
Strange Tradition of Temples
भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से कई तरह की परम्पराएं चली आ रही हैं। इन्हीं में से एक परंपरा मंदिरों से भी जुड़ी हुई है, जो हर किसी को Strange Tradition आश्चर्य में डाल देती हैं। दरअसल worship in temples मंदिरों में पूजा करने से लेकर चढ़ावे और फिर मनोकामना पूरी होने तक की कई परंपराएं लंबे समय से चली आ रही है।
ऐसे में आज हम आपको Hindu Temples मंदिरों में चढ़ावे व प्रसाद से जुड़ी कुछ ऐसी Strange Tradition of Temples परंपराओं के बारे में बता रहे हैं, जो देश के कुछ Mandir मंदिरों में सामान्य यानि पारंपरिक चढ़ावे से तो अलग है ही, वहीं इसके बारे में जो कोई सुनता है वह आश्चर्य से भर जाता है। कुल मिलाकर देश के offerings in temples कई मंदिरों में चढ़ावे के तौर पर कई दिलचस्प चीजों का इस्तेमाल किया जाता है...
असम के गुवाहाटी में मौजूद कामाख्या मंदिर शक्तिपीठ की एक परंपरा बेहद दिलचस्प है। दरअसल यहां जून में अंबुबाची मेला Ambubachi Mela लगता है। इस समय मां कामाख्या ऋतुमति रहती है।
अंबुबाची योग पर्व के दौरान मां भगवती के गर्भगृह के कपाट स्वत: ही बंद हो जाते है। उनके दर्शन निषेध हो जाते है। तीन दिनों के बाद मां भगवती की रजस्वला समाप्ति पर उनकी विशेष पूजा और साधना की जाती है। चौथे दिन ब्रह्म मुहूर्त में देवी को स्नान करवाकर श्रृंगार के उपरांत ही मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है।
यहां देवी के रजस्वला होने से पूर्व गर्भगृह स्थित महामुद्रा के आसपास सफेद वस्त्र बिछा दिए जाते है। तब यह वस्त्र माता के रज से रक्तवर्ण हो जाता है। उसी को भक्त प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है। मान्यता है कि इस वस्त्र को धारण करके उपासना करने से भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है।
उज्जैन शहर के प्रमुख देवताओं में शुमार काल भैरवनाथ पर devotees offer wine हर रोज वाइन की बोतलें चढ़ाई जाती हैं। यह एक वाम मार्गी तांत्रिक मंदिर माना जाता है, जहां मास, मदिरा, बलि और मुद्रा जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। बताया जाता हैं शुरु में यहां सिर्फ तांत्रिकों को ही आने की अनुमति थी।
लेकिन, बाद में ये मंदिर आम लोगों के लिए खोल दिया गया। यहां पर पूर्व में जानवरों की बलि चढ़ाने की भी परंपरा थी। लेकिन अब यह प्रथा बंद कर दी गई है, परंतु Kal Bhairav Nath भगवान भैरव को मदिरा का भोग लगाने की परंपरा अब भी कायम है। काल भैरव मंदिर में भगवान को मदिरा पिलाने का चलन सदियों पुराना बताया जाता है लेकिन, यह कब, कैसे और क्यों शुरू हुआ, यह कोई नहीं जानता।
ऐसे में यहां आने वाले भक्तों को प्रसाद के तौर पर भी devotees offer wine वाइन की बोतलें मिलती हैं। मंदिर के बाहर पूरे साल अलग-अलग तरह की वाइन की दुकानें खुली रहती हैं इस मंदिर का निर्माण मराठा काल में हुआ था।
तमिलनाडु के पलानी हिल्स में स्थित यह मंदिर अपने अलग तरीके के प्रसाद के लिए जाना जाता हैं। यहां प्रसाद के तौर पर कोई पारंपरिक मिष्ठान नहीं बल्कि गुड़ और शुगर कैंडी से बने जैम का इस्तेमाल किया जाता हैं। इस पवित्र जैम को पंच अमृतम कहा जाता हैं। इस मंदिर के पास में ही एक प्लांट भी स्थित है जहां इस जैम को तैयार किया जाता है।
मदुरई में स्थित भगवान विष्णु के अलागर मंदिर का असली नाम कालास्हागर था। इस मंदिर में भक्त भगवान विष्णु को डोसा चढ़ाते हैं और इस डोसे का सबसे पहले भोग भगवान विष्णु को लगाया जाता है। जबकि बाकि डोसा भगवान विष्णु के दर्शन करने आए भक्तों में प्रसाद के तौर पर बांट दिया जाता है।
राजस्थान में स्थित करणी माता मंदिर में करीब 25,000 काले चूहे रहते हैं, जिन्हें पवित्र माना जाता हैं। भक्तों द्वारा लाए गए प्रसाद और चढ़ावे को भी इन चूहों को खिलाया जाता हैं। यहां आने वाले भक्तों को चूहों का जूठा प्रसाद दिया जाता हैं। ऐसा लोग मानते हैं कि इस प्रसाद के सेवन से जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
कोलकाता में मौजूद चाइनीज़ काली मंदिर को यूं ही चाइनीज़ काली मंदिर नहीं कहा जाता हैं दरअसल चाइनाटाउन के लोग इस मंदिर में काली मां की पूजा करने आते थे, तब से इस मंदिर का नाम चाइनीज काली मंदिर पड़ गया। पारंपरिक मीठे की जगह यहां काली मां को नूडल्स का चढ़ावा चढ़ता है।
जालंधर में स्थित शहीद बाबा निहाल सिंह गुरुद्वारे को लोग ‘हवाई जहाज गुरुद्वारे’ के तौर पर भी जानते हैं। दरअसल यहां आने वाले श्रद्धालु खिलौने वाले हवाई जहाज को चढ़ावे के रूप में चढ़ाते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि इस चढ़ावे को चढ़ाने से उनके वीजा अप्रूवल में परेशानी नहीं आती है और उनका विदेश जाने का सपना पूरा होता है।
आंध्र प्रदेश के इस मंदिर में भगवान विष्णु की एक प्रतिमा नरसिंह के अवतार में स्थित हैं प्राचीन परंपरा के तहत इस प्रतिमा के मुंह में गुड़ का पानी भरा जाता हैं और ऐसा माना जाता हैं कि पेट भर जाने की स्थिति में मूर्ति के मुंह से आधा पानी बाहर आने लगता हैं और इसी पानी को फिर श्रद्धालुओं में प्रसाद के तौर पर बांटा जाता है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के मानेसर में बाबा भीष्म का एक मंदिर है, जहां साल में एक दिन लगने वाले मेले के दौरान devotees offer wine शराब प्रसाद चढ़ाया जाता है। यहां पर देसी से लेकर एक से एक बढ़कर विदेशी ब्रांड की भी शराब चढ़ती है। यह भक्तों की श्रद्धा पर निर्भर कि वह कैसी शराब चढ़ाता है।
बताया जाता है कि सैकड़ों साल से साल के एक दिन इस गांव के लोग मेले के दौरान शराब चढ़ाते आ रहे हैं। जिसके बाद लोग प्रसाद के रूप में शराब पीते हैं। वहीं मेले के अलावा अन्य दिनों में कोई शराब पीकर मंदिर में चला जाए तो उस पर जुर्माना लगता है।
Published on:
29 Jun 2021 12:51 pm
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