
Here are ten avatars of Lord Vishnu
सनातन धर्म के आदि पंच देवों में भगवान विष्णु एक प्रमुख स्थान रखते हैं। इन्हें जगत का पालनहार माना जाता है। वहीं यह भी मान्यता है कि धर्म की रक्षा के लिए समय समय पर भगवान विष्णु अवतार लेकर धरती पर आते हैं और अधर्म का नाश करते हुए यहां पुन: धर्म की स्थापना करते हैं।
वहीं पुराणों में भगवान विष्णु के दस अवतारों का उल्लेख है। इन दस अवतारों के एक साथ दर्शन करना हो तो 9 वीं 10 वीं शताब्दी के अनूठे स्मारकों का जिक्र जरूर आता है।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब आधे घंटे की दूरी पर स्थित विदिशा से मात्र 38 किमी दूर ग्यारसपुर में ये स्मारक मौजूद हैं।
हिण्डोला तोरण द्वार के नाम से विख्यात इस पुरास्मारक में भगवान विष्णु के किसी प्राचीन और भव्य मंदिर का अब तोरणद्वार ही शेष है। इसी तोरणद्वार पर भव्य पाषाण शिल्प के बीच भगवान विष्णु के दस अवतार दर्शन देते हैं।
अत्यंत भव्य और विशाल विष्णु मंदिर
ग्यारसपुर में विख्यात मालादेवी मंदिर के मार्ग पर हिंडोला तोरण द्वार और मंडप पर्यटकों को अचानक ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन यह स्मारक अतीत के किसी अत्यंत भव्य और विशाल विष्णु मंदिर के अवशेषों की गवाही देता है।
मंदिर की सीढिय़ों पर शंख का उत्कीर्ण होना भी इसका प्रमाण है। यह स्मारक नवीं-दसवीं शताब्दी का है। मंदिर के नाम पर अब यहां सिर्फ जीर्ण-शीर्ण खंडहर और चार स्तंभों का मंडप ही दिखाई देता है, जिनमें आकर्षक कलाकृतियां उत्कीर्ण हैं। संभवत: हिण्डोला तोरणद्वार इसी भव्य मंदिर का प्रवेश द्वार रहा होगा।
दोनों स्तंभों पर भगवान विष्णु के 5-5 अवतारों का अंकन
ग्यारसपुर का यह हिण्डोला तोरणद्वार भगवान विष्णु के दशावतारों का गुणगान करता प्रतीत होता है। पाषाण शिल्प के इस नायाब नमूने पर यक्ष-यक्षिणियों, देवी-देवताओं के साथ ही तोरणद्वार के दोनों स्तंभों पर विष्णु के 5-5 अवतारों का अंकन है।
खास बात ये है कि ये अवतार चारों दिशाओं में दिखाई देते हैं। एक स्तंभ की एक दिशा में मत्स्य और कच्छप अवतार को संयुक्त रूप से दर्शाया गया है तो दूसरी दिशा में वामन अवतार, तीसरी में वराह और चौथी में नरसिंह अवतार उत्कीर्ण है। इसी तरह दूसरे स्तंभ पर परशुराम, राम, कृष्ण अंकित हैं। चौथी दिशा में भगवान बुद्ध और कल्कि अवतार संयुक्त रूप से उत्कीर्ण हैं।
हर पत्थर कुछ बोलता है!
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के इस स्मारक को देख परमारकाल के आसपास के मंदिरों के महत्व और उस समय की स्थापत्य कला की चरमता का पता चलता है। एक-एक सिरे और पत्थर पर उत्कीर्ण शिल्प को देखें तो हर पत्थर कुछ बोलता सा प्रतीत होता है। अवशेष भी सदियों पहले रही यहां की भव्यता की गाथा सुनाते हैं।
Updated on:
21 May 2020 12:02 pm
Published on:
21 May 2020 11:56 am
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