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हाईकोर्ट बैंच की मांग में आमरण अनशन कर रहे शांतिलाल चपलोत से उदयपुर में मिले कैलाश मेघवाल, कही ये बात

उदयपुर- विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने कहा कि 'मैं कुछ बातें आपसे गंभीरता से करना चाहता हूं, आप इसे सुनकर फैसला लेना।

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highcourt bench demand shantilal chaplot and kailash meghwal, udaipur

उदयपुर- विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने कहा कि 'मैं कुछ बातें आपसे गंभीरता से करना चाहता हूं, आप इसे सुनकर फैसला लेना। गत 11 तारीख को किसी केस के सिलसिले में वे यहां आए थे, उसके बाद यहां पहुंचकर मैंने कहा कि आन्दोलन वाजिब है। ये ऐसी मांग है जिस मांग से पूरे उदयपुर संभाग का लाभ होगा। मैंने चपलोत के साथ मिलकर कई राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय आन्दोलन देखे हैं, राजनैतिक दृष्टि से कार्य करते करते मेरे कुछ अनुभव भी हैं। मेघवाल ने समझाने के तरीके से कहा कि आपने बंदूक भरी वो तो ठीक है, भरने के भय से उद्देश्य प्राप्त होने की राह खुलती है, लेकिन इसे चलाने के बाद क्या होगा। गत 13 तारीख को राज भवन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से इस मांग पर निवेदन किया, इस पर कोविंद ने मई के आखिरी सप्ताह में 11 वकीलों के प्रतिनिधि मंडल को मिलने का बुलावा मेरे माध्यम से भेजा है।’

मैं सरकार का प्रतिनिधि नहीं - मेघवाल ने कहा कि सरकार का 'मैं प्रतिनिध नहीं हूं। मैं संवैधानिक संस्था का प्रतिनिधि हूं। चपलोत मेरे मित्र हैं, मैंने उदयपुर में वकालात की है। सरकार ने दो मंत्री भेजे थे, 19 मई को मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी वकीलों के साथ बैठकर वार्ता करने के लिए तैयार हैं ये तय हो चुका है। कैबिनेट, सुप्रीम कोर्ट, राजस्थान हाइकोर्ट व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की स्वीकृति भी जरूरी होगी। इस बंदूक को भरी रहने दीजिए, 36 वर्षों के संघर्ष का ये परिणाम है। जो रिस्पोंस चपलोत के कदम के बाद मिला है। यदि ये सब स्थिति बनी हुई है तो चपलोत को अनशन की घोषणा को वापस लेना चाहिए। ’ उन्होंने कहा कि राजस्थान में कई आन्दोलन हुए, यदि ये बीमार हो गए तो क्या होगा। सरकार कई बार संवेदनशील नहीं होती ऐसे में परेशानी बढ़ जाएगी। भावुकता में निर्णय नहीं लेकर तर्क व विवेक से निर्णय लें। राष्ट्रपति व राज्य सरकार आपकी बात सुनने के लिए तैयार है। हाइकोर्ट बैंच की भींडर विधायक रणजीतसिंह और उदयपुर ग्रामीण विधायक फूलसिंह ने मांग रखी थी, लेकिन माकूल चर्चा नहीं हुई।

अब जब विधानस ाा बैठेगी, इस मांग पर पूरे एक दिन इस पर चर्चा का मैं विश्वास दिलाता हूं। उन्होंने कहा कि चपलोत ये कदम पीछे ले। उन्होंने समझाने के लिए छाबड़ा की कहानी सुनाई और कहा कि गुर्जर आन्दोलन में गोली कांड हुआ, असर क्या रहा। उन्होंने शराबबंदी का मामला उठाया। 42 दिन बाद अनशन के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। हाईकोर्ट केवल एक आदेश पर नहीं खुलेगा। मैंने अपनी बात कह दी, अब फैसला आपका।’ इतना कहकर वे अपनी राह चल दिए।


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