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मुकाबला बराबरी पर सिमटा: दो पर चला पंजा, दो पर खिला कमल

टोंक. विधानसभा चुनाव की रविवार को हुई मतगणना में जिले की चारों सीटों पर भाजपा एवं कांग्रेस के बीच बराबरी पर मुकाबला सिमटा है। दोनों दलों ने दो-दो सीटें जीतीं। टोंक व देवली-उनियारा सीट कांग्रेस के खाते में गई। टोंक में कांग्रेस के सचिन पायलट ने भाजपा के अजीत मेहता को हराया।

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टोंक

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Rakesh Verma

Dec 04, 2023

मुकाबला बराबरी पर सिमटा: दो पर चला पंजा, दो पर खिला कमल

मुकाबला बराबरी पर सिमटा: दो पर चला पंजा, दो पर खिला कमल

टोंक. विधानसभा चुनाव की रविवार को हुई मतगणना में जिले की चारों सीटों पर भाजपा एवं कांग्रेस के बीच बराबरी पर मुकाबला सिमटा है। दोनों दलों ने दो-दो सीटें जीतीं। टोंक व देवली-उनियारा सीट कांग्रेस के खाते में गई। टोंक में कांग्रेस के सचिन पायलट ने भाजपा के अजीत मेहता को हराया।

उन्होंने टोंक से लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की। जबकि देवली उनियारा में कांग्रेस के हरीश मीणा ने भाजपा प्रत्याशी विजय बैंसला शिकस्त दी। उनको भी दूसरी बार विजयी मिली।

इसी प्रकार निवाई एवं मालपुरा सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की। निवाई से भाजपा प्रत्याशी रामसहाय वर्मा ने जीत हासिल की। उन्होंने निवर्तमान कांग्रेस विधायक प्रशांत बैरवा को हराया। इसी प्रकार मालपुरा में भाजपा के कन्हैयालाल चौधरी ने जीत की हैटि्रक लगाई। उन्होंने कांग्रेस के घासीलाल चौधरी को मात दी।

कांग्रेस को एक सीट का नुकसान

पिछले विधानसभा चुनाव 2018 की बात करें तो कांग्रेस के खाते में चार में से तीन सीटें गई थी, लेकिन इस बार के चुनाव में उसे दो ही सीट हासिल हो सकी।

एक सीट का नुकसान उठाना पड़ा है। 2018 में कांग्रेस के पास टोंक, देवली-उनियारा एव निवाई सीट पर जीत दर्ज की थी। जबकि एक सीट मालपुरा भाजपा के पास थी। इस बार कांग्रेस के हाथ से निवाई सीट छिटक गई। जबकि टोंक व देवली-उनियारा सीट पर कब्जा बनाए रखा है।

सत्ता के साथ रहने वाली सीटें अब विपक्ष में दिखेंगीजिले में टोंक एवं देवली-उनियारा सीट ऐसी थी, जिनके साथ ये मिथक था कि दोनों सीटों पर जो पार्टी जीतती है, प्रदेश में उसकी ही सरकार बनती है, लेकिन इस बार ये मिथक टूटता नजर आया है।

प्रदेश के चुनाव रुझानों में भाजपा की सरकार बन रही है, लेकिन टोंक एवं देवली-उनियारा सीट पर कांग्रेस विजय हुई है। ऐसे में सत्ता की जगह दोनों सीटें विपक्ष के साथ नजर आएंगी।

टोंक सीट: पायलट की जीत का अंतर पिछली बार से कम हुआ, भाजपा अपनों से हारीविधानसभा चुनाव 2018 में टोंक से जब सचिन पायलट ने चुनाव लड़ा था तो 54 हजार 179 मतों से जीत दर्ज की थी।

उन्होंने एक लाख 9 हजार 40 मत हासिल किए थे। जबकि प्रतिद्वंदी भाजपा के युनुस खान को 54 हजार 861 मत प्राप्त हुए थे। लेकिन इस बार पायलट की जीत का अंतर घटकर 29 हजार 475 ही रह गया।

उनको 1,05,812 मत मिले। जो पिछली बार की तुलना में 3228 वोट कम मिले हैं। जबकि प्रतिद्वंदी अजीत मेहता को 76,337 मत प्राप्त हुए, जो पिछली बार युनुस खान को प्राप्त हुए मतों से 21 हजार 476 अधिक हैं। हालांकि इस सीट पर पहले से ही कहा जा रहा था कि सचिन पायलट आसानी से ये सीट जीत लेंगे, परिणामों में ये ही सच साबित हुआ। लेकिन पायलट की जीत का अंतर जिस तरह से घटा है, उससे ये भी जाहिर है कि काफी वोटर उनसे छिटक गए हैं। वोटरों की नाराजगी के रूप में इसे देखा जा सकता है।

वहीं अजीत मेहता ने इस चुनाव स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा बनाया था, लेकिन सचिन पायलट से जैसे बड़े चेहरे के सामने काम नहीं आया। भाजपा के हार की वजह उनका स्थानीय संगठन का पूर्णतया एकजुट नहीं होना भी नजर आया है।

यहां पार्टी पदाधिकारियों के बीच आपसी मनमुटाव के चलते एकजुटता से कांग्रेस के सामने खड़ी नहीं हो पाई। प्रत्याशी एवं पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं के बीच आपसी तालमेल कम दिखाई दिया। संगठन का एक धड़ा तो पूरे चुनाव में साथ ही नजर नहीं आया। इसका पार्टी को खामियाजा उठाना पड़ा।

मालपुरा सीट: इस बार भी कांग्रेस नहीं भेद पाई भाजपा का गढ

मालपुरा सीट ऐसी है, जहां पर कांग्रेस इस बार भी भाजपा का गढ़ नहीं भेद पाई है। ये सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है। तीस साल से कांग्रेस इस गढ़ को नहीं भेद पाई है।

इस बार कांग्रेस ने भाजपा की तर्ज पर जाट समुदाय के प्रत्याशी को उतारा था, लेकिन उसका पैंतरा नहीं चला पाया। वहीं भाजपा के कन्हैयालाल चौधरी ने यहां से लगातार तीसरी बार मैदान मार लिया। हालांकि यहां निर्दलीय गोपाल गुर्जर से दोनों प्रत्याशियों को कड़ी चुनौती मिल रही थी। गोपाल गुर्जर की वजह से कांग्रेस को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। उन्होंने 48 हजार 184 मत हासिल किए।

इस सीट पर कांग्रेस की ओर से गोपाल गुर्जर टिकट दावेदारी कर रहे थे, लेकिन पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर वे बागी हो गए। इसका खामियाजा कांग्रेस को चुनाव परिणाम में उठाना पड़ा है। जबकि भाजपा के लिए कांग्रेस का ये फैसला फायदेमंद साबित हुआ। भाजपा को लगातार तीसरी जीत दिलाने वाले कन्हैयालाल को भाजपा सरकार में महत्वपूर्ण पद भी मिल सकता है।

देवली-उनियारा सीट: बड़ी सभाएं करके भी नहीं जीत पाई भाजपा, नहीं चला बैंसला का जादूदेवली-उनियारा सीट भी खासी चर्चाओं में थी। क्योंकि इस सीट पर भाजपा ने गुर्जर नेता रहे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के पुत्र विजय बैंसला पर दांव खेला था। उनका ये पहला चुनाव था।

वहीं कांग्रेस ने विधायक हरीश मीणा को ही फिर से इस सीट पर मैदान में उतारा था। भाजपा ने यहां अपनी जीत दर्ज करने के लिए कई बड़ी सभाएं की थी।

इस सीट पर केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने देवली में तथा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनियारा के निकट मांडकला में सभा की थी, लेकिन इनका जनता पर असर नहीं चल पाया। गुर्जर नेताओं में शुमार विजय बैंसला का जादू भी फीका दिखा।

हालांकि शुरुआत रुझानों में विजय बैंसला को बढ़त मिल रही थी, इससे लग रहा था कि ये सीट भाजपा के खाते में जाएगी, लेकिन आठ राउंड बाद िस्थतियां बदलती गई। परिणाम हरीश मीणा के पक्ष में होता गया। इस सीट पर भी भाजपा के लिए बागी प्रत्याशी विक्रम सिंह गुर्जर से नुकसान उठाना पड़ा।

हालांकि विक्रम सिंह कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया। इस पर उन्होंने रालोपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। इस सीट पर दो गुर्जर प्रत्याशी खड़े होने से समुदाय के वोटरों का विभाजन हो गया। इससे भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा।

निवाई सीट: जातिगत समीकरणों ने भाजपा को दिलाई जीत

भाजपा ने ये सीट कांग्रेस से छीन ली। यहां पर भाजपा प्रत्याशी रामसहाय वर्मा ने पिछले चुनाव में मिली हार का बदला लिया। पिछली बार उनको कांग्रेस के प्रशांत बैरवा ने हराया था। हार के बाद भी निवाई क्षेत्र में सक्रिय रहे। इस बार फिर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।

हालांकि इस सीट पर बैरवा वोटरों का विभाजन होने के कारण प्रशांत बैरवा को हार मिली। यहां कांग्रेस से बागी होकर रालोपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले प्रहलाद नारायण बैरवा ने 20,362 वोट हासिल किए। जो कांग्रेस के लिए नुकसानदायक रहा।

इसी प्रकार कांग्रेस सरकार पर संकट के दौरान सचिन पायलट का साथ छोड़ने वाले प्रशांत बैरवा से गुर्जर वोटर की भी नाराजगी मुखर होकर सामने आई। इस दोहरी मार के चलते कांग्रेस को अपनी ये सीट खोनी पड़ी। जबकि भाजपा को परम्परागत वोट के साथ रैगर, गुर्जर, सामान्य वर्ग का भी साथ मिला।