माता बेटी बाई ढोगा मैदान में 17 फरवरी से आयोजित मजिज्नेंद्र पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव एवं विश्व शांति महायज्ञ का गुरुवार को गजरथ परिक्रमा के साथ समापन हो गया है। शाम ४.२० बजे तक सात गजरथ परिक्रमा पूरी हुई। जिसमें ५० हजार से अधिक लोग शामिल हुए। गजरथ महोत्सव को देखने के लिए विभिन्न राज्यों के साथ जिलों के लोग भी आए थे।
टीकमगढ. माता बेटी बाई ढोगा मैदान में 17 फरवरी से आयोजित मजिज्नेंद्र पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव एवं विश्व शांति महायज्ञ का गुरुवार को गजरथ परिक्रमा के साथ समापन हो गया है। शाम ४.२० बजे तक सात गजरथ परिक्रमा पूरी हुई। जिसमें ५० हजार से अधिक लोग शामिल हुए। गजरथ महोत्सव को देखने के लिए विभिन्न राज्यों के साथ जिलों के लोग भी आए थे। मैदान में महिला, युवा और युवतियों की टुकडिय़ों ने अलग-अलग कतव्र्य दिखाए।
गुरुवार की सुबह 5. 30 बजे से मंगलाष्टक शांति मंत्र, सुबह 6 से श्रीजी का अभिषेक शांतिधारा नित्यम पूजन जिनवाणी पूजन देव शास्त्र गुरु पूजन संपन्न हुई। उसके बाद सुबह 7. 38 पर भगवान को निर्वाण की प्राप्ति हुई। मुनि ने कहा कि भगवान आदिनाथ कैलाश पर्वत से निर्वाण को प्राप्त हो जाते हैं। चार अग्निकुमार देव आकर भगवान के शरीर की अंतिम क्रियाएं नाक और केश का विसर्जन करते हैं। इसके बाद महायज्ञ, हवन की क्रिया संपन्न करके यज्ञ में सभी महा पात्रों, इंद्र इंद्राणीओं ने आहुति दी।
शाम ४.२० बजे तक गजरथ की सात परिक्रमा हुई पूर्ण
कार्यक्रम की मीडिया प्रभारी प्रदीप जैन ने बताया कि दोपहर 2. 20 पर पंचकल्याणक महोत्सव की गजरथ परिक्रमा शुरू हुई। गजरत फेरी में पांच रथ शामिल थे, रथों के पीछे इंद्र, इंद्राणी चल रहे थे। नंदीश्वर युवक मंडल वीर व्यायामशाला के युवा साथी जय जिनेंद्र कार्यकारिणी के युवा साथ में थे। गजरथ फेरी में निर्यापक मुनि सुधा सागर महाराज, छुल्लक 105 गंभीर सागर महाराज थे। सौधर्म इंद्र कुबेर महाराज, भगवान के माता पिता, महायज्ञ नायक हाथी के रथ पर सवार थे। यज्ञ नायक राजा सोम राजा श्रेयांश भरत बाहुबली ब्रह्मइंद्र सहित अनेक इंद्र, महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर रथ पर सवार होकर परिक्रमा में चल रहे थे। शाम 4. 20 बजे गजरथ की सात परिक्रमा पूरी हुई। गजरथ देखने के लिए शहर सहित देश के अनेक शहरों से अनेक नगरों से टीकमगढ़ शहर के आसपास ग्रामीण क्षेत्रों से करीब 50 हजार से अधिक लोग पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव के साक्षी बने।
मोह माया ही ज्ञानी बनने में बाधक-मुनि
मुनि ने प्रवचन में कहा कि अनंत शक्तियों की ऐ आत्मा भव्य हो या अभव्य निगोदिया हो या मनुष्य, सभी को शक्तियों को एक समान मानकर दिया है। व्यक्ति के पास धन होकर वह धनी नहीं है, हमारे पास ज्ञान है, लेकिन हम ज्ञानी नहीं हैं। क्योंकि यह मोह माया हमारे ज्ञानी होने में बाधक है। भगवान अभी तक ज्ञानवान है। आप ज्ञानी हो गए, ज्ञान है, लेकिन ज्ञान की चेतना नहीं है। धन है लेकिन धनी नहीं। मुनि ने कहा ज्ञान अलग चीज है, ज्ञान चेतना अलग चीज है, जहां-जहां ज्ञान है, वहां ज्ञान चेतना होना चाहिए, लेकिन आज कह रहा हूं सम्यक ज्ञान नहीं ज्ञान चेतना की आवश्यकता है। सम्यक ज्ञान शास्त्रों के अनुसार पशु पक्षी भी प्राप्त कर लेता है। एक नारकीय भी समय दृष्टि हो जाता है, सम्यक ज्ञान का इतना महत्व नहीं है, जितना ज्ञान चेतना का महत्व है। मुनि ने कहा का ज्ञान नहीं ज्ञानी पूजा जाता है, धर्म नहीं धर्मी पूजा जाता है। मुनि ने कहा धर्म शास्वत है, सदा है और सदा रहेगा।
मुनि ने कहां पंचकल्याणक में भगवान तो 6 दिन में बन गए हैं, अगर तुम जीवन भर में भगवान के भक्त बन गए तो तुम्हारे कर्मोंं की निर्जरा होना निश्चित है। हे भव्य जीव तुम्हारी आत्मा का कल्याण निश्चित है। आदिनाथ धाम त्रिकाल चौबीसी की प्रतिष्ठा हो चुकी है, आप लोगों को प्रतिदिन भगवान का अभिषेक शांति धारा एवं पूजन करनी है, भक्तामर का पाठ भी करना है, निश्चित ही आप सभी परेशानियों से निजात पा जाएंगे।