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शरद रंग उत्सव का आगाज…फोक फ्यूजन में सुर-साज की संगत, मूरा लाला ने जमाई रंगत

-शिल्पग्राम में उमड़े शहरवासी और हजारों पर्यटक  

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उदयपुर . हवाला गांव स्थित शिल्पग्राम में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से उत्सव ‘शरद रंग’ का आगाज बुधवार दोपहर फूड फेस्टिवल और शाम ‘फोक फ्यूजऩ’ से हुआ। दिनभर देश के विभिन्न राज्यों से आए पाक शिल्पियों ने शिल्पग्राम बाजार को लजीज व्यंजनों की महक से सुवासित रखा तो शाम ढलते ही राजस्थानी व गुजराती लोक संगीत की सुरीली प्रस्तुतियों ने कलांगन में उपस्थित संगीत रसिकों का मन मोह लिया।

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गुलाबी ठंड के बीच मुक्ताकाशी रंगमंच पर निशीथ मेहता के निर्देशन में फोक फ्यूजन की शुरुआत प्रसिद्ध कच्छी कलाकार मूरा लाला मारवाड़ा के गायन से हुई। अपने परिवार की ग्यारहवीं पीढ़ी के गायक मूरा लाला ने सवा सौ साल पुराने साज ‘संतार’ पर गणपति स्तुति सुरीले अंदाज में पेश की। अक्षत पारीक और हिरल ब्रह्मभट्ट ने ‘केसरियो बालम’ सुनाया तो दर्शक लोक संगीत की सवर लहरियों में लीन हो गए। इसके बाद अक्षत पारीक ने दीपन्निता आचार्य के साथ मीरा बाई के भजन ‘भाई सांवरे रंगराजी’ को शास्त्रीय शैली में सुनाकर समां बांध दिया। अगले दौर में ‘थार’ पर आधारित तीन अप्रतिम रचनाएं ‘छड़लो’ (कच्छी) ‘तारी आंख नो आफणी’ (गुजराती) और ‘एन आनो मालो’ (बांग्ला) के साथ गुजराती भक्ति गीत ‘मेलड़ी’ सुनकर उपस्थित जनसमूह झूम उठा। इससे पूर्व प्रसिद्ध पंजाबी गीत ‘जुगनी’, कच्छ का महिमा गीत ‘कच्छड़ो घूमो’ तथा गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की रचना ‘एकला चालो रे’ के बाद समवेत स्वरों की अंतिम पेशकश में गीत जमालो और दमादम मस्त कलंदर ने माहौल में जोश भर दिया।

खींच लाई लजीज व्यंजनों की खुशबू
दोपहर तक शहरवासियों संग अनेक पर्यटक शिल्पग्राम पहुंचे, जहां मराठी, गुजराती, बिहारी, पंजाबी, लखनवी तथा हरियाणवी फूड स्टॉल्स पर कुलछा, वड़ा पाव, दाबेली, खमण-ढोकला, लिट्टी-चोखा, जलेबा, अवधी व्यंजनों के चटखारे लगाए। इस दौरान बंजारा मंच पर पेश की गईं लोक कला प्रस्तुतियों तथा ऑर्केस्ट्रा पर संगीत की धुनें सुनने का लुत्फ भी उठाया।

आज देखिए बॉलीवुड के सौ साल
पांच दिवसीय शरद रंग उत्सव की दूसरी शाम कलांगन पर पुणे की संस्था नीस एन्टरटेनमेन्ट्स द्वारा ‘भारतीय सिनेमा के सौ साल’ पर विशेष प्रस्तुति मुख्य आकर्षण रहेगी।


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