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शिल्पग्राम में प्रचलित, दुर्लभ वाद्य यंत्रों की कार्यशाला शुरू चार राज्यों के अस्सी लोक और वाद्य यंत्रों

शिल्पग्राम में प्रचलित, दुर्लभ वाद्य यंत्रों की कार्यशाला शुरू चार राज्यों के अस्सी लोक और वाद्य यंत्रों

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शिल्पग्राम में प्रचलित, दुर्लभ वाद्य यंत्रों की कार्यशाला शुरू  चार राज्यों के अस्सी लोक और वाद्य यंत्रों

शिल्पग्राम में प्रचलित, दुर्लभ वाद्य यंत्रों की कार्यशाला शुरू चार राज्यों के अस्सी लोक और वाद्य यंत्रों

प्र्र्रमाेद साेनी / उदयपुर.(Shiplgram) पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से शिल्पग्राम में साप्ताहिक लोक और आदिवासी वाद्य यंत्र कार्यशाला सोमवार को शुरू हुई। इस अवसर पर वाद्य यंत्रों की प्रदर्शनी व कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें कई राज्यों के (Rare musical instruments)प्रचलित, दुर्लभ और विलुप्त प्राय: 80 वाद्य यंत्र प्रदर्शित किए गए। वरिष्ठ लोक कलाकार लाखा खां ने कहा कि संगीत की कोई भाषा नहीं होती तथा सारे विश्व में संगीत एक जैसा ही होता है। अपनी विदेश यात्राओं का जिक्र करते हुए लाखा खां ने बताया कि इंगलैण्ड, अमरीका जैसे देशों में भारतीय लोक वाद्यों को काफ ी सम्मान मिलता है। दिनेश कोठारी ने कहा कि केन्द्र का यह प्रयास अनुकरणीय है कि चार राज्यों के वाद्य एक साथ एक मंच पर देखने को मिले हैं। केन्द्र के प्रभारी निदेशक सुधांशु सिंह ने इस अवसर पर अतिथियों व कलाकारों का स्वागत किया। कार्यक्रम अधिकारी तनेराज सिंह सोढ़ा ने कार्यशाला के बारे प्रकाश डाला। कार्यशाला में 50 से ज्यादा लोक वादक कलाकारो ने भाग लिया। इस दौरान(Rare musical instruments)प्रदर्शित किए गए वाद्य खड़ताल, ढोलक, सिन्धी सारंगी, सतारा, नड़, सुरिन्दा, नगाड़ा, पूंगी, चौतारा, रावण हत्था, जोगीया - प्यालेदार सारंगी, सुरनाई एवं मुरली, थाली मादल, थाली सर कथौड़ी, मोरचंग, ढोल थाली, पाबु जी के माटे, , मटका, भपंग, मटका थाली, मंजीरा, घुम्मट शामिल हैं।


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