
राजमहल. पानी भरने की मशक्कत करती महिलाएं।
राजमहल. बीसलपुर बांध के डूब क्षेत्र में आए ६८ गांवों के हजारों परिवारों के लोगों को अन्यत्र तो बसा दिया गया है, लेकिन आज भी इन विस्थापित कॉलोनियों के लोग पेयजल संकट के साथ ही अन्य कई मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे है।
सुविधाओं के लिए कभी ग्राम पंचायत प्रशासन तो कभी जिले के आलाधिकारियों के चक्कर लगाने के बाद भी इनकी समस्याओं की अनदेखी की जा रही है। बीसलपुर बांध बनने के दौरान बांध के जलभराव में कुल ६८ गांव डूब में आए थे, जिसमें २५ गांव पूर्णरूप से व ४३ गांव आंशिक रूप से डूब में थे, जिन्हें सरकार ने यहां से हटाकर अन्यत्र विस्थापित किया गया था।
इसके लिए सरकार की ओर से टोंक व अजमेर जिले के साथ ही कुछ भीलवाड़ा जिले की सीमा में कुल ११२ विस्थापित कॉलोनियां बनाई गई थी, जिसमें सबसे अधिक कॉलोनियां टोंक जिले की देवली उपखण्ड क्षेत्र व अजमेर जिले की केकड़ी तहसील में है।
इन कॉलोनियों में लगभग १४ हजार भूखण्ड विस्थापितों को आवंटन किए गए थे। जहां सरकार के निर्देश पर परियोजना की ओर से उक्त कॉलोनियों में आंतरिक सडक़ निर्माण व सम्पर्क सडक़, पेयजल के लिए कुएं व हैण्पम्प, शिक्षा के लिए विद्यालय भवन, पंचायत भवन, उपचार के लिए चिकित्सालय भवन निर्माण आदि सुविधाएं देनी थी।
डूब में आए गांवों में से बांध से महज पांच किमी की दूरी पर माताजी रावता विस्थापित कॉलोनी, दस किमी पर भगवानपुरा कॉलोनी, पन्द्रह किमी पर अम्बापुरा कॉलोनी, आठ किमी पर बनेडिय़ा कॉलोनी, छह किमी पर बोटून्दा कॉलोनी, नौ किमी पर नाकावाली कॉलोनी सहित देवली उपखण्ड में दर्जनों विस्थापित कॉलोनी के लोग फिल्टर पेयजल के लिए तरस रहे है। इन कॉलोनियों में बनाए गए कुएं व हैण्डपम्पों का पानी वर्षों पहले ही सूखकर जवाब दे चुके है। वहीं सडक़ों का हाल बैहाल है। पाइप लाइनें गुजर रही है, लेकिन इनकों नल कनेक्शन तक नहीं दिए गए है।
Published on:
04 Jul 2020 12:30 pm
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