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राजपूत व मुस्लिम रियासत रहा टोंक अनदेखी से पर्यटकों को तरस रहा

ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विरासत, प्राकृतिक एवं वन्य जीव सम्पदा से भरपूर होने के बाद भी सरकारी अनदेखी से टोंक जिला पर्यटकों को तरस रहा है।

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 ऐतिहासिक  विरासत

टोंक. ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विरासत, प्राकृतिक एवं वन्य जीव सम्पदा से भरपूर होने के बाद भी सरकारी अनदेखी से टोंक जिला पर्यटकों को तरस रहा है।

टोंक.

ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विरासत, प्राकृतिक एवं वन्य जीव सम्पदा से भरपूर होने के बाद भी सरकारी अनदेखी से टोंक जिला पर्यटकों को तरस रहा है। राजपूत (चौहान व सोलंकी) तथा मुस्लिम शासकों का शासित रहा टोंक जिला
बूंदी, सवाईमाधोपुर, जयपुर , अजमेर , भीलवाड़ा की सीमा से सटा है। इसके अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग पर बसा है। जहां पर्यटन की भरपूर सम्भावनाएं हैं।

ककोड़ का किला, टोडारायसिंह के महल, बावडिय़ां, बगड़ी, पचेवर के किले, हाथी भाटा, हाडी रानी की बावड़ी, सुनहरी कोठी, ऐतिहासिक विरासत होने के साथ पर्यटन विकास की सम्भावनाएं रखते हैं।

धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से डिग्गी कल्याण, गोकर्णेश्वर महादेव का मन्दिर जोधपुरिया देवधाम निवाई, धन्ना भगत की तपोस्थली, हिंगलाज माता मन्दिर चांदली, धरणीधर मन्दिर माण्डकला टोंक जिले में है। मेलों के अन्र्तगत पीपलू व माण्डकला पशु मेला, डिग्गी कल्याणजी का मेला, जोधपुरिया का मेला व आवां का दड़ा महोत्सव पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

ये भी कम नहीं है
प्राकृतिक एवं नैसर्गिक सौन्दर्य स्थलों में राज्य का प्रसिद्ध बांध बीसलपुर, बीसलदेव मन्दिर, बीसलपुर बायो रिजर्व पार्क, रानीपुरा ककोड़ वन्य जीव क्षेत्र पर्यटकों को लुभा लेते हैं। शैक्षणिक संस्थानों में देखें तो वनस्थली विद्यापीठ, केन्द्रीय भेड़ अनुसंधान केन्द्र अविकानगर, अरबी फारसी शोध संस्थान टोंक में है। जहां देश-विदेश से लोग आते हैं।

हस्त शिल्प में टोंक की दरी, नमदे एवं गलीचे पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन सकते हैं। सांस्कृतिक धरोहर के अन्तर्गत चारबेंत लोक गायन शैली, खेड़ा सभ्यता नगरफोर्ट, निवाई में रक्तांचल पर्वत के पीछे रेतीले धोरे हिन्दू एव नवाबी संस्कृति से अलग स्वरूप प्रदान करते हैं।

इस प्रकार टोंक की भौगोलिक स्थिति इसे एक पर्यटक केन्द्र बनाने की भरपूर सम्भावना उपलब्ध कराती है। आवश्यकता है योजनाबद्ध विकास कराने की। जनप्रतिनिधियों व प्रशासनिक अधिकारियों की दृढ़ इच्छा शक्ति के अभाव में पर्यटन के मानचित्र पर टोंक अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा सका है।

धरोहरों का संरक्षण जरूरी
जर्जर होती ऐतिहासिक इमारतों एवं स्मारकों का संरक्षण आवश्यक है। इसके लिये जिला व स्थानीय प्रशासन, पर्यटन विभाग, आर्कोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, एनजीओ आदि मिलकर इनकी सार-सम्भाल एवं संरक्षण की व्यवस्था कर सकते हैं। क्षेत्र के पर्यटन आधारित स्थलों का प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए।

होटल, रेस्टोरेंट, पार्क विकसित करने के प्रयास हों। बीसलपुर डेम क्षेत्र में वाटर पार्क एवं जल क्रीड़ा स्थल विकसित कर इसे पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनाया जा सकता है। ग्रामीण पर्यटन, हस्त शिल्प कला केन्द्र, हाट बाजार विकसित कर सकते हैं।

जयपुर, बूंदी, सवाईमाधोपुर, कोटा मार्ग के पर्यटकों को आकर्षित कर व्यवसायिक, औद्योगिक एवं कृषि की दृष्टि से पिछड़े जिले में पर्यटन विकास की सम्भावनाओं को बढ़ाया जा सकता है। इससे लोगों को रोजगार मिलेगा, वहीं निर्जन पड़ी ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षण प्राप्त हो सकेगा।