
शिकार के लिए पानी को थपथपाकर घोला बनाता है डालमिशन पेलिकन
उमेश मेनारिया/मेनार . रोजी पेलिकन (हवासिल) पक्षी को मेनार के धण्ड तालाब में देखा जा सकता है। इस साल तो ये नवम्बर की शुरुआत में ही मेनार पहुंच गए हैं। अक्सर कम दिखाई देने वाला डालमिशन पेलिकन भी यहां प्रतिवर्ष प्रवास पर आता है। धण्ड तालाब और ब्रह्मसागर में इसकी संख्या 100 के करीब है। विशेष आवाज के कारण स्थानीय लोग इसे ‘गरट’ नाम से जानते हैं। बड़े आकार का पक्षी होने से ये दूर से ही दिख जाता है। माइग्रेट बर्ड होने के बावजूद देश में वाइल्ड प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के शिड्यूल-5 में इसे शामिल किया गया है। नियम के तहत इसका शिकार निषेध है। हवासील का शिकार करने पर जेल और जुर्माना हो सकते हैं।
विशेषता:
नर पक्षी मादा से ज्यादा बड़ा होता है। नर का वजन 9 से 15 किलो होता है, ये एक दिन में करीब 4-5 किलो तक मछली खाता है। यह पक्षी दक्षिण भारत की 12 मासी नदियों में पाया जाता है। यह लंबी और ऊंची उड़ान भरता है।पक्षीविद् विनय दवे और प्रदीप सुखवाल के अनुसार हवासील मछली खाने का शौकीन है। साफ पानी में तैरते हुए मछली को शिकार बनाते हैं। सफेद रंग और लंबी चोंच आकर्षक लगती है। चोंच का निचला हिस्सा थैलीनुमा होता है। जो मछली खाने में मददगार होती है। ये झुंड में पानी में बहुत बड़ा घोला बनाते हैं। फिर पंखों से पानी को थपथपाते हैं। मछलियां गोले के केंद्र में सिमट जाती है। फिर हवासिल आसानी से मछलियां खा लेते हैं।
Published on:
08 Jan 2020 08:03 pm
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