
साल दर साल कद बढ़ा रहा रावण, 7 से 70 फीट का हो गया
उदयपुर. भारत-पाकिस्तान विभाजन के साथ ही शहर में आए सिंधी समाज के कुछ लोगों ने दशहरा पर्व मनाने की परंपरा शुरू की थी। तब सात से आठ फीट के रावण दहन से शुरू हुई यह परंपरा आज 70 फीट के रावण दहन तक पहुंच गई है।
श्री बिलोचिस्तान पंचायत के नेतृत्व में श्री सनातन धर्म सेवा समिति की ओर से शहर में रावण दहन का सबसे बड़ा आयोजन किया जाता है। गांधी ग्राउंड में होने वाला यह आयोजन शुरुआती दौर में काफी छोटा हुआ करता था। धीरे-धीरे इसका स्वरूप बढ़ता हुआ वृहद हो गया है।
महासचिव विजय आहुजा ने बताया कि इस बार 24 अक्टूबर को गांधी ग्राउंड में दशहरा पर्व मनाया जाएगा। इसमें रावण का पुतला 70 फीट का होगा, 65 फीट के करीब मेघनाद और कुंभकरण के पुतले होंगे। इसके साथ ही 80 से 100 फीट की लंका भी बनाई जाएगी। इसकी तैयारियां अंतिम चरण में चल रही है। आयोजन देखने बडी संख्या में पहुंचने वाले लोगों की सुविधा के लिए गांधी ग्राउंड के बाहर एलईडी स्क्रीन लगाई जाएगी। ऐसे में बाहर मौजूद लोग भी दहन देख सकेंगे।
यह रहेगा आयोजन
दशहरा पर्व पर सुबह 9 बजे से शक्ति नगर स्थित सनातन मंदिर में नव शिशुओं का मुंडन होगा। इसके बाद दोपहर 3 बजे श्री राम व लक्ष्मण द्वारा भगवान शिव का पूजन होगा। इसके बाद सनातन धर्म मंदिर से शोभायात्रा निकलेगी, जो विभिन्न मार्गों से होते हुए शाम 5.30 बजे स्टेडियम पहुंचेगी, जहां शाम 6.30 बजे आतिशबाजी के साथ रावण, मेघनाथ, कुंभकरण के पुतलों का आतिशी दहन होगा।
समाज के लोग करते थे तैयार
समिति के अध्यक्ष नानक राम कस्तुरी ने बताया कि 1948 में रावण दहन की शुरुआत समाज के कुछ लोगों ने की थी। उस समय सात से आठ फीट का रावण हाथों से तैयार किया जाता था। शक्तिनगर के पास सालेटिया (आजाद) ग्राउंड में रावण दहन किया जाता था। तब समाज के लोग दिनभर व्यवसाय संभालने के बाद रात को रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले बनाते थे।
सवा से डेढ़ माह में तैयार होते हैं पुतले
हेमंत गखरेजा ने बताया कि आयोजन में जैसे भीड़ बढ़ने के साथ ही आसपास भवन बनने से जगह छोटी होने लगी। ऐसे में 1975 के बाद रावण दहन का आयोजन गांधी ग्राउंड में किया जाने लगा। धीरे-धीरे इस पर्व ने वृहद रूप ले लिया। वर्तमान में सवा से डेढ़ माह तक कारिगर तीनों पुतलों के साथ लंका का निर्माण करते हैं।
तीसरी पीढ़ी भी कर रही सेवा
नेवन्दराम गखरेजा ने बताया कि उनके पिताजी माटणदास गखरेजा समिति के साथ जुड़े हुए थे। उनके बाद वे और उनके पुत्र भी समिति से जुड़े हुए हैं। कुछ लोगों से शुरू हुई इस समिति में वर्तमान में 70 से अधिक स्वयंसेवक है। जो दशहरा के दौरान प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से काम करते हैं।
Published on:
21 Oct 2023 09:57 pm
बड़ी खबरें
View Allउदयपुर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
