
मोहम्मद इलियास/उदयपुर
कहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए, कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए... दुष्यंत कुमार की यह पंक्तियां लेक सिटी के हालात पर सटीक बैठती है। उदयपुर शहर को रोशन करने के लिए पूरे शहर में 42 हजार एलईडी लाइट होने के बाजवूद अंधेरा होने पर लगातार पत्रिका में खबर प्रकाशन व शिकायतों के बाद निगम ने ठेका निरस्त कर दिया। अभी नया ठेकेदार पूरे शहर में स्ट्रीट लाइट को ठीक करने में जुटा लेकिन बाहरी शहर में अभी भी काफी अंधेरा है।
शहरभर के गली-मोहल्लों में लगी एलईडी लाइटों में सर्वाधिक लाइट खुले जगह वाले बड़े वार्ड हिरणमगरी, प्रतापनगर, सविना, मादड़ी क्षेत्र में बंद पड़ी है। इन लाइटों के रखरखाव का खर्चा सरकार व निगम ने तीन कंपनियों को दे रखा है। रखरखाव के अभाव में निगम ने इन कंपनियों का ठेका निरस्त कर नया ठेका दिया है।
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जनता की बदौलत हम राज्य में सेज पॉजिटिव में थे
शहर में जलने वाली लाइट से ज्यादा जनता द्वारा चुकाए जा रहे बिल के कारण ही हमारी नगर निगम राज्य में सेज-पॉजिटिव की श्रेणी में शामिल थी, लेकिन अभी पूरे शहर में जलने वाली लाइट का सालाना बिल करीब 5 से 6 करोड़ आ रहा है और जनता करीब 7 करोड़ भुगतान कर रही थी, लेकिन अब यह बिल बढ़ गया।
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इतना पैसा दे रही जनता, इस तरह से पूरा हिसाब-किताब
- शहर की कुल आबादी - करीब 5 लाख
- शहर में गली मोहल्लों में लग रही लाइट- करीब 42 हजार
- जनता से स्ट्रीट लाइट का ले रहे पैसा - 15 पैसे प्रति यूनिट
- विद्युत खपत का सालाना कुल खर्च - करीब 5 से 6 करोड़
- जनता से एकत्रित हो रहा कुल पैसा - करीब 7 करोड़
- विद्युत विभाग पैसा भेज रही - राज्य सरकार की डीएलबी शाखा को
- बिल भुगतान के बाद बचा पैसा आ रहा निगम को, रखरखाव पर हो रहा खर्च
- पैसा पूरा लेने के बाद भी ठेकेदार कंपनियों का समय पर नहीं हो रहा भुगतान
- पूर्व में शहर में लगी थी सोडियम लाइट तब लेते थे पैसा - 10 पैसा प्रति यूनिट
- एलईडी लाइट लगने के बाद भी जनता से ज्यादा लिया जा रहा पैसा
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Published on:
08 Mar 2023 10:40 pm
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