
टोंक: अरबी फारसी शोध संस्थान के दीदार करने दुनियाभर से आते हैं लोग, यहां से मॉर्डन डेकोरेटिव कैलीग्राफी सीखकर युवा पा रहे हैं रोजगार
टोंक. प्राचीन ग्रंथों के लिए दुनियाभर में मशहूर मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान ( Maulana Abul Kalam Azad Arabic and Persian Research Institute. MAPRI in Tonk ) Rajasthan में युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने की कवायद तेजी से चल रही है। यहां युवाओं को मॉर्डन डेकोरेटिव कैलीग्राफी आर्ट ( Modern Calligraphy ) सिखाई जा रही है, ताकि वह इस कला में महारत हासिल कर देश-विदेश में रोजगार पा सकें। खास बात यह है कि इस संस्थान में आम कैलीग्राफी में कुछ खास बदलाव कर इसे मॉर्डन डेकोरेटिव कैलीग्राफी से जोड़ा गया है। इसका प्रशिक्षण देने के लिए संस्थान ( APRI Tonk ) में बकायदा क्लासें लगाई जा रही हैं।
जानिए क्यों खास है डेकोरेटिव कैलीग्राफी
कैलीग्राफी के लिए दुनियाभर में टोंक अपनी एक खास पहचान रखता है। संस्थान के डॉक्टर सैयद बदर अहमद ने बताया कि आमतौर पर कैलीग्राफी में कागज पर कुछ लिखा जाता है। लेकिन यहां इस आर्ट को मॉर्डन डेकोरेटिव से जोड़ा गया है, जिसमें पत्थर या किसी बर्तन पर पर फूल बनाकर उसमें खास अंदाज में नाम लिखा जाता है। अहमद ने बताया कि कागज या कपड़े पर की गई कैलीग्राफी कुछ समय बाद खराब हो जाती है। जबकि पत्थर या बर्तन समेत अन्य धातू पर की गई मॉर्डन डेकोरेटिव कैलीग्राफी बहुत लम्बे समय तक बनी रहती है।
दो साल का है कोर्स
APRI Tonk में पिछले काफी सालों से कैलीग्राफी स्टूडेंट्स के लिए कक्षाएं लगाई जा रही हैं। फिलहाल 47 विद्यार्थी दो साल के कोर्स में इस कला के हुनर को सीख रहे हैं। उन्हें पेंटिंग के साथ पत्थर पर मुगल आर्ट सिखाई जा रही है। चूंकि घरों में नेम प्लेट, हॉल के गुलदस्ते, तस्वीरें समेत अन्य सजावटी सामान की डिामंड बढ़ी
है। यह देखते हुए यहां पत्थर के गुलदस्तों पर मॉर्डन डेकोरेटिव कैलीग्राफी सीखने वालों की संख्या भी बढ़ रही है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कर रहे नाम रोशन
उर्दू के मशहूर शायर और राजस्थान उर्दू अकादमी के पूर्व सदस्य जिया टोंकी ने बताया कि टोंक के कई कैलीग्राफिस्ट ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम रोशन किया है। इसमें एक नाम खलीक टोंकी का भी है, जिन्होंने दिल्ली हज हाउस के मुख्य पत्थर पर लिखावट की है। उन्होंने बताया कि यह हुनर सदियों से चला आ रहा है। टोंक के इस संस्थान की खास बात यह है कि यह समय के साथ मॉर्डन डेकोरेटिव कैलीग्राफी में बदल गया है।
25 हजार दुर्लभ ग्रंथों का जखीरा किया था जमा
जानकारी के मुताबिक टोंक रियासत के तीसरे नवाब मोहम्मद अली खां ने बनारस में रहकर करीब 25 हजार दुर्लभ एवं हस्तलिखित ग्रंथ आदि एकत्रित किए थे। जिसका बड़ा जखीरा टोंक एपीआरआई में अब तक महफूज है। संस्थान में हस्तलिखित करीब 8513 ग्रंथ, 31432 पुस्तकें, 17701 जनरल पत्रिकाएं, 719 फरमान, 65000 शरा के दस्तावेज, 9699 पांडुलिपियां, 65032 बेतुल हिकमत और 50647 प्रिंटेड पुस्तकें संग्रहित हैं। जिससे दुनियाभर के शोधकर्ता लाभान्वित हो रहे हैं। यहां दुनिया का सबसे बड़ा कुरआन पाक भी मौजूद है।
संस्थान के दुर्लभ ग्रंथों की महत्ता को समझते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने 4 दिसंबर 1978 को राज्य सरकार के निर्णयानुसार इस संस्था को निदेशालय के रूप में स्थापित किया। जो आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है।
50 से अधिक देशों के आ चुके विद्वान
यहां अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी, मिस्र, इजराइल, ऑस्ट्रेलिया, ईरान सहित करीब 50 देशों के शोधकर्ता एवं पर्यटक यहां पहुंच चुके हैं। विभिन्न देशों के मंत्री, राज्यों के राज्यपाल, न्यायिक अधिकारी एवं अन्य देशी-विदेशी विद्वान यहां का दौरा चुके हैं।
इनका कहना है...
'बढ़ रहे हैं रोजगार के अवसर'
हमारे यहां सिखाई जा रही मॉर्डन डेकोरेटिव कैलीग्राफी से बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिला है। नेमप्लेट वाले पत्थर पर कैलीग्राफी से नाम लिखवाने का चलन बढ़ गया है। इसके अलावा घर की सजावट के लिए रखे जाने वाले गुलदस्ते समेत अन्य समावटी सामान पर भी मॉर्डन कैलीग्राफी की डिमांग बढ़ गई है। ऐसे में युवा इस कला को सीखने में काफी रूचि दिखा रहे हैं। इसके अलावा यह भी बताना चाहूंगा कि हमारे संस्थान में दुनिया का सबसे बड़ा कुरआन पाक भी मौजूद है।
डॉक्टर सैयद सादिक अली
निदेशक, मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान
Published on:
01 Aug 2023 07:41 pm
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