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संगीत का ऐसा जुनून, भरी सभा में पं.चौरसिया से कहा, मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूं..

locationउदयपुरPublished: Jul 21, 2019 06:09:17 pm

Submitted by:

madhulika singh

फेस टू फेस : लेकसिटी के युवा फ्लूट आर्टिस्ट चिन्मय गौड़ को मिला अल्लाउद्दीन स्वर्ण पदक, कई बड़े मंचों पर कर चुके हैं परफॉर्म

 flute artist chinmay gaur

संगीत का ऐसा जुनून, भरी सभा में पं.चौरसिया से कहा, मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूं..

मधुलिका सिंह/उदयपुर संगीत का जुनून इस युवा पर कुछ ऐसा सवार था कि भरी सभा में पंडित हरिप्रसाद चौरसिया से कहा कि मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूं। पं.चौरसिया ने भी युवा का आत्मविश्वास और उसका संगीत सीखने के प्रति उसका जज्बा देख कर उसे शिष्य बनाना स्वीकार कर लिया। आज पद्मभूषण पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के सान्निध्य में रूपक कुलकर्णी और राकेश चौरसिया से यह युवा बांसुरी की तालीम भी प्राप्त कर रहा है। हम बात कर रहे हैं उदयपुर के युवा बांसुरीवादक चिन्मय गौड़ की। चिन्मय की कहानी उन सभी युवाओं के लिए प्रेरक है जो हालातों से या तो हार मान लेते हैं या फिर खुद को कमतर आंक कर कदम पीछे ले लेते हैं। अब तक चिन्मय देश व विदेश के कई बड़े मंचों पर अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। चिन्मय ने अपनी स्कूली शिक्षा शहर के एमडीएस और केंद्रीय विद्यालय स्कूल से पूरी की और फिर एमएस यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा से स्नातकोत्तर में टॉप किया। अपनी संगीत शिक्षा और मेहनत के बलबूते उन्हें अल्लाउद्दीन स्वर्ण पदक से नवाजा गया। हाल ही उन्होंने नेट जेआरएफ में भी सफलता प्राप्त की है। वर्ष 2017 में, दुबई में लिविंग टैलेंट्स द्वारा आयोजित विश्व की पहली इंटरकॉन्टिनेंटल प्रतियोगिता में चिन्मय ने देश दुनिया से आए 225 प्रतिभागियों में से फाइनल्स तक की राह पकड़ी। जहां अपने अनोखे अंदाज में ‘वंदे मातरम’ से शो की ओपनिंग भी की। कुछ महीनों पहले रिलीज जी म्यूजिक कंपनी के एक हिट सांग ‘दिल के सुकून में’ चिन्मय ने बांसुरी और वायलिन बजाया है।
स्कूल में मिला पहला मंच
बचपन में संगीत के प्रति चिन्मय की बिल्कुल भी रुचि नहीं थी और हकलाने की वजह से उसका मजाक भी उड़ाया जाता था। वही एक दिन संगीत के बड़े मंच पर प्रस्तुति देकर लोगों का दिल जीत लेगा, ये कभी किसी ने नहीं सोचा था। उसने ना केवल अपने डर पर काबू पाया बल्कि संगीत के सुरों का ऐसा ज्ञान प्राप्त किया कि अब लोग उसके शिष्य बनना चाहते हैं। चिन्मय ने बताया कि 8वीं के बाद उनकी संगीत के प्रति सोच ही बदल गई। वह लोगों के सामने कुछ ऐसा कर दिखाना चाहता था जिससे लोग उसके अंदर के कलाकार को जान सकें। ऐसे में बिना किसी भी गुरु और प्रशिक्षण के खुद से ही बांसुरी बजाना सीखा और पहली बार स्कूल में स्टेज पर परफॉर्म किया। उस दिन जो तालियां मिलीं और टीचर्स व दोस्तों की सराहना मिली वो आज हजारों लोगों की प्रशंसा में तब्दील हो चुकी है।
युवाओं को संगीत से जोडऩे का लक्ष्य
चिन्मय के संगीत का शुरुआती सफर भले ही आसान नहीं रहा लेकिन जब उन्हें गुरु मिले तो उनके संगीत को दिशा मिल गई। चिन्मय अपने गुरुगोविंद गंधर्व और सुधाकर पीयूष को जीवन में संगीत का ज्ञान कराने के लिए श्रेय देते हैं। आज के समय में जहां अधिकतर युवा देश के शास्त्रीय संगीत एवं सभ्यता से दूर होते जा रहे हैं, वहीं वे युवाओं को भारतीय संगीत से जोडऩे का लक्ष्य लेकर चल रहे चिन्मय ने बताया कि वे हिंदी सिनेमा में संगीत को नया रूप देने और अपना स्थान बनाने के लक्ष्य पर दिन-रात मेहनत कर रहे हैं।
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