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टीकमगढ़ जिले के सिद्ध धार्मिक स्थलों पर उमडेगा श्रद्धालुओं का सैलाब

टीकमगढ़ भारतीय संस्कृति में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत भगवान की पूजा अर्चना और दर्शन से करना शुभ माना जाता है। नया साल भी इसी परंपरा का प्रतीक है। दो दिन बाद नए वर्ष में प्रवेश के साथ लोग नई उम्मीदों, उमंगों और खुशियों के साथ जीवन की नई शुरुआत करेंगे। जहां एक ओर […]

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नववर्ष की शुरुआत आस्था और विश्वास का संगम

नववर्ष की शुरुआत आस्था और विश्वास का संगम

टीकमगढ़ भारतीय संस्कृति में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत भगवान की पूजा अर्चना और दर्शन से करना शुभ माना जाता है। नया साल भी इसी परंपरा का प्रतीक है। दो दिन बाद नए वर्ष में प्रवेश के साथ लोग नई उम्मीदों, उमंगों और खुशियों के साथ जीवन की नई शुरुआत करेंगे। जहां एक ओर नववर्ष का स्वागत पार्टी, पिकनिक और मनोरंजन के माध्यम से किया जाता है। वहीं बड़ी संख्या में लोग ऐसे भी है जो नए साल की पहली सुबह भगवान की आराधना कर अपने जीवन को सुख समृद्धि और शांति से भरने की कामना करते है।

टीकमगढ़ जिले में अनेक प्राचीन, सिद्ध और चमत्कारी धार्मिक स्थल है, जहां नववर्ष के पहले दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते है। इन स्थलों पर तडक़े सुबह से ही श्रद्धालुओं की कतारें लग जाती है और पूरा वातावरण भक्ति और श्रद्धा से सराबोर हो जाता है। नववर्ष के अवसर पर ये सभी धार्मिक स्थल श्रद्धा और आस्था के केंद्र बन जाते है। लोग नए साल की शुरुआत भगवान के दर्शनए पूजा अर्चना और अनुष्ठान के साथ कर सुखए शांति और समृद्धि की कामना करते है।

दिन में ओरछा और रात में अयोध्या लौटते है रामराजा

ओरछा का रामराजा मंदिर देश का एकमात्र मंदिर है, जहां भगवान राम की पूजा राजा के रूप में होती है। इस मंदिर का इतिहास 16 वीं सदी में बुंदेलखंड के राजा मधुकर शाह और रानी गणेश कुंवारी से जुड़ा है। मान्यता है कि रानी गणेश कुंवारी अयोध्या से रामलला की प्रतिमा लेकर आई थी और भगवान राम ने महल में ही विराजमान रहने का वचन दिया। इसी कारण उन्हें राजकीय सम्मान और गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि भगवान राम दिन में ओरछा में विराजते है और रात्रि में अयोध्या लौटते है। नववर्ष के अवसर पर यहां विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

द्वापर युग से जुड़ा कुण्डेश्वर धाम

नगर से लगभग पांच किलोमीटर दूर जमडार नदी के तट पर स्थित कुण्डेश्वर धाम एक प्राचीन शिव मंदिर हैए जिसका संबंध द्वापर युग से बताया जाता है। मान्यता है कि दैत्यराज बाणासुर की पुत्री उषा यहां भगवान शिव की पूजा करती थी। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां स्थित शिवलिंग हर वर्ष चावल के दाने के बराबर बढ़ता है। इसे 12 ज्योतिर्लिंगों के समान 13वां सिद्ध शिवलिंग भी माना जाता है। नववर्ष पर यहां जलाभिषेक और रुद्राभिषेक के लिए बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते है।

पहाडियों को चीरकर प्रकट हुईं कालका माता

खरगापुर क्षेत्र के देरी गांव में स्थित कालका माता मंदिर अत्यंत प्राचीन और चमत्कारी माना जाता है। जनश्रुति के अनुसार माता दुर्गा ने पहाडिय़ों को चीरकर भक्तों को दर्शन दिए थे। यह मंदिर 11 वीं सदी के चंदेल राजा मदन वर्मा के समय से जुड़ा हुआ है। पहाड़ी को चीरकर बनी सुरंग आज भी मंदिर परिसर में मौजूद हैए जो इसकी सिद्धता का प्रमाण मानी जाती है।

1100 वर्ष पुराना बगाज माता मंदिर

जिला मुख्यालय से करीब 15 किमी दूर वकपुरा गांव में स्थित बगाज माता मंदिर को सरस्वती माता का मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर लगभग 1100 वर्ष पुराना है और विष निवारण की मान्यता के लिए प्रसिद्ध है। यहां यह विश्वास है कि सांप, बिच्छू या किसी जहरीले कीड़े के काटने पर माता की शरण में आने से विष का प्रभाव स्वत: समाप्त हो जाता है। यहां तक कि कुत्ते के काटने पर भी बिना दवा के ठीक होने की मान्यता है।

देश के चुनिंदा चंद्र देवी मंदिरों में अछूरू माता

पृथ्वीपुर के समीप स्थित अछूरू माता मंदिर देश के उन गिने चुने चंद्र देवी मंदिरों में शामिल है। जहां माता रानी कुंड के भीतर से भक्तों से संवाद करती है और प्रसाद देती है। यह मंदिर अपनी चमत्कारी शक्तियों और आस्था के कारण प्रसिद्ध है। प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर यहां पहुंचते है।