
धीरेेंद्र जोशी/ उदयपुर . भगवान विष्णु की आराधना से जुड़ा अधिकमास बुधवार से शुरू हो रहा है जो १३ जून को समाप्त होगा। हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक तीन वर्ष में एक बार आने वाले अधिकमास की हिंदू धर्म में खास महत्ता है।
पंडित अश्विनी कुमार भट्ट ने बताया कि जिस मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक कोई सूर्य संक्रांति न आती हो उसे अधिकमास या पुरषोत्तम मास कहा जाता है। उन्होंने बताया कि नारदीय पुराण में १२ सूर्य के अनुसार वर्ष के १२ महीनों के नाम है। जब 13 वें मास अधिकमास के नामकरण का सवाल उठा तो सभी देवी देवता भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने इस माह को अपना नाम पुरुषोत्तम मास दिया। यह माह भगवान विष्णु को अतिप्रिय है। इस माह में विष्णु की आराधना विशेष फलदायी होती है। अन्य माह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होते हैं और पूर्णिमा पर समाप्त होते हैं। इस माह में मांगलिक कार्य नहीं होते।
अधिकमास में क्या करें
अधिकमास में आमतौर पर व्रत-उपवास, पूजा.-पाठ, ध्यान , भजन-कीर्तन किए जाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ-हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन करना विशेष फलदायी होता है। जगदीश मंदिर के पुजारी हुकुमराज ने बताया कि भागवत कथा का आयोजन होगा।
हर तीन साल में ही क्यों
ज्योतिष सूर्यमास और चंद्रमास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घड़ी के अंतर से आता है। इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्रमास अस्तित्व में आता है। अतिरिक्त होने के कारण इसे अधिकमास कहा जाता है।
Published on:
16 May 2018 02:01 pm
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