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क्षमा वाणी पर्व: प्रत्येक मानव प्राणी के लिए क्षमा रुपी शास्त्र आवश्यक

क्षमा वाणी पर्व

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क्षमा वाणी पर्व: प्रत्येक मानव प्राणी के लिए क्षमा रुपी शास्त्र आवश्यक

क्षमा वाणी पर्व: प्रत्येक मानव प्राणी के लिए क्षमा रुपी शास्त्र आवश्यक


निवाई. गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री ने कहा कि पर्युषण पर्व की समाप्ति के बाद मनाया जाने वाले पर्व क्षमा वाणी पर्व कहा जाता है। हमारे महापुरुषों ने सदैव मानव को प्रेम, भाईचारा, सदाचार, परोपकार और त्याग करने का संदेश देते हुए क्षमा का दान अति महत्वपूर्ण बताया है। मानव से जाने और अनजाने में हुई गलतियों को संतों, महापुरुषों एवं समाज सुधारकों ने क्षमा याचना पर क्षमा दान करने वाले को व्यक्ति को पराक्रमी कहा गया है। उन्होंने कहा कि क्षमा वाणी पर्व के दिन लोग एक दूसरे से अपनी गलतियों की क्षमा मांगकर मन में उपजी कटुता को समाप्त कर देते है। इस दिन लोगों द्वारा क्षमा मांगने पर मन का राग व क्रोध नष्ट हो जाता है। व्यक्ति से किसी तरह के अपराध या त्रुटि के भाव पर पछतावा रखते हुए अपने कृत को दुबारा नहीं दोहराने की भावना के प्रयोजन के लिए ही क्षमा वाणी पर्व मनाया जाता है। मानव द्वारा समस्त जीवों के प्रति भातृत्व व प्रेम की भावना रखने से इसे विश्व मैत्री दिवस भी कहा जाता है। मानवीय जीवन में व्यक्ति के समक्ष क्षमा और बैर दो धाराएं निरंतर बहती रहती है। जो एक दूसरे की विरोधी धारा मानी जाती है। एक धारा अच्छाई को जन्म देती है तो दूसरा बुराई की जन्मदात्री है। क्षमा दान के समक्ष राग और द्वेष का अंत हो जाता है। जिस प्रकार सूर्य की रोशनी से अंधकार नहीं रह सकता। दिन में रात नहीं हो सकती। शुक्ल पक्ष के साथ में कृष्ण पक्ष हो सकता, ठीक उसी तरह क्षमा और बैर एक साथ नहीं रह सकते है। हमारे महापुरुषों, तीर्थंकरों और तपस्वियों ने पर्युषण पर्व को दशलक्षण महापर्वों का शुभारंभ उत्तम क्षमा धर्म से ही किया है। क्षमावाणी पर्व मानव में प्रेम और भाईचारे की पावन पवित्र धारा संचारित करने का मुख्य मार्ग है। मानव जीवन का आरंभ और अंत क्षमा दान ही है। जिससे मानव प्रकृति के अनुरूप निरंतर प्रगति कर सकता है।(ए.सं.)
आत्मा की शुद्धता का मार्ग

टोडारायङ्क्षसह. मुनि अनुमान सागर ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपना आत्मङ्क्षचतन करने के पश्चात सत्य का रास्ता ही अपनाना चाहिए। आत्मा का मूल गुण क्षमा है। दशलक्षण पर्व के दिनों में किया गया त्याग और उपासना मनुष्य को जीवन की सच्ची राह दिखाते हैं। तन, मन और वचन से चोरी, ङ्क्षहसा, व्याभिचार, ईष्र्या ं, क्रोध, मान, छल, गाली, ङ्क्षनदा और झूठ इन दस दोषों से दूर रहना चाहिए।

मालपुरा.आचार्य इंद्रनंदी ने उत्तम क्षमा पर कहा कि संसार में प्रत्येक मानव प्राणी के लिए क्षमा रुपी शास्त्र आवश्यक है, जिनके पास यह क्षमा नहीं होती वह मनुष्य संसार में अपने इष्ट कार्य की सिद्धि नहीं कर सकता है। क्षमा आत्मा का धर्म है, इसलिए जो मानव अपना कल्याण चाहते हैं उन्हें हमेशा इस भावना की रक्षा करनी चाहिए। क्षमावान मनुष्य का इस लोक और परलोक में कोई शत्रु नहीं होता है। क्षमा ही सर्व धर्म का सार है। क्षमा ही सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र रूपी आत्मा का मुख्य सच्चा भंडार है। उन्होंने कहा की क्षमा वीरस्य भूषणम् क्षमा वीरों का आभूषण है वीर पुरुष हमेशा क्षमा को धारण करके चलते हैं। क्षमा शब्द मानवीय जीवन की आधारशिला है, जिसके जीवन में क्षमा है, वहीं महानता को प्राप्त कर सकता है। क्षमावाणी हमें झुकने की प्रेरणा देती है। दशलक्षण पर्व हमें यही सीख देता है कि क्षमावाणी के दिन हमें अपने जीवन से सभी तरह के भेदभाव, विरोध को मिटाकर प्रत्येक व्यक्ति से क्षमा मांगी चाहिए और हम दूसरों को भी क्षमा कर सके यही भाव मन में रखना चाहिए यही क्षमावाणी है।