
उमेश मेनारिया/मेनार. जिले में इस वर्ष से माइक्रो स्प्रिंकलर (बौछारी) सिंचाई की शुरुआत हो चुकी है किसान अब इस पध्दति का प्रयोग सब्जियां अफीम फलदार फसलों में कर रहे हैं। मुख्यतः इसकी शुरुआत अफीम किसानो ने की है । उदयपुर जिले के मेनार , सनवाड़ , इंटाली , कानोड़ के गाँवों में किसानों ने इसकी शुरुआत की है । सरकारी अनुदान के तहत इस योजना से किसान को ना सिर्फ पानी किल्लत से निजात मिलेगी बल्कि फसल की पैदावार गुणवत्ता पर खास प्रभाव पड़ेगा । फसलों का भरपूर अंकुरण पाले एवं कीटों से बचाव के साथ ही गुणवत्ता पूर्ण अधिकतम पैदावार और कष्टों की आमदनी बढ़ाने के लिए किसान इस तकनीक का उपयोग कर रहे हैं सबसे पहले किसानों ने इसे अफीम की फसल में अपनाया है ।
बौछारी या स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई में पानी को छिड़काव के रूप में दिया जाता है। जिससे पानी पौधों पर वर्षा की बूंदों जैसी पड़ती हैं। पानी की बचत और उत्पादन की अधिक पैदावार के लिहाज से बौछारी सिंचाई प्रणाली अति उपयोगी और वैज्ञानिक तरीका मानी गई है। किसानों में सूक्ष्म सिंचाई के प्रति काफी उत्साह देखी गई है। इस सिंचाई तकनीक से कई फायदे हैं।
नया ट्रेंड बून्द बून्द - माइक्रो स्प्रिंकलर सिंचाई का एक साथ प्रयोग
उदयपुर जिले में किसान बून्द बून्द सिंचाई एवम् माइक्रो स्प्रिंकलर सूक्ष्म सिंचाई दोनो का प्रयोग एक साथ कर रहे है ।मटर, गाजर, मूली , विभिन्न प्रकार की पत्तेदार सब्जियां, दलहनी फसलें, तिलहनी फसलें, अन्य कृषि फसलें, औषधीय एवं सगंध फसलों में मिनी स्प्रिंकलर, माइक्रो स्प्रिंकलर, सेमी परमानेन्ट, पोर्टेबल एवं लार्ज वैक्यूम स्प्रिंकलर (रेनगन) द्वारा सरलता से सिंचाई प्रबन्धन किया जा सकता है ।
माइक्रो स्प्रिंकलर ( बौछारी ) सिंचाई से अनेक लाभ
अफीम की फसल में किसान बिना खेत के अंदर गुस्से डायरेक्ट बराबर मात्रा में दवाओं का स्प्रे भी आसानी से कर सकते हैं अफीम की फसल में बिना खेत के अंदर किसान समय समय छिड़काव कर सकता है । इससे मज़दूरी की बचत एवं अफीम की फसल के पोधे एवम् डोडे टूटने का खतरा नहीं रहता है । रमेश यादव एवं जगदीश मेनारिया ने बताया कि सूक्ष्म सिंचाई ( बौछारी ) एवम् बूंद.बूंद सिंचाई पर अगर किसान ज्यादा ज्यादा ध्यान दे तो न केवल उत्पादन बढ़ाया जा सकता है । बल्कि कृषि की उन्नत तकनीक भी विकसित की जा सकती है। असमतल भूमि और ऊंचाई वाले क्षेत्र में भी बौछारी प्रणाली से खेती की जा सकती है। इस तकनीक से श्रम की भी बचत होती है। बौछारी से पानी सी सीधे पौधों पर ही गिरता है। ऎसे में खरपतवार पर नियंत्रण रहता है। बीमारियों और कीड़े.मकोड़ों की संभावनाएं कम रहती हैं। कृषि में इस तकनीक के उपयोग से फसल पैदावार एवं गुणवत्ता में वृद्धि के साथ उत्पादन लागत में भी कमी आती है । सभी फसलों जैसे की अफीम लहसुन धनिया जीरा एवं सब्जियां इत्यादि में अत्यंत उपयोगी है
Published on:
05 Dec 2017 07:45 pm
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