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मथुरा के नंदगांव में जलाया जाता है पांच किलो गाय के घी से दीपक

नन्दगांव में "नन्द जू के आंगन में निराली दिवारी है" को चरितार्थ करने के लिए पहले नन्दबाबा मंदिर के शिखर पर अनूठा दीपक जलाया जाता है

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Sunil Sharma

Oct 21, 2017

nand baba temple

nandbaba temple mathura

देश के कोने-कोने में दीपावली मनाने की लगभग एक सी परम्परा है, लेकिन तीन लोक से न्यारी मथुरा नगरी में मंदिरों में दीपावली का त्योहार अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। दीपावली पर कहीं ठाकुर जी चैसर खेलते हैं, कहीं सकड़ी और निकरा का भोग अरोगते हैं, कहीं 36 व्यंजन अरोगते हैं। नन्दगांव में "नन्द जू के आंगन में निराली दिवारी है" को चरितार्थ करने के लिए पहले नन्दबाबा मंदिर के शिखर पर अनूठा दीपक जलाया जाता है। यहां पांच किलो गाय के घी से दीपक जलाया जाता है।

नन्दबाबा मंदिर के सेवायत आचार्य लोकेश गोस्वामी ने बताया कि इसके लिए एक ऐसा दीपक बनाया जाता है जिसमें पांच किलो शुद्ध गाय का घी आ सके। इसमें बिनौला आदि डालकर विशेष रूप से तैयार करते हैं। इसे 200 फीट ऊंचे मंदिर के शिखर पर जलाया जाता है। इस दीपक के सम्बन्ध में मंदिर के एक अन्य सेवायत सुशील गोस्वामी ने बताया कि उनके बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि बहुत पहले मंदिर के शिखर पर इतना बड़ा दीपक जलाया जाता था कि उसकी लौ को भरतपुर में देखकर वहां के राजघराने में दीपावली मनाई जाती थी। इसी परम्परा का आज भी नन्दगांव में निर्वहन किया जाता है।

मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान में तो छोटी दीपावली से ही मंदिरों में न केवल दीपावली की धूम मच जाती है बल्कि जन्मस्थान स्थित मंदिरों में दीपावली का पर्व सामूहिक दीपावली के रूप में मनाया जाता है। मंदिर के जनसंपर्क अधिकारी विजय बहादुर ङ्क्षसह के अनुसार मंदिर प्रांगण में बहुत बड़ी रंगोली बनाकर उसके चारों ओर 21 हजार दीपक जलाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि पहले केशव देव मंदिर में दीपक जलाया जाता है और फिर जन्मस्थान पर स्थित अन्य योगमाया, राधाकृष्ण आदि मंदिरों में दीपक जलाते हैं तथा सबसे अंत में रंगोली के चारो तरफ 21 हजार दीपक जलाते हैं। इसमें ब्रजवासियों के साथ-साथ तीर्थयात्रियों को भी शामिल किया जाता है, क्योंकि ठाकुर जी सबसे अधिक सामूहिक आराधना में ही प्रसन्न होते हैं।

राधाश्यामसुन्दर मंदिर वृन्दावन के सेवायत आचार्य कृष्णगोपालानन्द देव गोस्वामी प्रभुपाद के अनुसार इस दिन ठाकुर जी कृष्णकाली वेश में दर्शन देते हैं यानी मां काली के वेश में दर्शन देते हैं। इस दिन मंदिर में आकाश दीप के साथ साथ पूरे मंदिर परिसर में दीप जलाते हैं तथा अगले दिन अन्नकूट में 56 भोग 36 व्यंजन बनते हैं। गाय के गोबर से विशाल गिर्राज बनाकर पूजन होता है तथा शाम को भंडारे में व्रजवासी और तीर्थयात्री प्रसाद ग्रहरण करते हैं। दीपावली की शाम मंदिर में जो लोग दीपक जलाते हैं उन्हें न केवल ठाकुर का विशेष आशीर्वाद मिलता है बल्कि उन पर लक्ष्मी की भी विशेष कृपा होती है।

इसी दिन चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव दिवस होने के कारण इस दिन अष्टप्रहर तक हरिनाम संकीर्तन भी होता है। राधा दामोदर मंदिर वृन्दावन के सेवायत आचार्य कनिका गोस्वामी ने बताया कि दीपावली पर "दाम बंधन लीला" का पाठ किया जाता है। इसी दिन मां यशेादा ने मक्खन की चोरी करने पर श्यामसुन्दर को ऊखल से बांधा था। मंदिर में शाम को जहां दीपदान होता है वहीं प्रात: सवा चार बजे से गिर्राज शिला की चार परिक्रमा शुरू हो जाती है। इस शिला को ठाकुर जी ने स्वयं सनातन गोस्वामी को दिया था।

वृन्दावन के सप्त देवालयों में मशहूर राधा रमण मंदिर में इस दिन ठाकुर जी हटरी पर विराजमान होते हैं तथा संध्या काल में राधारानी के साथ ठाकुर चैसर खेलते हैं। दीपावली के दिन संध्या आरती के बाद जगमोहन में लक्ष्मी पूजन होता है तथा अंदर ठाकुर जी का तिलक होता है। मंदिर के सेवायत दिनेश चन्द्र गोस्वामी के अनुसार ठाकुर के ब्यालू भोग में सभी पकवान रखे जाते हैं और दर्शन खुलते ही मंदिर के सेवायत आचार्य एवं उनके परिवारीजन झोली में प्रसाद लेकर जाते हैं। गोवर्धन पूजा के दिन मंदिर में पहले गाय का पूजन गोस्वामी लोग करते है उसके बाद सुरभि गाय ठाकुर का अभिषेक करती है और फिर गोवर्धन पूजा होती है।

इस दिन मंदिर में सकड़ी और निकरा प्रसाद लगाया जाता है जो भक्तों में वितरित भी किया जाता है किंतु अन्य मंदिरों की तरह इसके दर्शन नहीं होते हैं। वृन्दावन के सप्त देवालयों में राधा बल्लभ मंदिर में ठाकुर को हटरी में विराजमान करते हैं तथा वे लाल वस्त्र धारण करते हैं। इस दिन ठाकुर जी दोनों प्रहर चैसर खेलते हैं। अन्नकूट के दर्शन पूर्वान्ह 11 बजे होते हैं। निकरा सजाया जाता है लेकिन इस मंदिर में गोवर्धन पूजा नही होती तथा निकुंज में वृन्दावन विनोद विराजमान होते हैं।

दीपावली के दिन मंदिर में एक लाख एक दीपकों से दीपोत्सव होगा और यहां भी दीपोत्सव सामूहिक आराधना का पर्व बनता है। इसमें श्रद्धालु दीप जलाकर रखते जाते हैं और उन्हें क्रम से हटाना जारी रहता है। कई घंटे चलने वाला यह कार्यक्रम दर्शनीय होता है। उन्होंने बताया कि इस दिन मंदिर में वृहद फूल बंगला बनाया जाएगा तथा छप्पन भोग एवं अन्नकूट का भी आयोजन होगा। मंदिर में गोवर्धन पूजा के दिन सकड़ी का प्रसाद भक्तों को दिया जाता है।

इस मंदिर के सकड़ी प्रसाद को अमृत तुल्य इसलिए माना जाता है कि यहां पर ठाकुर ने गोपियों से दान लिया था अर्थात यहां पर ठाकुर के चरण पडऩे के कारण यह ऐसा पावन स्थल है जहां पर मंदिर से मिलने वाला प्रसाद ठाकुर की कृपा से अमृत तुल्य बन जाता है तथा जिसके दर्शन, मज्जन और पान करने से शरीर के सारे रोग और विपत्तियां दूर हो जाती हैं। भारत विख्यात द्वारकाधीश मंदिर में दीपावली पर दीपदान तथा गोवर्धन पूजा पर अन्नकूट का आयोजन वृहद रूप से किया जाता है।

वृन्दावन के मशहूर बांके बिहारी मंदिर में दीपावली पर दीपदान होता है और ठाकुर जी चांदी की हटरी में विराजते हैं। ठाकुर के भोग में इस दिन से केशर चालू हो जाती है। कुल मिलाकर समूचा ब्रजमंडल नन्द जू का आंगन बन जाता है और नन्द जू के आंगन में प्रतिदिन दिवाली की कहावत चरितार्थ होती है।