
उदयपुर . मेवाड़-वागड़ में इस मानसून में अतिवृष्टि के दौरान कई हादसों ने परिवहन विभाग को झकझोर दिया है। अतिवृष्टि से खस्ताहाल सडक़ नेटवर्क, टूटती पुलियाओं व रपट को विभाग ने गंभीर सडक़ हादसों का कारण मानते हुए अंचल के जिला कलक्टरों को पत्र भेजकर इन हादसों की रोकथाम का विस्तृत खाका मांगा है। इसके आधार पर पानी के बहाव स्तर से करीब दो-दो फीट ऊंचाई की सडक़, पुलिया व रपट बनानी प्रस्तावित हैं। प्रस्ताव को केन्द्र सरकार को भेजकर निर्माण के लिए विशेष अनुदान लिया जा सके।
प्रमुख शासन सचिव एवं परिवहन आयुक्त अभय कुमार ने उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ व सिरोही जिले के कलक्टरों को लिखे पत्र में राज्य सडक़ सुरक्षा नीति व सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित सडक़ सुरक्षा समिति के निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि 2015 की तुलना में 2020 तक सडक़ हादसों में मरने वालों का आंकडा 50 फीसदी कम करना है। इस संबंध में उदयपुर जिला कलक्टर ने रिपोर्ट भी तैयार कर ली है जिसे जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग व परिवहन आयुक्तालय को भेजी जाएगी।
पहाड़ों में होता है पानी का वेग ज्यादा
आदिवासी क्षेत्र के बांसवाड़ा, डंूगरपुर, प्रतापगढ़ का अरनोद, पीपलखूंट व धरियावद तथा उदयपुर जिले के खेरवाड़ा, कोटड़ा, झाड़ोल, सेमारी, सराड़ा, सलूम्बर, लसाडिय़ा व गिर्वा तहसील के अलावा सिरोही जिले का आबूरोड उपखंड अनुसूचित क्षेत्र घोषित है। इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा भी 90 सेमी. से अधिक है जिससे वर्षा ऋतु में दुर्घटनाएं घटित होने की प्रबल संभावनाएं है। यह क्षेत्र राष्ट्रपति द्वारा जारी अधिसूचना को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया है। संविधान के अनुच्छेद 275 (1) के इस क्षेत्र को विशेष अनुदान देने का प्रावधान है जिससे राज्य सरकार पर किसी तरह का भारी नहीं पड़ेगा।
विभाग ने ऐतिहासिक पहल की है, जिसमें रोड सेफ्टी के साथ-साथ सरकार की अन्य जनकल्याणकारी योजनाओं को भी सकारात्मक गति मिलेगी।
डॉ.मन्नालाल रावत, क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी उदयपुर
ये हादसे झकझोर गए
-बांसवाड़ा के कुशलगढ़ में उपखंड अधिकारी गाड़ी सहित बह गए। दो दिन के बाद एसडीएम का शव मिला।
-जालोर के गोरवाड़ा उपाधीक्षक गाड़ी सहित बह गए, जिन्हें बाद में बचा लिया गया।
-उदयपुर के झाड़ोल में गर्भवती महिला को लेने गई एम्बुलेंस, वापसी में रपट टूटने से अटक गई। ऐसे में एक स्कूल में ही प्रसूति करवानी पड़ी।
-खेरवाड़ा के कनबई में एक जीप पुलिया से बह गई जिसमें सवार मां-बेटी की मौत हो गई।
आदिवासी का महाकुंभ व प्रमुख तीर्थस्थल बांसवाड़ा का बेणेश्वर धाम इस मानसून में चार बार टापू बना, जिसमें कई श्रद्धालु फंस गए।
यह होता है प्रभावित
-प्रति वर्ष पुलिया व रपट टूटने व बहने से नए निर्माण होते हैं।
-आदिवासी क्षेत्र के गरीब लोग एक जगह ही फंस जाते हैं और उनका अन्य गांवों से सम्पर्क टूट जाता है। इससे पूरा जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
-सरकार की कल्याणकारी योजनाएं प्रभावित होती हैं ।
Published on:
25 Sept 2017 02:04 pm
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