज यहां एक विश्वप्रसिद्ध मन्दिर है। स्थानीय लोगों का मानना है कि मुकदमे आदि के सिलसिले में मां पीताम्बरा का अनुष्ठान सफलता दिलाने वाला होता है।

पीताम्बरा पीठ के इसी प्रांगण में ही 'मां धूमावती देवी' का भी मन्दिर है, जिसके संबंध में मान्यता है कि यह भारत में भगवती धूमावती का एक मात्र मन्दिर है।

बताया जाता है कि पीताम्बरा पीठ की स्थापना सन् 1935 में स्वामीजी महाराज ने की थी। स्थानीय लोगों के अनुसार स्वामी महाराज बचपन से ही सन्यास ग्रहण कर यहां एक स्वतंत्र अखण्ड ब्रह्मचारी संत के रूप में निवास करते थे। स्वामीजी प्रकांड विद्वान् व प्रसिद्ध लेखक थे। उन्होंने संस्कृत, हिन्दी में कई किताबें भी लिखी थीं।

स्वामीजी महाराज ने ही इस स्थान पर 'बगलामुखी देवी' और धूमावती माई की प्रतिमा स्थापित करवाई थी।

देवी धूमावती का इकलौता मन्दिर...
पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में बना मां भगवती धूमावती देवी मन्दिर देश-दुनिया में एकलौता माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि मन्दिर परिसर में मां धूमावती की स्थापना करने के लिए अनेक विद्वानों ने स्वामीजी महाराज को मना किया था। तब स्वामी जी ने कहा कि- "मां का भयंकर रूप तो दुष्टों के लिए है, भक्तों के प्रति ये अति दयालु हैं।"

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पीताम्बरा पीठ के इसी प्रांगण में ही 'मां धूमावती देवी' का भी मन्दिर है, जिसके संबंध में मान्यता है कि यह भारत में भगवती धूमावती का एक मात्र मन्दिर है।

बताया जाता है कि पीताम्बरा पीठ की स्थापना सन् 1935 में स्वामीजी महाराज ने की थी। स्थानीय लोगों के अनुसार स्वामी महाराज बचपन से ही सन्यास ग्रहण कर यहां एक स्वतंत्र अखण्ड ब्रह्मचारी संत के रूप में निवास करते थे। स्वामीजी प्रकांड विद्वान् व प्रसिद्ध लेखक थे। उन्होंने संस्कृत, हिन्दी में कई किताबें भी लिखी थीं।

स्वामीजी महाराज ने ही इस स्थान पर 'बगलामुखी देवी' और धूमावती माई की प्रतिमा स्थापित करवाई थी।

देवी धूमावती का इकलौता मन्दिर...
पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में बना मां भगवती धूमावती देवी मन्दिर देश—दुनिया में एकलौता माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि मन्दिर परिसर में मां धूमावती की स्थापना करने के लिए अनेक विद्वानों ने स्वामीजी महाराज को मना किया था। तब स्वामी जी ने कहा कि- "मां का भयंकर रूप तो दुष्टों के लिए है, भक्तों के प्रति ये अति दयालु हैं।"