हाल ही में गत दिनों आए तूफान से बनास में निर्माणाधीन गहलोद हाई लैवल ब्रीज से गिरे पांच गर्डर के बाद सांसद सुखबीर सिंह जौनापुरिया ने घटना स्थल का निरीक्षण किया।
सांसद सुखबीर सिंह जौनपुरिया शुक्रवार को बनास की गहलोद रपट पर निर्माणाधीन हाई लैवल ब्रिज पर पहुंचे। जहां पर उन्होने गत दिनों हाल ही में आए तूफान से निर्माणाधीन हाई लैवल ब्रिज के गिरे पांच गर्डर को लेकर सार्वजनिक निर्माण विभाग के अधिकारियों ओर पुल का निर्माण कर रही कम्पनी की ओर से कार्यरत साईट इंजिनियरों पर कार्य में घटिया गुणवत्ता का आरोप लगा बरस पड़े।
चीफ इंजिनियर से फोन पर बात
जौनापुरिया यही नही रूके उन्होने हादसे के बाद मौका देखने आए चीफ इंजिनियर जसवन्त खत्री की ओर से अपनी रिपोर्ट में गर्डर गिरने पर ठेका कम्पनी को क्लीन चिट देन पर भी सवाल उठा चीफ इंजिनियर जसवन्त खत्री से लगभग फोन पर पांच मिनट तक कई टैक्निकल पहलुओं पर बात करते हुए मौके पर आकर उनकी मौजूदगी में जांच करने की मांग तक कर डाली।
अफसरों पर बिफरे
मौके पर निरीक्षण करने पहुंचे सांसद ने पुल निर्माण के दौरान कार्य में लापरवाही ओर घटिया गुणवत्ता का अरोप लगा कई टेक्निकल बिन्दुओं पर वहां पर उपस्थित सार्वजनिक निर्माण विभाग टोंक के अधीक्षण अभियंता एचएल मीणा, अधिशाषी अभियंता दिलीप कुमार सहित विभागीय अधिकारियों ओर निर्माण कम्पनी के इंजिनियरों से सवाल जवाब किए तो कोई भी उनके वाजिब जवाब नही दे पाए।
लगातार गुणवत्ता पर उठाए सवाल
ब्रिज निमार्ण कार्य शुरू होने बाद से ही सांसद ने दौरे कर इसकी गुणवत्ता पर कई बार सवाल खड़े किए थे। लेकिन कभी भी न तो केंद्र सरकार ने ओर न ही संबंधित विभाग ने सांसद की शिकायतों को गंभीरता से लिया। सांसद भी मात्र कमी निकाल कर दूर हो गए। जबकि उनको इसकी जांच ओर प्रभावी कार्रवाई की कोशिश करनी चाहिए थी। ओर अब हादसे बाद फिर वहीं निर्माण कार्य में गुणवत्ता सहित अन्य कार्यो पर सवाल खड़े किए है।
हादसे के पन्द्रह दिन बाद आई याद
अपने पिछले कार्यकाल ओर हाल ही में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनावों के प्रचार में भाजपा से तीसरी बार के प्रत्याशी व दो बार के सांसद सुखबीर सिंह जौनापुरिया बनास में गहलोद की रपट पर निर्माणाधीन पुल की क्षेत्र के लिए बड़ी उपल्ब्धियां बताते हुए जनता से वोट मांगे थे। लेकिन इतने बड़े हुए हादसें के बाद भी तीन बार टोंक आने के बाद भी सांसद ने मौके पर आने से दूरी बनाए रखी। जो लोगों में चर्चा का विषय भी बना हुआ था।
उच्चाधिकारियों ने दी क्लीनचिट
गत दिनों हादसे की जांच करने आए सरकार के सार्वजनिक निर्माण विभाग राजस्थान के मुख्य अभियंता (गुणवत्ता) जसवंत खत्री तथा मुख्य अभियंता (सीआरएफ ) मुकेश भाटी ने ब्रिज निर्माण कम्पनी को गुणवत्ता मामले में क्लीनचिट तक दें डाली।
लताड़ पर चुप्पी साधी, जवाब नहीं देना संदिग्ध भूमिका
ब्रिज के निरीक्षण निरीक्षण के दौरान पांच साल से ब्रिज की गुणवत्ता को लेकर उठा रहे सवाल फिर से दागे तो अधीक्षण अभियंता एचएल मीणा कोई जवाब नही दें पाए,बल्कि बगले झांकने लगे। इतना ही सांसद ने मीणा को जम करके लताड़ पिलाई । जिस पर मीणा ने पूरी तरह से चुप्पी साध ली। ऐसे में सवाल उठता है कि यदि गुणवत्ता पूर्ण काम था तो जवाब क्यों नहीं दिया। उनका जवाब नहीं देना निश्चित रूप से उनकी संदिग्ध भूमिका को भी दर्शाता है।
गुणवत्ता पर सवाल उठाएं, कार्रवाई के नही किए प्रयास
सासंद सुखबीर सिंह जौनापुरिया दस साल से टोंक-सवाई माधोपुर से सांसद है । वह भी इस हादसे से सिर्फ घटिया सामग्री होने का बयान देकर बच नहीं सकते । क्योंकि उन्होंने ब्रिज की गुणवत्ता के सवाल तो उठाए लेकिन उनकी ओर से कोई ठोस कार्यवाही नहीं होना उनकी नाकामी दर्शाती है।
पायलट ने भी किया था दौरा
पुल निर्माण के लिए राशि केंद्र सरकार की तरफ से सीआरएफ योजना से स्वीकृत की गई है। बनास नदी गहलोद ब्रिज निर्माण कार्य का राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम एवं टोंक विधायक सचिन पायलट ने भी पिछले कार्यकाल में इसका निरीक्षण भी किया लेकिन इसकी गुणवत्ता की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया।
चुनावों में श्रेय लेने की होड़
विधानसभा चुनाव से बाद हाल ही सम्पन्न हुए लोकसभा के चुनावों में भी प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस व भाजपा ने बनास नदी गहलोद ब्रिज को अपनी बड़ी उपल्ब्धिी बताते हुए श्रेय लेने में पीछे नहीं रहे। सवाल यह उठता है कि सांसद जौनापुरिया सहित विधायक पायलट के निरीक्षण के बावजूद बनास नदी गहलोद ब्रिज की पांच गर्डर वह भी सिर्फ आंधी के कारण गिर जाने के हादसे को निर्माण कम्पनी ठेकेदार की लापरवाही कह करके टाला जाना उचित नहीं है।
निष्पक्ष जांच हो
बनास के पास रहने वाले ग्रामीणों का कहना कि बनास नदी गहलोद ब्रिज कोई एक या दो गांवों से जुडा मामला नहीं है। इस ब्रिज से टोंक जिले के तीन उपखण्ड क्षेत्र के दर्जनों से अधिक गांवों का आवागमन होना है। वहीं प्रत्येक दिन हजारों लोग इस बनास नदी गहलोद से ही गुजरते है।
केंद्रीय एजेंसी से जांच होना चाहिए था
दोनों ही जनप्रतिनिधि जिनमें सांसद जौनापुरिया के यह कहने से कि राज्य में कांग्रेस की सरकार थी तथा पायलट केंद्र में भाजपा की सरकार होने की बात कहते हुए अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते। जब इस ब्रिज निर्माण कार्य की शुरुआत से ही घटिया सामग्री व गुणवत्तापूर्ण कार्य नहीं होने का आरोप सांसद की ओर से लगाया था तो इसकी केंद्रीय एजेंसी से जांच करना चाहिए था।
सुनवाई नही तो सदन में उठाते सवाल
जानकारों का कहना कि सासंद के आरोपों की विभाग में सुनवाई नहीं होती तो सासंद को संसद में अपना सवाल उठाना चाहिए था। वही पूर्व डिप्टी सीएम व टोंक विधायक सचिन पायलट को भी इस ओर गंभीर होकर अपने ओर से जांच करवाई जाना चाहिए थी। राज्य में उनकी सरकार थी इसलिए उनका भी दायित्व बनता था कि उनकी विधानसभा क्षेत्र करीबन 108 करोड रुपए की लागत से बनने वाले बनास नदी गहलोद हाई ब्रिज में कोई लीपापोती नहीं की जा रही है।
पुल का हिस्सा निवाई विधानसभा में भी
बनास नदी गहलोद ब्रिज न सिर्फ टोंक बल्कि निवाई से पूर्व विधायक रहे प्रशांत बैरवा के निर्वाचन क्षेत्र में भी आता है। उनकी भी जिम्मेदारी थी की इस ब्रिज की गुणवत्ता की तरफ ध्यान देते। क्योंकि यह ब्रिज कोई हर साल बनने वाली सडक़ तो नहीं थी बल्कि करीबन 100 साल की अवधि को ध्यान में रखते हुए बनाई गई बड़ी योजना थी।