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गुड़, चूना, गारे और बेल के मिश्रण से बनाई जा रही इमारत, होंगी वातानुकूलित

पुराने समय में किले, मंदिर, मीनारों में पत्थरों-ईंटों की एेसे ही जोड़ा जाता था

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The building being made from a mixture of jaggery, lime, vine

The building being made from a mixture of jaggery, lime, vine

टीकमगढ़/बल्देवगढ़.सैकड़ों सालों पूर्व जब सीमेंट नहीं चलता था। तब की बनीं अनेक इमारतें आज भी उसी शान से खड़ी हैं। बड़े-बड़े किले, मंदिर , मीनारों में पत्थरों-ईंटों की जोड़ाई सीमेंट से नहीं बल्कि चूना-बेल-गुड़-गारे के मिश्रण से की जाती थी। यहां तक की न कूलर की जरूरत पड़ती थी और न एयरकंडीशनर की। हमेशा इमारतों के अंदर ठंडक महसूस होती है।
गौरतलब है कि बढ़ती गर्मी के साथ-साथ सीमेंट के आसमान छूते दाम और इसकी निर्माण प्रक्रिया के दौरान होने वाले प्रदूषण से बचाव के लिए अब सदियों पुरानी उसी तकनीक की ओर वापसी होने का संकेत मिल रहा है। बल्देवगढ़ के प्राचीन किले में तो प्रयोग सफ ल भी रहा है। भगवान बलदेव के नाम से जाने बाले प्राचीन किला का करोड़ंो की लागत से इन दिनों इसी पद्धति से जीणोद्वार का काम हो रहा हैं। वह भी पूरी तरह पुरानी तकनीक से किया जा रहा है। पुरातत्व विभाग भोपाल के इंजीनियर का कहना है कि यह सदियो पुरानी तकनीक का प्रचलन आज वर्तमान में उभर कर आया है। गुड़,चूना,गारे और बेल का मिश्रण कर बनने वाली इमारते कही हद तक मजबूती की मिशाल कायम रखती है। इसी तकनीक के साथ बल्देवगढ़ किले का जीणोद्धार किया जा रहा है।
पुराना अस्तित्व का लौटने जैसा संकेत,निर्माण में सीमेंट का नहीं किया जा रहा उपयोग
यहां किले का ऐसा जीणोद्वार कर नया रूप दिया जा रहा है, जिसके निर्माण के लिए सीमेंट का उपयोग नहीं किया जा रहा है। इसके बजाय सैकड़ों साल पहले की तरह चूना, बेल, गारा से तैयार पेस्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है। जिन जगहों पर इस पद्वति से जीणोद्वार का काम हो चुका है, वहां देखने पर पता भी नहीं चलता है कि यह सैकड़ों साल पुरानी विधि से तैयार हुआ है।

गर्मियों में होती है ठंडक महसूस
इस तकनीक से बने भवन पूरी तरह बातानुकूलित एवं पर्यावरण अनुकूल हैं। इमसलन, सीमेंट से बने मकान की तुलना में इनमें तापमान चार से पांच डिग्री तक कम रहता है, जो गर्मी के दिनों में राहत का काम करता है। गर्मी के दिनों में यहां कूलर के बिना भी लोग आराम से रह रहे हैं।
ऐसे तैयार होता है पेस्ट
सबसे पहले चूने को पानी में घोलकर 17 दिनों तक गलने दिया जाता है। इसके बाद गारा तैयार करने के लिए पकी हुई मिट्टी जैसे खप्पर, ईंट को पीसकर घोल में मिलाया जाता है। फि र पके हुए बेल के गूदे को उबालकर इसके साथ मिलाया जाता है। कुछ दिन रखने के बाद मिश्रण तैयार हो जाता है। चूना, बेल से सीमेंट जैसा पेस्ट तैयार करना पुरानी तकनीक है। यह ज्यादा मजबूत और भरोसेमंद है।