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खजूर के पत्ते पशुपालकों के लिए साबित हो रहे वरदान

-अधिक चबाने से पशुओं का शरीर भी रहता है गर्म-हरे चारे के विकल्प के रूप में हो रहा उपयोग उदयपुर जिले के सराडा उपखंड में खजूर के पत्तों का उपयोग पशुओं के लिए हरे चारे के रूप में हो रहा है। पत्तों का पाचन देर में होता है। जिससे पशु अधिक समय तक जुगाली करता है। इस तरह ठण्ड में भी पशुओं का शरीर गर्म रहता है। इसकी डंडियां भी चूल्हे के ईंधन के लिए काम में ली जाती हैं।

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खजूर के पत्ते पशुपालकों के लिए साबित हो रहे वरदान

खजूर के पत्ते पशुपालकों के लिए साबित हो रहे वरदान

सुबह से ही खजूर के पत्तों की तलाश में जुटते
सर्दी में सुबह-सुबह लोग कंधे पर लोहे की दराती लगी हुई लंबा बांस सिर पर या बाईक के पीछे बांधकर लाते दिखाई देते हैं। इसमें खजूर के पत्तों सहित डंडियों का गट्ठर भी होता है। उपखंड के कई गांवों में पशुपालक सुबह ही खजूर के पत्तों की तलाश में निकल जाते हैं। दो-तीन घण्टे बाद खेतों व जंगल से खजूर के ऊंचे पेड़ से बांस पर लगी दराती से काट कर लाते हैं।

पशुओं के लिए उपयोगी खजूर के पत्ते
पशुपालक कालूलाल पटेल ने बताया कि खजूर के पत्ते पशुओं के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। इनमें फाइबर व आयरन प्रचुर मात्रा में होता है। पशुपालक किसानों का मानना है कि जिन पशुओं को खजूर के पत्ते खिलाए जाते हैं, उनके दूध का फैट भी हरे चारे खाने वाले पशु से अधिक रहता है। साथ ही किसानों को चारे की किल्लत से भी निजात मिलती है ।

खेजड़ी, बबूल के पत्ते भी लाभकारी
किसान गोकुलचंद का कहना है दिसंबर से फ रवरी अन्त तक चारा व गेहूं का खांखला खत्म हो जाता है। तब खजूर के पत्ते खिलाए जाते हैं। कई पीढियों से यह चल रहा है। पशुआहार व फूड सप्लीमेंट के अस्तित्व में न होने पर पहले भी खेजड़ी, बबूल व पेड़ों की पत्तियां पशु आहार में उपयोग में ली जाती थीं। इनमें कई औषधीय तत्व भी होते हैं।

झाडू व चटाई में इस्तेमाल
खजूर की पत्तियों से झाडू ,चटाई, बुहारी तथा अन्य कई तरह के सजावटी सामान बनाए जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में झोपडियों के छप्पर, भूसा भरने के कड़े, जालियां भी बनाये जाते है।

इनका कहना ...
रिजका, बाजरा व अन्य दूसरे हरे चारे के अभाव में सुगमता व बिना खर्च से उपलब्ध होने की वजह से पशुपालक खजूर के पत्तों का उपयोग करते हैं। इन पत्तों से पशु के स्वास्थ्य को ज्यादा लाभ नही होता है परन्तु नुकसान भी नही है ।
- डॉ. महेन्द्र सिंह मील, सहायक आचार्य, पशुपोषण विभाग
पशुचिकित्साधिकारी विज्ञान महाविद्यालय, नवाणिया

अनिल वैष्णव — मायर